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जीवोत्थान परिवार की पर्यावरण प्रिय परंपरा तथा हिन्दी की महिमाभिव्यक्ति कार्यक्रम

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13 Sep 18
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उदयपुर जीवोत्थान संस्थान में संरक्षक महर्षि यादवेन्द्र द्विवेदी के नेतृत्व में आगामी हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में त्रिदिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। महर्षि जीवोत्थान ने विविध साक्षरता कार्यक्रमों तथा राष्ट्रजनहित योजनाओं के साथ जीवनशैली में आदर्श स्थापित करने में समग्र राष्ट्रोत्थान पक्ष में हिंदी की उपादेयता एवं महिमा पर विचार व्यक्त किये। सुगम साहित्यकार द्विवेदी द्वारा रचित साहित्य पर कार्य गोष्ठी में मंथन किया जाएगा तथा हिंदी के प्रचार-प्रसारार्थ योजना बद्ध क्रियान्विति की जाएगी। महर्षि द्विवेदी ने बताया कि जीवोत्थान परिवार जीवोत्थान व पर्यावरण संरक्षण में प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष अपनी परंपरा निभाता है ।सभी पर्वोत्सवों के आयोजन पर्यावरण संरक्षण व सन्तुलन की भावनानुसार आयोजित किया जाता है। विगत लगभग 40 वर्षों से संपर्क में आये हजारों सज्जनों को पेड़ - पौधों को पानी प्रतिदिन पिलाना, जीवदया व पर्यावरण संरक्षण आदि के क्रम में सीधी जन सहभागिता की जारही है। बिना किसी के विरोध करते हुए स्वयं पालन क्रम में अनावश्यक रंगों ,तिलकाचार, अनावश्यक लकड़ी जलन प्रदूषण पटाखों जन्य जल-वायु-भू आदि संभावित प्रदूषण विभिन्न आयोजनों में व्यक्तिगत पूर्ण सादगी बरत रहा है। अतः इन्हें तदनुरूप मनाते हुए 1974 से मात्र प्रादेश मात्र मिट्टी के गणेशजी बनाने की प्रथा तथा कुछ वर्षों से इन्हें घर में ही विसर्जित कर उस मिट्टी को सुखा दिया जाता है एवं पुनः उसी पवित्री मिट्टी का सदुपयोग की परंपरा चला दी है।द्विवेदी ने बताया कि मिट्टी के गणेश बनाने की परंपरा कुछ पीढि़यों से द्विवेदी परिवार में प्रचलित है। विविध आयोजनों में माल्यार्पण, अनावश्यक पत्तियों के तोड़ने आदि की प्रथा नहीं है। पर्यावरण सन्तुलन तथा ब्रह्माण्डोत्थान-भावार्थं क्रम में सूर्योदय पूर्व दैनिक विविध यज्ञ विगत कई वर्षों से किया जाता है। जीवोत्थान परिवार ने सभी पर्वोत्सव पूर्ण सादगी पर्यावरण संरक्षण तथा सन्तुलन एवं मानवीय उच्चादर्श पूर्वक मनाने की परंपरा बनायें रखने की बात कही।
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