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कृषि उच्च शिक्षा मे स्वरोजगार की अपार संभावनाएँ -  डॉ. राठौड़

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16 Jul 20
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कृषि उच्च शिक्षा मे स्वरोजगार की अपार संभावनाएँ -  डॉ. राठौड़


उदयपुर  आयोजना एवं परिवेक्षण निदेशालयए महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा आई.सी.ए.आर. की राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत ‘‘कृषि उच्च शिक्षा में उभरते आयाम एवं सम्भावनाएँ’’ विषय पर एक-दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। वेबीनार के समन्वयक डॉ. जे.एल. चौधरी, निदेशक आयोजना एवं परिवेक्षण निदेशालय ने कृषि शिक्षा में नवीन आयामों पर राष्ट्रीय वेबीनार एवं चर्चा हेतु विषय की प्रासंगिकता बताते हुए सभी मुख्य अतिथियों व वक्ताओं का स्वागत किया। वेबीनार की आयोजक सचिव डॉ. रेखा व्यास, सह निदेशक, कृषि संचार ने वेबीनार के विभिन्न विषयों की जानकारी दी एवं सभी प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों का स्वागत किया।
वेबीनार के मुख्य अतिथि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़ ने कृषि उच्च शिक्षा के विभिन्न आयामों पर नवीनतम जानकारी देते हुए कहा कि हमें कृषि शिक्षा को पारम्परिक शिक्षा से अलग करके देखना होगा। कृषि को केवल ज्ञान का हस्तांतरण ही नहीं बल्कि विद्यार्थियों की दक्षता व क्षमता की विकास पर ध्यान दिया जाना है। उन्होंने भारतीय कृषि शिक्षा में किये गये बदलाव पर चर्चा करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य विद्यार्थी को स्वरोजगार हेतु प्रेरित कर आत्मनिर्भर बनाना है जिससे कृषि शिक्षा को व्यवसाय व आय अर्जन से जोड़ा जा सके। इसके लिए उन्होंने 5वीं डीन्स कमेटी द्वारा निर्मित व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा अनुमोदित नवीन पाठ्यक्रम का जिक्र करते हुए बताया कि इसे स्टूडेन्ट रैडी की संज्ञा दी गई है जिसके अंतर्गत सभी संकायों में अंतिम वर्ष का विद्यार्थी स्क्लि डेवलपमेन्ट के अंतर्गत अपनी क्षमता वर्धन करता है। उसे कृषि विज्ञान केन्द्र पर किसान परिवारों से सीधा सम्पर्क कर उन्हें कृषि सलाह देनी होती है, इसे ‘‘रावे’’ कार्यक्रम कहते हैं। इसी प्रकार उसे हेन्ड्स ऑन ट्रेनिंग के द्वारा स्वयं प्रशिक्षण प्राप्त कर नवीन कार्य सीखने का अवसर मिलता है तथा इसी प्रकार उसे किसी कृषि आधारित इण्डस्ट्री पर भी रह कर अपना प्रशिक्षण कार्य पूरा करना होता है। इस दौरान विद्यार्थी एक परियोजना बना कर उसका प्रस्तुतीकरण भी करता है। उन्होंने कहा कि कृषि को हमारे देश की रीढ़ कहा जाता है जिसपर हमारी मूल अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। मेडीकल व इंजीनियरिंग के पश्चात् कृषि शिक्षा की ओर हमारे विद्यार्थियों व युवाओं का सबसे अधिक ध्यान रहता है अतः कृषि शिक्षा जिसे हाल ही में प्रोफेशनल शिक्षा का दर्जा दिया गया है में उच्च शिक्षा व स्वरोजगार की अपार संभावनाएँ जुड़ी हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में देश के 400 मान्यता प्राप्त व 1000 निजी कॉलेज कृषि शिक्षा प्रदान करते हैं तथा 74 राज्य कृषि विश्वविद्यालय कृषि शिक्षा में अच्छा कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि विगत वर्षों में हमने कृषि उत्पादन में 5.0 गुना, उद्यानिकी उत्पादन में 10.5 गुना, मछली उत्पादन में 16.8 गुना और दुग्ध उत्पादन में 10.2 गुना वृद्धि की है और बढ़ती जनसंख्या व कृषि उत्पादों की आवश्यकता को देखते हुए इस क्षेत्र में उच्च शिक्षित युवाओं की माँग निरंतर बढ़ रही है। उन्होंने उच्च शिक्षा में संकाय सदस्यों व प्रशिक्षित युवाओं की कमी, सामाजिक सरोकार व रोजगारपरक अनुसंधान की आवश्यकता, वैश्विक मानकों के अनुसार शिक्षण संस्थाओं में सुधार, पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर के साथ अनुबंध इत्यादि कमियों की ओर भी इशारा किया।
इस अवसर पर धारवाड़ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एम.बी. चेती ने भी प्रतिभागियों को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि कृषि शिक्षा को पुनर्परिभाषित करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अभिसरण की आवश्यकता है तथा उसी के अनुसार कृषि में नवाचार के अनन्य कदम उठाने चाहिए जिसमें परिशुद्ध खेती, नगदी फसलों की खेती, कृषि में जलवायु तथा मौसम संबंधी अग्रिम जानकारी हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग सम्मिलित हो। उन्होंने खाद्य प्रसंस्करण में विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला एवं कृषि में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की। कृषि वैज्ञानिक चयन बोर्ड, नई दिल्ली के सदस्य डॉ. ए. के. श्रीवास्तव ने भारत में पशु चिकित्सा और पशु पालन हेतु उच्च शिक्षा में बदलाव लाने आवश्यकता बताई। उन्हांने कहा की आने वाले 15 वर्षा मे 1- 1.12 लाख पशु पशेवेरों की आवश्यकता है जो इस क्षेत्र की शिक्षा को बेहतर बनाने से ही संभव है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो 2035 तक इस क्षेत्र में परिस्थिति विकट हो जायेगी।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. विक्रमादित्य दवे ने किया तथा अंत में वेबीनार कोऑर्डिनेटर
डॉ. नवनीत अग्रवाल ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर  राजस्थान  के अलावा  देश के विभिन्न हिस्सों से अनेक वैज्ञानिकों, उच्च अधिकारियों सहित लगभग 200 से अधिक प्रतिभागियों ने वेबीनार में हिस्सा लिया।


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