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फणीश्वर नाथ रेणु के सृजन में गहरी आंतरिकता का समावेश : शोधार्थी निशा

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18 Aug 20
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फणीश्वर नाथ रेणु के सृजन में गहरी आंतरिकता का समावेश : शोधार्थी निशा

 कोटा (डॉ. प्रभात कुमार सिंघल) काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंतर्गत बसंत महिला महाविद्यालय राजघाट वाराणसी द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी  शताब्दी वर्ष में " फणीश्वर नाथ रेणु सृजन और संदर्भ" का 16-17 अगस्त 2020 को आयोजन किया गया। जिसमें देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार, चिंतक व संपादक ने अपने भाव भूमि से इस संगोष्ठी को दिशा प्रदान की। 

       कुल 6 सत्रों में आयोजित इस द्विदिवसीय वेब संगोष्ठी में उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रमा शंकर दुबे ने कहा कि रेणु भारतीय आत्मा के चिंतक के कथाकार थे। मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर रजनीश शुक्ल, कुलपति महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र उपस्थित थे ।               शुक्ल ने  अपने वक्तव्य में कहा हिंदी की आंचलिकता, हिंदवी भारत की आंचलिकता के आधार पर हिंदी को भारत की आंचलिकता के आधार पर हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में विकसित करने का कार्य सर्वप्रथम फणीश्वरनाथ रेणु ने किया। अध्यक्षता करते हुए आईआईटी के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन ने नई शिक्षा नीति की बात की है। महाविद्यालय की प्रचार्या डॉ अलका सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। कथाकार प्रेम कुमार मणि ने कहा कि रेणु सुघर व्यक्तित्व के स्वामी थे। जेएनयू के प्रोफेसर और लेखक देवशंकर नवीन ने कहा कि रेणु ने अपनी ट्रेल में संगीत नाच ध्वनि की प्रयुक्तियों का प्रयोग कर अंचल को जीवित कर दिया। 

           कार्यक्रम के प्रतिभागी सत्र में डॉ पुनीत बिसारिया अध्यक्ष हिंदी विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी की अध्यक्षता में निशा गुप्ता शोधार्थी कोटा विश्वविद्यालय, कोटा राजस्थान ने 'कथेतर गद्य की दृष्टि से रिपोर्ताजकार रेणु का वैशिष्ट्य' विषय पर शोध पत्र प्रस्तोता के रूप में अपनी सहभागिता दर्ज की। 

       शोधार्थी निशा ने अपने शोध पत्र में रेणु के रिपोर्ताज की खासियत या वैशिष्ट्य को उजागर किया तथा निशा ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि रेणु ने अपने रिपोर्ताज में विजुअल मीडिया का वर्चस्व कायम किया है। रेणु प्रत्यक्ष अनुभूत संवेदनाओं से शब्दों का शिल्पगत प्रयोग करके अनुपम शब्द चित्रावली का निर्माण करते है तथा उनमें उस परिवेश की आवाजों को भी समाहित करते हैं जिससे घटनाएं साकार हो उठती है। रेणु के रिपोर्ताज समसामयिक विषय पर आधारित होकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल होते है। विषय चाहे किसी भी काल या समाज से संबंध हो, उसकी प्रभावोत्पादकता तथा संवेदनशीलता का कहीं भी ह्रास नहीं होता। रेणु के रिपोर्ताज साहित्य व्यक्ति मन की पीड़ा को उभारते है इसमें ही इनकी विशिष्टता छिपी हुई है।

       संगोष्ठी में प्रोफेसर रजनीश शुक्ल कुलपति महोदय महात्मा गांधी केंद्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र, प्रोफेसर रमा शंकर दुबे कुलपति महोदय गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर गुजरात, डॉ आशीष कंधवे सह-सम्पादक गगनांचल भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद विदेश मंत्रालय भारत सरकार, प्रेमकुमार मणि प्रसिद्ध कथाकार और चिंतक पूर्व सदस्य बिहार विधान परिषद पटना, प्रोफेसर देवशंकर नवीन प्रोफेसर अनुवाद विभाग भारतीय भाषा केंद्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली, प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी पूर्व प्राचार्या महिला विद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी, डॉ कमलानंद झा प्रोफेसर हिंदी विभाग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़, डॉ कैलाश कुमार मिश्र लोक संस्कृति चिंतक लेखक नई दिल्ली, प्रोफेसर सुभाष चंद्र राय प्रोफेसर हिंदी विभाग विश्वभारती शांति निकेतन पश्चिम बंगाल, प्रोफेसर प्रमोद मीणा प्रोफेसर हिंदी विभाग महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतीहारी बिहार, आनंद पत्रकार फणीश्वरनाथ रेणु डॉट कॉम के सहसंपादक, प्रोफेसर बाला देवेंद्र झा पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययन विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी, प्रोफेसर उमापति दीक्षित केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा.. आदि भारत देश के तमाम शिक्षाविद, प्रोफेसर, कुलपति महोदय गणमान्य विद्वत जनों की गरिमामयी उपस्थिति रही।


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