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’’ताल वाद्य कचेरी‘‘ शास्त्रीय वाद्यों के साथ सुर ताल मिलाये लोक वाद्य ने लावणी

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25 Dec 19
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’’ताल वाद्य कचेरी‘‘ शास्त्रीय वाद्यों के साथ सुर ताल मिलाये लोक वाद्य ने  लावणी

उदयपुर,  पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय ’’शिल्पग्राम उत्सव-२०१९‘‘ पांचवे दिन रंगमंच पर आंध्रप्रदेश की ताल वाद्य कचेरी की प्रस्तुति में भारत के शास्त्रीय वाद्य यंत्रों के साथ लोक व पश्चिमी साजों ने सुर ताल मिला कर अपने बहुमुखी अस्तित्व का अहसास करवाया वहीं लोक कलाओं में लावणी, भपंग आदि ने अपना रंग जमाया। उत्सव में गुरूवार को भारत के दक्षिण राज्य के नृत्यों की प्रस्तुति प्रमुख आकर्षण होगी।

दस दिवसीय उत्सव में बुधवार को क्रिसमस के अवकाश के चलते बडी तादाद में लोग शिल्पग्राम पहुंचे व मेले का भरपूर आनन्द उठाया। लोगों की आवाजाही के चलते शिल्प बाजार में लोगों का दिनभर जमावडा सा रहा। हाट बाजार में लागों ने जूट के बैग्स, वॉटर बॉटल होल्डर, वॉल हैंगिंग्स, जूट की चप्पलें, नमदे की बनी चप्पलें, पंजाबी जुत्ती, कोल्हापुरी चप्पल के अलावा लैदर बैग्स, पर्स, मधुबनी चित्रकारी, फड चित्रकारी के कलात्मक नमूने, वॉटर फॉल वाली कला कृतियाँ, बांस बेंत की वस्तुए, कशीदाकारी से युक्त परिधार, फुलकारी, बनारसी साडी, वूलन जैकेट्स, हिमाचली टोपी, राजस्थानी परिधान, बंधेज कला के परिधान, सिल्क कॉटन के ड्रेस मटीरियल, लकडी की फ्रेम्स, काष्ठ निर्मित डेकोरेटिव पॉट्स, फर्नीचर, कॉटन चद्दरें, ड्राय फ्रूट में काजू, बदाम, अखरोट, आदि के स्टॉल्स पर दिन भर खरीददारों की भीड रही। छुट्टी पर आउटिंग का लाभ लेने वाले लोगों ने शिल्पग्राम में बने विभिन्न फूड जोन्स में तरह-तरह के व्यंजनों इनमें वाहिद के स्टॉल पर बिरयानी, हरियाणा का जलेबा, गरमा गरम दूध, मक्खन, अमरीकन भुट्टे, दाल बाटी चूरमा, गुजराती व्यंजन, पंजाबी व्यंजन आदि का लुत्फ उठाया। मेले में आने वाले लोगों का लक कलाकारों ने भरपूर मनोरंजन किया। आंगन चौपाल पर कई लोग कलाकारों के साथ नाचते थिरकते देखे गये।

दोपहर में ही बंजारा रंगमंच पर मेले में आने वाले लोगों में छुपी कला प्रतिभा को दर्शाने के लिये ’’हिवडा री हूक यानि दिल चाहता है....‘‘ में कई लोगों ने लोक संगीत, नृत्य व फिल्मी गीत पर सुर ताल साधे।

शाम को मुक्ताकाशी रंगमंच पर कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण हैदराबाद के पेरावली जय भास्कर के दल की ’’ताल वाद्य कचेरी‘‘ की प्रस्तुति रही। प्रस्तुति की शुरूआत वाद्यों के परिचय से हुई पेरावली जय भास्कर ने बताया कि ताल वाद्य भारत की अमूल्य धरोहर है। इनमें मृदंगम् पुरातन वाद्य है जिसे ताल वाद्यों का राजा माना जाता है। तबला जहां जग प्रसिद्ध है वहीं दक्षिण के मंदिरों का तविल एक पारंपरिक ताल वाद्य है। मोरचंग यू तो राजस्थान का लोक वाद्य है पर दक्षिण में इसे शासत्रीय वाद्य का दर्जा दिया गया, घटम् मोहन जोदडों और हडप्पा संस्कृति का प्राचीन वाद्य है। वॉयलिन पश्चिमी साजों श्रेणी में आता है। परावेली के दल ने राग हंस ध्वनि में गणेश वंदना से अपनी प्रस्तुति की शुरूआत की इसके बाद राग माकौंस में पल्लवी की प्रस्तुति त्रिकाल में की गई जिसे दर्शकों ने चाव से देखा व सुना। इसके बाद राग मालिका स्वर कल्पना और बा में प्रतयेक वाद्य की एकल प्रस्तुति में दर्शक रम से गये। दर्शकों को सर्वाधिक आनन्द इन वाद्यों के सवाल जवाब वाली प्रस्तुति में आया। इस कलाकार दल महात्मा गांधी की १५० वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में बापू का प्रिय भजन ’’रघुपति राघव राजा राम पतित पावन सीताराम‘‘ मधुर अंदाज में सुनाया। आखिर में अन्नामाचार्य की एक लोक रचना दर्शकों को खूब रास आई।

श्रंगमंच पर ही महाराष्ट्र का लावाणी नृत्य जहां सुंदर प्रस्तुति थी वहीं भपंग पर ’’टर्र‘‘ ने दर्शकों हंसाया। पूजा कुनीथा ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को रोमांचित किया वहीं महाराष्ट्र के कलाकारों ने मलखम्भ पर अपने करिश्माई व्यायामों से दर्शकों को हैरत में डाला। लकडी के स्तम्भ पर कलाकारों ने विभिन्न योग मुद्राओं का प्रदर्शन उत्कृष्ट ढंग से किया। स्कूल कॉलेज जाने वाले छात्र छात्राओंें के इस दल ने स्तम्भ पर अपनी दैहिक लोच का अनूठा प्रदर्शन किया।

उत्सव के छठवें दिन गुरूवार को उत्सव में रंगमंच पर दक्षिण भारत के राज्यों के शास्त्रीय नृत्य शैलियों का गुलदस्ता देखने को मिलेगा जिसमें तमिलनाडु का भरतनाट्यम, केरल का कथकली, आंध्रप्रदेश का कुचिपुडी, केरल का मोहिनी अट्टम प्रमुख हैं।


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