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43वें जन्म दिवस पर आचार्य जी को बधाई

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11 Jul 20
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43वें जन्म दिवस पर आचार्य जी को बधाई

 मनुष्य का जन्म जीवात्मा के अपवर्ग अर्थात् मोक्ष गति की प्राप्ति के लिये होता है। अपवर्ग आत्मा की उन्नति वा मोक्ष को कहते है। मोक्ष की प्राप्ति होने पर मनुष्य जीवन के सभी दुःखों की निवृत्ति वा 31 नील वर्षों के दीर्घकाल से अधिक समय के लिये दुःखों का अन्त हो जाता है। न केवल दुःखों का अन्त ही होता है अपितु ईश्वर का आनन्दमय सान्निध्य भी जीवात्मा को उपलब्ध रहता है जिसमें जीवात्मा आनन्द का भोग करते हुए अवर्णनीय सुखों को प्राप्त करता है। इस मोक्ष को प्राप्त करने के लिये मनुष्य को ईश्वरोपासना, देश व समाज के हित के कार्यों सहित वेदाध्ययन एवं वेदप्रचार करना आवश्यक होता है। ऋषि दयानन्द ने अपने जीवन में इन सब कार्यों को करके हमारे सामने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। आर्यसमाज के अधिकांश विद्वान व सुधीजन भी इसी मार्ग पर चले और सभी ने अपनी आत्मा की उन्नति की जिससे उनके परजन्मों में सुधार व कल्याण की प्राप्ति हुई है। वेद हम सब का विश्वसनीय ग्रन्थ है। वेदों के साथ ही सभी ऋषियों के वेदानुकूल ग्रन्थ भी हमारे लिये आदर्श एवं आचरणीय हैं। सत्यार्थप्रकाश ऋषि दयानन्द की वेदानुकूल एवं वेदों का महत्व बताने वाली संसार की सवोत्तम कृति है। सभी मनुष्यों को इस ग्रन्थ से प्रेरणा लेकर अपने दुःखों की निवृत्ति करनी चाहिये और आत्म कल्याण कर अपने जीवन को सफल करना चाहिये। देहरादून के पौन्धा में स्थित आचार्य डा. धनंजय आर्य जी का ‘‘श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल” उनके धर्म, देश व समाज की उन्नति के कार्यों को यशस्वी रूप से पूरा कर रहा है। अपने 43 वर्षों के जीवन में आचार्य जी ने इस गुरुकुल को देश का आर्ष परम्परा वा पद्धति का एक अग्रणीय व श्रेष्ठ गुरुकुल बनाया है। रात दिन पुरुषार्थ कर वह इसकी न केवल प्रगति के लिये जागरुक हैं वही वह देश के सभी गुरुकुलों की उन्नति के लिये भी भारत की गुरुकुल परिषद की ओर से तप कर रहे हैं। ऐसे महनीय जीवन के धनी आचार्य डा. धनंजय आर्य जी को आज उनके 43 वें जन्म दिवस पर हम हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई देते हैं। 

 

                वैदिक धर्म एवं संस्कृति के अनुयायी एवं इसके प्रचार प्रसार में संलग्न आचार्य धनंजय जी का जन्म महाराष्ट्र के भण्डारा जिले के एक ग्राम कोंडा में ऋषिभक्त भानुदास आर्य जी एवं माता आनन्दा बाई जी के सद्गृहस्थ में हुआ था। आप पांच भाई बहिनों में सबसे बड़े हैं। आपके दो भाई व दो बहिनें हैं। जन्म के बाद कक्षा 6 तक की शिक्षा अपने अपने जन्म ग्राम में रहकर प्राप्त की। इसके बाद आपको गुरुकुल झज्जर में प्रविष्ट कराया गया था। यहां की जलवायु आपको अनुकूल न होने के कारण लगभग 22 दिनों बाद ही दिल्ली के गुरुकुल गौतमनगर में भेज दिया गया। यहीं रहकर तथा इसी गुरुकुल की एक नई इकाई गुरुकुल मंझावली-हरयाणा में आपकी कक्षा 12 तक की प्रथमा व मध्यमा की शिक्षा सम्पन्न हई। इन गुरुकुलों में रहकर ही आपने शास्त्री एवं आचार्य की गुरुकुलीय शिक्षा व उपाधियां प्राप्त कीं। आचार्य धनंजय जी जून सन् 2000 में 23 वर्ष की अवस्था में नवस्थापित गुरुकुल पौंधा के आचार्य बने थे। यहां आचार्यत्व करते हुए आपने उत्तराखण्ड के ‘गढ़वाल विश्वविद्यालय’ से पी.एच.डी. कर डाक्टरेट की उपािध प्राप्त की। आपका पी.एच.डी. का विषय ‘वेदों में वर्णित औषधियां एवं उनका प्रयोग’ था। यह सम्मानित उपाधि आपने देहरादून के डी.ए.वी. स्नात्कोत्तर कालेज, देहरादून में संस्कृति विभाग की प्रोफेसर डा. सुखदा  सोलंकी जी के मार्गदर्शन में प्राप्त की।

 

                गुरुकुल ने अभी अपने जीवन के मात्र 20 वर्ष ही पूरे किये हैं। इस अवधि में यह गुरुकुल आर्ष पाठ विधि का देश का अग्रणीय गुरुकुल बन गया है। इस अवधि में सहस्रों छात्रों ने गुरुकुल पौंधा में आर्ष पाठ विधि से अध्ययन कर लाभ उठाया है जिससे वेदानुयायी एवं वेदभक्तों सहित युवा वेद प्रचारक आचार्य एवं पुरोहित तैयार हुए हैं। गुरुकुल ने अपने छात्रों को निशाने बाजी का प्रशिक्षण भी कराया है। यहां का एक छात्र दीपेन्द्र एशिया खेलों में रजत पदक प्राप्त कर प्रसिद्ध हो चुका है जिसने अपनी इस उपलब्धि से गुरुकुल को भी गौरवान्वित किया है। ब्र. दीपेन्द्र भारतीय वायु सेना में कार्यरत है। वर्तमान में उसका आगामी ओलम्पिक खेलों के लिये भी चयन हो गया है। खेल जगत में इस गुरुकुल की अन्तर्राष्ट्रय स्तर पर यह एक बड़ी उपलब्धि है। आचार्य जी ने इस अवधि ने देहरादून के चारों ओर ग्रामीण अंचलों में व्यापक भ्रमण व वेद प्रचार किया है। निकटवर्ती अनेक ग्रामों के लोगों को गुरुकुल से जोड़ा है जो गुरुकुल के शुभचिन्तक हैं। वह सब न केवल गुरुकुल के उत्सव में आते हैं अपितु अन्न आदि द्वारा गुरुकुल को सहयोग भी प्रदान करते हैं। गुरुकुल की एक उपलब्धि यह भी रही है सन् 2000 के बाद देश में जहां पर जो भी अन्तर्राष्ट्रीय महासम्मेलन आदि आयोजन हुए हैं उसमें इस गुरुकुल की उपस्थिति व सहभागिता रही है। गुरुकुल के आचार्य एवं ब्रह्मचारी सभी सम्मेलनों में पहुंचे हैं और उन्होंने वहां अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। अब तक गुरुकुल से 30 से अधिक विद्या स्नातक शिक्षा पूरी कर चुके हैं जो देश में अनेक सम्मानित पदों पर नियुक्त होकर वैदिक परम्परा के ध्वज वाहक बने हैं। गुरुकुल के कुछ स्नातकों व उपलब्धियों का उल्लेख करें तो डा. रवीन्द्र कुमार आर्य (हरिद्वार), डा. अजीत आर्य (दिल्ली), श्री दीपेन्द (वायु सेना), श्री गणेश, श्री सत्यकाम (गोआ), श्री मोहित (मैनपुरी-इटावा), आचार्य सौरभ (दिल्ली), आचार्य शिवकुमार वेदि, आचार्य ओम्प्रकाश, आचार्य वेदप्रकाश, आचार्य शिवदेव आर्य जी आदि कुछ नाम इस में सम्मिलित हैं। सभी स्नातकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने दैनन्दिन कार्यों को करते हुए वैदिक धर्म का प्रचार करने सहित वैदिक ध्वज को संसार में ऊंचा फहराने में अपना योगदान करेंगे। गुरुकुल के ब्रह्मचारी कैलाश एवं ब्रह्मचारी ईश्वर ने नैट परीक्षा उत्तीर्ण की हुई है। ऐसे अनेक छात्र गुरुकुल में और भी हैं।

 

                खेल जगत में भी आचार्य धनंजय जी के शिष्यों श्री दीपेन्द्र (सेना), श्री विजय (दिल्ली), श्री सुनीत (कोच हैं), अनुदीप (दिल्ली) एवं दीपक कोच व टीचर के रूप में अपने सेवायें दे रहे हैं। अभी तक गुरुकुल के 8 विद्यार्थी पी.एच.डी. कर चुके हैं व कुछ की पी.एच.डी. पूरी होने वाली है। पी.एच.डी. करने वाले सभी छात्र जेआरएफ अथवा नैट परीक्षा उत्तीर्ण कर पी.एच.डी. करते हैं। इससे गुरुकुल के विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है। जिस प्रकार आचार्य धनंजय जी का दिन प्रतिदिन शिक्षा एवं सामाजिक जगत में अनुभव व ज्ञान बढ़ रहा है, उससे अनुमान है कि आने वाले समय में इस गुरुकुल व इसके विद्यार्थियों को इससे बहुत लाभ मिलेगा।

 

                उत्तराखण्ड आर्य वीर दल का कार्यालय गुरुकुल पौंधा में ही है। आचार्य जी इस दल के प्रदेश मंत्री का कार्य करते हैं। गुरुकुल में प्रतिवर्ष राष्ट्रीय शिविर लगते रहे हैं। हमने भी इन शिविरों मे जाकर शिविरार्थियों से बातचीत की है। सभी ने इन शिविरों को उपयोगी बताया है। देहरादून के अनेक स्थानों पर भी आचार्य जी समय समय पर शिविरों के माध्यम से बच्चों को वैदिक धर्म की शिक्षा के साथ शारीरिक उन्नति का प्रशिक्षण दिलाते रहते हैं। ऐसे ही आर्यसमाज डोभरी में एक शिविर के समापन समारोह में हम भी उपस्थित हुए थे। यह कार्यक्रम भी अत्यन्त प्रेरणादायक एवं सराहनीय आयोजन था।

 

                गुरुकुल पौंधा साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में भी सक्रियता से कार्य कर रहा है। गुरुकुल से अनेक वर्षों से एक उच्चस्तरीय मासिक पत्रिका ‘आर्ष ज्योति’ का प्रकाशन किया जा रहा है। आर्यसमाज के पत्र पत्रिकाओं में इस पत्रिका का अग्रणीय स्थान है। इसका समस्त श्रेय आचार्य धनंजय जी सहित पत्रिका का सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य देखने वाले आचार्य शिवदेव जी को है। आचार्य शिवदेव जी गुरुकुल पौंधा के ही ब्रह्मचारी हैं। आपने अपने अध्ययन काल में ही कम्प्यूटर की अनेक उपयेागिताओं का अध्ययन किया। आप पत्रिका व पुस्तकों की प्रेस प्रति स्वयं ही तैयार कर लेते हैं। बड़े बड़े विशेषाक एवं ग्रन्थ भी आप ही तैयार करते हैं। आप कम्प्यूटर सहित आधुनिक संचार व्यवस्था का भी समुचित ज्ञान रखते हैं। इस वर्ष कोरोना रोग के कारण गुरुकुल का माह जून, 2020 का वार्षिकोत्सव परम्परागत रूप से आयोजित नहीं किया जा सका। आपने संचार प्राणी के अपने ज्ञान एवं अनुभव का प्रयोग कर गुरुकुल में आयोजित वेद पारायण यज्ञ तथा प्रवचनों सहित देश विदेश में बैठे आर्यसमाज के एक दर्जन से अधिक विद्वानों व भजनोपदेशकों के प्रवचन व भजन गुरुकुल के फेसबुक पृष्ठ के द्वारा आनलाइन प्रसारित कर आर्यसमाज में एक नए युग का सूत्रपात किया है। आचार्य शिवदेव जी अपने अध्ययन को करते हुए गुरुकुल के बच्चों को पढ़ाते भी हैं और कार्यालय सहित गुरुकुल से जुड़े अनेक कार्यों के प्रति भी समर्पित हैं। इनका व्यवहार व सेवाभाव तथा विद्वानों के प्रति सम्मान की भावना प्रशंसनीय है। हमें अपने इस युवा ब्रह्मचारी से बहुत आशायें हैं। यह भविष्य में आर्यसमाज को ऊंचाईयों पर ले जाने में सक्षम हैं, ऐसा हमें लगता है। इसके लिये हम इन्हें शुभकामनायें देते हैं।

 

                गुरुकुल में आर्ष ग्रन्थों के प्रकाशन की व्यवस्था भी है। समय समय पर यहां से व्याकरण विषयक उच्च कोटि के उपयोगी ग्रन्थों का प्रकाशन किया जाता है। आर्यजगत के विद्वानों के उपयोगी एवं महत्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन भी निरन्तर होता रहता है। इस कार्य में श्री शिवदेव आर्य जी का प्रशंसनीय योगदान रहता है। यह कार्य आचार्य धनंजय जी स्व. श्री नारायण मुखर्जी, स्व. आचार्य भीमसेन वागीश, स्व. पं. राजवीर शास्त्री, डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. यज्ञवीर जी, डा. सुद्युम्नाचार्य जी, पं. युधिष्ठिर, प्रो. डा. विजय पाल प्रचेता शास्त्री आदि अनेक विद्वानों की संगति एवं प्रेरणाओं से सम्पन्न करा रहे हैं। मनुष्य के सभी कर्मों का महत्व एवं प्रभाव होता है। अतः इन सभी कार्यों से भविष्य में आर्यसमाज तथा वैदिक धर्म को लाभ होगा, ऐसी हम आशा करते हैं।

 

                आर्यसमाज के गुरुकुलों के बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्तियां समाज में प्रचलित रही हैं। बहुत से लोग यह समझते हैं कि गुरुकुल में संस्कृत अध्ययन के अतिरिक्त और कुछ नहीं होता। यह भ्रान्ति सर्वथा निराधार है। गुरुकुल के बच्चों को आधुनिक शिक्षा से भी परिचित कराया जाता है। जून, 2000 में सम्पन्न गुरुकुल के उत्सव का विश्व में आनलाइन प्रसारण इसका एक नवीन उदाहरण है जिससे इस विषयक सभी भ्रम दूर किये जा सकते हैं।

 

                आचार्य धनंजय जी के जीवन का एक प्रमुख कार्य लगभग एक वर्ष गुरुकुल पौंधा में आयोजित राष्ट्रीय गुरुकुल महोत्सव था जिसमें गुरुकुल परिषद से जुड़े 100 से अधिक गुरुकुलों के 400 बच्चों ने भाग लिया था। उच्च कोटि अधिकारी तथा संस्कृत से जुड़े प्रतिष्ठानों के शिक्षाविद आचार्य आदि इस अवसर गुरुकुल महोत्सव में पहुंचे थे। बच्चों ने अनेक विषयों पर यहां व्याख्यान व प्रस्तुतियां दी थी। अनेक प्रकार की संस्कृत की परीक्षायें व प्रतियोगितायें आयोजित की गईं थी जिसमें उत्तीर्ण छात्रों को पुरस्कृत किया गया था। देश के इतिहास में आर्यसमाज के अन्र्तगत यह पहला इस प्रकार का आयोजन था जो अत्यन्त सफल रहा था। इस महोत्सव की योजना बनाने, उसे क्रियान्वित करने, देश भर के अधिकांश गुरुकुलों का भ्रमण करने के परिश्रमजन्य कार्य को आचार्य धनंजय जी ने जिस भावना व निष्ठा से पूरा किया वह नमन एवं प्रशंसा केयोग्य है। उनका यह कार्य अन्य गुरुकुलों के आचार्यों के लिए प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय भी है। ऐसे वृहद स्तर का अयोजन करना कोई साधारण कार्य नहीं था। जो लोग यहां इस आयोजन में पहुंचे थे, उनके हृदय पर इस आयोजन की महत्ता अंकित है। प्रायः सभी गुरुकुलों के आचार्य इस आयोजन में उपस्थित हुए थे। हमें भी सभी आचार्यों व गुरुकुल प्रेमियों के दर्शन कर अतीव लाभ हुआ था। इस वृहद आयोजन के लिये भी आचार्य धनंजय जी समूचे आर्यसमाज की ओर से प्रशंसा के पात्र हैं। यह भी ज्ञातव्य है देश के लगभग 220 में से 100 गुरुकुल गुरुकुल परिषद से जुडे़ हैं। अगले चरण में शेष गुरुकुलों को जोड़ने की भी योजना है।

 

                गुरुकुल के संचालन में आचार्य धनंजय जी को जो सफलता मिली है उनमें उनके परम सहयोगी आचार्य चन्द्रभूषण शास्त्री जी का प्रशंसनीय सहयोग एवं योगदान है। आप एक सरल तथा सौम्य स्वभाव के साधु प्रकृति के आर्य युवक हैं। आपने भी अपना जीवन गुरुकुलीय परम्परा को आगे बढ़ाने में लगाया है। गुरुकुल की समस्त उन्नति में एक मौन साधक के रूप में आप कार्य करते हैं। आचार्य धनंजय जी की अनुपस्थित में आप उनके समस्त कार्यों व दायित्वों का निर्वहन करते हैं। यदि आचार्य चन्द्रभूषण जी की उपमा देनी हो तो पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार के आचार्य बालकृष्ण जी से दी जा सकती है। जिस प्रकार आचार्य बालकृष्ण स्वामी रामदेव जी के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं तथा जिस प्रकार उनका पतंजलि योगपीठ की सफलता में प्रमुख योगदान है, इसी प्रकार आचार्य बालकृष्ण जी के समान आचार्य चन्द्रभूषण शास्त्री जी की गुरुकुल पौन्धा में भूमिका है। वर्तमान में आचार्य धनंजय जी को आचार्य डा. यज्ञवीर जी, आचार्य शिवकुमार वेदि सहित आचार्य शिवदेव आर्य जी का प्रमुख रूप से सहयोग प्राप्त है। इन सबके सहयोग से गुरुकुल उन्नति के पथ पर अग्रसर है। हमें गुरुकुल-पौन्धा से वैदिक धर्म एवं संस्कृति के प्रचार प्रसार की बहुत अपेक्षायें हैं। हम आशा करते हैं आचार्य धनंजय जी ऋषि दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, पं. लेखराम, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती आदि महान आत्माओं से प्रेरणा लेते रहेंगे और उन्हीं के मार्ग का अनुसरण करेंगे। जन्म दिवस पर आचार्य धनंजय जी को बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः09412985121


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