उदयपुर । हुमड़ भवन में जिनसहस्रनाम विधान पूजन के दौरान आयोजित धर्मसभा में मुनिश्री धर्मभूषणजी ने कहा कि मनुष्य की असीम इच्छाएं ही पतन का कारण बनती है और सब कुछ छोड़ देने की इच्छाएं शिव बना देती है। इन्सान की जैसी कामना होती है वैसा ही उसका काम होता है। मनुष्य की इच्छाएं असीमित हैं। अगर उसकी इच्छाएं पूरी नहीं होती तो जीवन में कषाय बढ़ता है, और इच्छाएं पूरी हो जाती है तो लोभ बढ़ जाता है। इच्छाएं कभी कम नहीं होती है। इच्छाएं तो आग में घी का काम करती है। तृष्णाएं इच्छा को बढ़ाती रहती है। इच्छा को रोकने के लिए तृष्णा को रोकना आवश्यक है। तृष्णा को रोकने के लिए मन पर नियंत्रण करना होता है। जीवन में साधु बन पाओ या न बन पाओ लेकिन सन्तोषी जरूर बन जाना क्योंकि सन्तोषी प्राणी सदा सुखी रहता है।
मंजू गदावत ने बतायाकि प्रात: पूजा, अभिषेक, शांति धारा एवं जिनसहस्रनाम विधान पूजन हुआ। सुमतिलाल दुदावत ने बताया कि प्रात: 108 सौधर्म इन्द्रों के द्वारा चमत्कारिक सहस्रनाम विधान हुआ। शाम को आचार्यश्री की मंगल आरती के बाद रात्रि 8 बजे से भव्य गरबा हुआ जैन जागृति महिला मंच की मंजू गदावत, लीला कुरडिय़ा, विद्या जावरिया की देखरेख में जैन समाज के श्रावक- श्राविकाओं ने उत्साह एवं उमंग के साथ भाग लिया।
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