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स्वर्णिम प्रदेश राजस्थान

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30 Mar 20
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स्वर्णिम प्रदेश राजस्थान

भारत के पश्चिम में थार रेगिस्तान और अरावली पर्वत श्रृंखला के मध्य बसा राजस्थान,  शौर्य और वैभव का पर्याय रहा है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण राजस्थान का गौरवशाली अतीत इसे अविस्मरणीय बनाता है। राजस्थान के चप्पे-चप्पे पर वीरता की कहानियां बिखरी हुई हैं। मीलों तक फैली सुनहरी रेत में निर्मित अनेक गाथाओं के साक्षी रहे अजेय दुर्ग, कलात्मक राजप्रासाद, अद्भुत हवेलियां अपनी अनूठी वास्तुशिल्प-शैली के कारण जग प्रसिद्ध हैं।

राजस्थान के जन्म के बारे में मान्यता है कि त्रोता युग में सीता हरण से क्षुब्ध भगवान राम ने सोने की लंका को ध्वस्त करने के लिए अपना धनुष-बाण उठा लिया। कमान पर चढ़े तीर की अचूक शक्ति से परिचित देवताओं ने सृष्टि के विनाश की आशंका से भगवान राम से तीर न चलाने का अनुरोध किया। कमान पर चढ़े तीर को वापस लाना संभव नहीं था । श्रीराम ने दूरस्थ सागर को लक्षित करके तीर छोड़ दिया। इस बाण की ऊष्मा से समुद्र गर्म, शुष्क और निर्जीव मरूभूमि में परिवर्तित हो गया। यही मरूस्थल थार रेगिस्तान के रूप में जाना गया।

मध्ययुगीन विदेशी आक्रांताओं और उनके विशाल सैन्य बल के कारण राजपूत शासकों ने अपने नए साम्राज्य के गठन हेतु थार की मरूभूमि को ही चुना। मरूस्थलीय जीवन की चुनौतियां राजपूती स्वभाव को रास आ गई। तत्कालीन राजपूताना राज्य की नींव यहीं से पड़ी। राजपूत शासक धर्मनिष्ठ थे। जहां एक ओर उन्होंने किलों, महलों, हवेलियों और विभिन्न स्मारकों का निर्माण करवाया, वहीं भव्य मंदिर, बावड़ियां और छतरियां भी बनवाई।

शताब्दियों पुराने अनेक सुंदर मंदिर राज्य भर में विद्यमान हैं जो विभिन्न मतावलम्बियों के प्रसिद्ध तीर्थस्थल बन गए हैं।

तत्कालीन शासकों ने कलाकारों तथा शिल्पकारों को भी भरपूर आश्रय दिया जिसके फलस्वरूप यह राज्य विश्व भर में हस्तशिल्प तथा कला की समृद्ध विरासत के केन्द्र के रूप में प्रख्यात है। अपने उत्कृष्ट लघुचित्रों तथा भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध राजस्थान में अनेक मनोहारी हस्तशिल्प की वस्तुएं, आकर्षक आभूषण तथा चित्ताकर्षक राजस्थानी कपड़े पर्यटकों को लुभाते रहे हैं। राजस्थानी संस्कृति का अभिन्न अंग रहे विभिन्न उत्सवों, लोकगाथाओं, लोकनृत्य तथा लोक संगीत से जीवंत हो उठी यह मरूभूमि अपनी विशिष्ट मध्ययुगीन पारंपरिक धरोहर को संजोकर रख पाने में सफल रही है। आधुनिकता और परंपरा का अनूठा संगम यहां देखने को मिलता है।

अपनी वानस्पतिक और जैविक संपदा के लिए भी राजस्थान जाना जाता है। थार रेगिस्तान के शुष्क बीहड़ वन विभिन्न वन्य प्राणियों की आश्रय स्थली है। यहां अनेक राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य है जहां वन्य प्राणियों को उनके प्राकृतिक आवास में निर्भय विचरण करते हुए देखा जा सकता है। सरिस्का तथा रणथम्भौर प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान है। भरतपुर का केवलादेव घना पक्षी विहार भारत के प्रमुख पक्षी विहारों में से एक विश्व-धरोहर है।

राजस्थान की यात्रा के दौरान आप विशिट राजस्थानी व्यंजनों तथा शाही भोजन का आनन्द उठा सकते है। पूरे राज्य में बजट के अनुरूप ठहरने की व्यवस्था भी है। महलों और विशाल हवेलियों में रहने का लुत्फ भी आप उठा सकते हैं। ये हैरीटेज होटल शाही परिवेश में उत्तम सेवा प्रदान करते है। इतना ही नहीं, सीमित बजट वालों के लिए यहां किफायती दरों पर आरामदायक होटल भी उपलब्ध हैं। आपकी पसंद जो भी हो, आपकी यात्रा सुखद और चिरस्मणीय होगी।

देश के प्रमुख शहरों से राजस्थान वायु, रेल एवं सड़क मार्गो से बेहतर ढंग से जुड़ा है। राजधानी जयपुर में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुविधा हो गई है। संचालित पैकेज टूर, पर्यटक टैक्सी और राजस्थान पर्यटन एवं राज्य परिवहन निगम की बसों द्वारा आप राज्य का भ्रमण कर सकते है। राजस्थान के लुभावने जादुई अनुभव को जीवनपर्यन्त संजोकर रखने के लिए तैयार हो जाइये, यह स्वर्णिम प्रदेश पर्यटकों का स्वर्ग है। हां, इसका आनंद उठाने के लिए बस आपको अपनी व्यस्त जीवनचर्या में से थोड़ा सा वक्त निकालना होगा।

राजस्थान का निर्माण 

राजस्थान निर्माण की पृष्ठभूमि को देखें तो ज्ञात होता है कि भारत की आजादी मिलने पर राजस्थान राजपूताने के नाम से जाना जाता था जिसमें 19 रिय्ाासतें और 3 ठिकानें (निमराना, लावा एवं कुशलगढ) तथा अजमेरµमेरवाडा का केन्द्र शासित प्रदेश शामिल था। आजादी के बाद इन सभी के विलीनीकरण होने से राजपूताने का नाम राजस्थान राज्य्ा के रूप में अस्तित्व में आय्ाा। 

राजस्थान का वर्तमान स्वरूप कई चरणों की प्रक्रिय्ााओं का परिणाम है। सर्वप्रथम 17 मार्च 1948 को मत्स्य्ा संघ की स्थापना हुई जिसमें अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली राज्य्ाों का विलीनीकरण किय्ाा गय्ाा। मत्स्य्ा संघ प्रदेश की राजधानी अलवर को बनाय्ाा गय्ाा तथा धौलपुर नरेश राजप्रमुख एवं अलवर नरेश उप राजप्रमुख बनाय्ो गय्ो। 

विलीनीकरण के दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को 9 रिय्ाासतों को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किय्ाा गय्ाा। इसमें कोटा, बूंदी, झ्ाालावाड, बांसवाडा, डूंगरपुर, प्रतापगढ, किशनगढ, टोंक एवं शाहपुरा रिसाय्ातों को शामिल किय्ाा गय्ाा। राजस्थान संघ की राजधानी कोटा को बनाकर कोटा के महाराव को राजप्रमुख एवं डूंगरपुर के महारावल को उप राजप्रमुख बनाय्ाा गय्ाा। इसके तीन दिन बाद ही उदय्ापुर के महाराणा ने भी भारत सरकार के रिय्ाासती मंत्रालय्ा को पत्रा भिजवाकर इस नय्ो राजस्थान संघ में शामिल होने की इच्छा प्रकट की। 

विलीनीकरण के तीसरे चरण के रूप में 18 अप्रेल 1948 को उदय्ापुर रिय्ाासत का राजस्थान संघ में विलय्ा कर नय्ाा नाम संय्ाुक्त राजस्थान का निर्माण किय्ाा गय्ाा। इसका उद्घाटन भी उसी दिन उदय्ापुर में भारत के प्रधानमंत्राी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किय्ाा। उदय्ापुर को संय्ाुक्त राज्य्ा संघ की राजधानी बनाकर वहां के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख, कोटा महाराव भीमसिंह को उप राजप्रमुख तथा माणिक्य्ा लाल वर्मा को प्रधानमंत्राी बनाय्ाा गय्ाा। 

विलीनीकरण के प्रमुख चौथे चरण में 3॰ मार्च 1949 को जय्ापुर में आय्ाोजित भव्य्ा समारोह में वृहत्त राजस्थान का उद्घाटन किय्ाा गय्ाा और इसका निर्माण संय्ाुक्त राजस्थान में जय्ापुर, जोधपुर, बीकानेर व जैसलमेर रिय्ाासतों का विलीनीकरण भी कर लिय्ाा गय्ाा। इस समारोह में सरदार पटेल ने जय्ापुर महाराजा मानसिंह को राजप्रमुख, कोटा महाराव भीमसिंह को उप राजप्रमुख तथा हीरालाल शास्त्राी को नय्ो राज्य्ा के प्रधानमंत्राी पद की शपथ दिलाई। 3॰ मार्च 1949 को वृहत्त राजस्थान के निर्माण की तिथि 3॰ मार्च से प्रतिवर्ष राजस्थान का स्थापना दिवस आय्ाोजित किय्ाा जाता है। 

वृहत्त राजस्थान का निर्माण होने पर 15 मई 1949 को मत्स्य्ा संघ भी राजस्थान में मिला लिय्ाा गय्ाा। सिरोही का विलय्ा 26 जनवरी 195॰ को किय्ाा गय्ाा तथा 1 नवम्बर 1956 को तत्कालीन अजमेरµमेरवाडा राज्य्ा को भी शामिल कर लिय्ाा गय्ाा। इसी के साथ मध्य्ा भारत के मंसोर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेलटप्पा ग्राम राजस्थान में शामिल किय्ाा गय्ाा तथा कोटा जिले का सिरोंज मध्य्ाप्रदेश को हस्तांतरित किय्ाा गय्ाा। इस प्रकार 18 मार्च 1948 को आरंभ हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिय्ाा एक नवम्बर 1956 को विभिन्न चरणों में पूर्ण हुई और वर्तमान राजस्थान अस्तित्व में आय्ाा।  


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