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शिक्षण ने पुराना गौरव खोया है, पर अभी भी सब कुछ समाप्त नही हुआ

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13 Oct 17
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उदयपुर जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि कोई भी देश अपने नागरिकों को शिक्षित किये बिना विकसित नही हो सकता। उन्होंने कहा राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक होनी चाहिए तथा विश्वविद्यालयों में शोध एवं अनुसंधान के कार्यो पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए तब ही शैक्षणिक प्रवृत्तियों में गुणात्मकता की वृद्धि होगी तथा शिक्षा परिसरों का वातावरण भी अकादमिक रह पायेगा। प्रो. सारंगदेवोत गुरूवार मध्यान्ह में ’’उच्च शिक्षा की चुनौतियां- गुणवत्ता के सवाल‘‘ विषय पर आयोजित कविराव मोहन सिंह स्मृति व्याख्यान में अध्यक्षीय उद्बोधन दे रहे थे। व्याख्यान के मुख्य वक्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो. संतोष कुमार शुक्ला ने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर पाश्चात्य रीति-नीति की शिक्षा व्यवस्था को स्थापित किया जो भारतीय शिक्षण पद्धति के विपरीत थी जिससे हमारी संस्कृति का हास ही नही हुआ बल्कि पुरातन ज्ञान केन्द्र भी नष्ट हो गये। इससे पूर्व मुख्य अतिथि देवस्थान आयुक्त जितेन्द्र उपाध्याय ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्जागरण की आवश्यकता है उन्होनें जोर देकर कहा कि प्राथमिक शिक्ष का मजबूत किए बिना उच्च शिक्षा की गुणात्मकता में सुधार किया जाना संभव नही है।
प्रारम्भ में सुप्रसिद्ध कवि और विचारक किशन दाधीच ने विषय प्रवर्तन करते हुए चिंता व्यक्त की कि सियासत की गैर जरूरी दखलंदाजी से उच्च शिक्षा संस्थानों का ढांचा चरमरा गया है तथा एक अस्थिरता का वातावरण बन गया है। उन्होंने शैक्षणिक व्यवस्था के तीन घटक छात्र, अध्यापक और अभिभावक के समन्वय के शैक्षणिक त्रिभुज के निर्माण की आवश्यकता जताते हुए कहा कि संविधान में शिक्षा का समवर्ती सूची में होना एवं राष्ट्र की एक समान शिक्षा नीति का न होना शिक्षा परिसरों का वातावरण दूषित होने का प्रमुख कारण है। उन्होंने कहा कि यदि एक सम्प्रभु देश का राष्ट्रगान एक है, राष्ट्रीय गीत एक है, राष्ट्रीय चिन्ह एक है, राष्ट्रीय पक्षी एक है तो शिक्षा पद्धति एक क्यों नही हो सकती ? उन्होंने ज्ञानार्जन के केन्द्रों को आजीविका अर्जन के केन्द्रों के रूप में विकसित करने की नीति की भी आलोचना की। संचालन डॉ. धीरजप्रकाश जोशी ने किया, धन्यवाद कुलप्रमुख बी.एल. गुर्जर ने दिया इस अवसर पर कविराव मोहन सिंह के प्रपितामह कविराव बख्तावर रचित महाकाव्य ’’केहर प्रकाश‘‘ के दूसरे संस्करण का लोकार्पण भी किया गया। समारोह में कविराव मोहन सिंह पीठ के अध्यक्ष उग्रसेन राव, प्रो. जीएम मेहता, प्रो. पीसी दोशी, डॉ. शशि चितौडा, विशेषाधिकारी डॉ. हेमशंकर दाधीच, डॉ. हरीश शर्मा, डॉ. मजु माण्डोत, डॉ. मनीष श्रीमाली, डॉ. सरोज गर्ग, डॉ. शैलेन्द्र मेहता, डॉ. अमिया गोस्वामी, डॉ. भवानीपाल सिंह राठौड, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. वीना द्विवेदी, डॉ. एसबी नागर, डॉ. रचना राठौड, डॉ. अमि राठौड, डॉ. सुनीता मुर्डिया, सुभाष बोहरा, जितेन्द्र सिंह चौहान, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ. कुल शेखर व्यास, डॉ. दिनेश श्रीमाली, डॉ. भारत सिंह देवडा, डॉ. गोरव गर्ग सहित विद्यापीठ के तमाम कार्यकर्ता मौजुद थे।

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