उदयपुर । तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन में आचार्यश्री सुनीलसागर के सुशिष्य सुमित्र सागर महाराज ने प्रात:कालीन धर्मसभा में कहा कि संसार में मनुष्य जीवन अति दुर्लभ है। हमें मनुष्य यौनी मिली है तो इसे काम, वासना, मोह, माया में पड़ कर ही नहीं खत्म करना है। अगर ऐसा करोगे तो मनुष्य जीवन का कोई महत्व नहीं रह जाएगा। मनुष्य जीवन अगर सÈल बनाना है तो काम, वासना, मोह, माया, लोभ सभी को छोड़ कर आत्म साधना करो, तप करो, भगवान की आराधना करो तब जाकर के आपको प्रभु का सानिध्य में मिलेगा।
महाराज ने कहा कि मनुष्य योनी मिली है स्वयं की आत्मा का कल्याण करने के लिए। इसका भरपूर लाभ उठाओ। परोपकार की भावना करो, धर्म प्रभावना करो, दीन- दुखियों की मदद करो, जीव दया करो। वो सभी काम करो जिससे आत्मा निर्मल बनती है, आत्मा का कल्याण होता है। शरीर तो एक दिन साथ छोड़ देगा और आत्मा भटकती रहेगी। हमें आत्मा का कल्यण करना है। तप और साधना यह सभी मोक्ष के मार्ग हैं, प्रभु से निकटता के मार्ग हैं इन मार्गों से ही आत्मा के कल्याण का मार्ग है। इसलिए तप साधना से अपने जीवन को सार्थक बनाते हुए आत्मा का कल्याण करो।
सेठ शांतिलाल नागदा ने बताया कि धर्मसभा में पूर्व आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के सभी पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण किया गया। उसके बाद शांतिधारा, दीप प्रज्वलन, सुनीलसागाजर महाराज ससंघ की अद्वविली की गई। धर्मसभा में मंगलाचरण दीदी पूजा हण्डावत परिवार ने किया जबकि संचालन बाल ब्रह्मचारी विशाल भैया ने किया।
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