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जहां  त्याग वहां रामायण, जहां स्वार्थ वहां महाभारत होती हैः रामसुख दास

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12 Jan 20
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जहां  त्याग वहां रामायण, जहां स्वार्थ वहां महाभारत होती हैः रामसुख दास

बारां, शहर के श्रीराम स्टेडियम में आयोजित संगीतमय रामकथा में आठवें दिन शनिवार को कथावाचक चित्रकूट के संत रामसुख दास महाराज ने कहा कि अपनी आय को दशमांस भाग व्यक्ति सत्कर्मों में लगाएगा, तो परिवार में रोग व विपत्ति का आगमन कभी नहीं होगा। सत्कर्मों मंे लगाया गया धन ईश्वर आपको कई गुना करके लौटाता है। भोजन ग्रहण करने से पूर्व व्यक्ति उसे भगवान को निवेदित करे। तो वह भोजन शरीर के लिए पौष्टिक होगा तथा कभी रोग नहीं होने देगा। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने कान निंदा, चुगली सुनने में लगाता है। यदि वह कानों को भगवान के गुणगान सुनने में लगाए तो व्यक्ति का भला ही होगा। भगवान की कथा की ध्यान से सुनना चाहिए, कान से नहीं। कथा, भजन व कीर्तन सुनने से मन में पवित्र भाव का आगमन होता है और वह व्यक्ति तथा उसके परिवार का कल्याण करता है। संत रामसुख ने कहा कि जीवन में हमें राम का आदर्श उतारना चाहिए। राम राज में राज्य सम्राट का पद जिस प्रकार राम और भरत ने त्याग करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया था। जहां त्याग होता है, वहां रामायण होती है। जहां स्वार्थ होता है, वहां महाभारत होती है। दुर्भाग्य ही आजकल लोग व्यवहार में रामायण कम महाभारत ज्यादा अपना रहे हैं। उन्होंने कथा में राम-भरत मिलन के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भरत का प्रेम भी किसी से कम नहीं है और राम का त्याग भी किसी से कम नहीं है। इसलिए मन में स्वार्थ की जगह परमार्थ का भाव रखो। इसी में आपका और लोक का कल्याण होगा। महाराज ने कहा कि कलयुग में भगवान की कथा सुनने या उनके नाम का जप करने से ही बढ़ा पुण्या मिलता है और यही मोक्ष दायक होता है। प्रवक्ता ओमप्रकाश गौतम ने बताया कि कथा में राधेश्याम शर्मा, हंसराज शर्मा, तेजमल पोरवाल, कैलाश गौतम, सीताराम शर्मा, फूलचंद राठौर आदि ने महाराज का माल्यार्पण किया। इससे पूर्व व्यास पीठ का पूजन मुख्य यजमान बंशीलाल बोहरा व राजा कालरा ने किया।


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