कुछ वर्षो पहलें तक नगरी पंचायत के बिलिया गांव के कन्हैयालाल कुमावत कारीगर का कार्य करते थे, घर में शादी शुदा दो लडके, पोते पोतियां और भरा पुरा परिवार। कन्हैया लाल ने खेती की जमीन को पहले बच्चों और पत्नि के भरोसे ही छोड रखा था। वर्ष २०१२ में हिन्दुस्तान जंक की समाधान परियोजना के लिए गांव में होने वाली किसानों की मासिक बैठक में कन्हैया लाल निंबू की बाडी लगााने को प्रेरित हुए और अपनी ३ बिघा जमीन में से आधे बिघा जमीन पर ४० पौधे निंबू के लगाना निष्चित किया। इस आधे बिघा जमीन पर इससे पहले करीब ५ बोरी गेंहूं और मक्का की फसल होती थी। करीब चार वर्ष के इंतजार के बाद समय था निबूं की बाडी से फल लेने का और तब पहले ही साल बाडी से उन्हें करीब ४ हजार की आय हुई। दूसरें साल करीब १० क्वींटल निंबू और अच्छे भाव से उन्हें ४५००० की आय हुई, इस तरह निंबू की उपज लगातार बढती गयी और आज उन्हें १५ क्विंटल से भी अधिक उपज हो रही है। कन्हैया लाल अपनी निंबू की बाडी से अब तक १.२५ लाख की आय प्राप्त कर चूकें है। अब उन्होंने कारीगर का काम बंद कर पूरी तरह कृशि पर ध्यान देना शुरू कर इसी में अपनी सारी मेहनत लगा दी है जिसमें उनकी पत्नि ष्यामूं का भी पूरा सहयोग है। हिन्दुस्तान जिंक द्वारा कन्हैयालाल को सिर्फ पौधे ही उपलब्ध नहीं कराए बल्कि सहयोगी संस्था बायफ के सहयोग से उन्हें आधुनीक तकनीक से खेती करने के गुर सिखाने के साथ ही निंबू के पौधो में अच्छी पैदावार के लिए रखरखाव, देषी खाद बनाने की ट्रेनिंग भी दी गयी। कन्हैयालाल महाराश्ट्र के उरलीकांचन, गुजरात के आनंद और राजस्थान के पुश्कर में आधुनिक खेती के लिए प्रशिक्षण हेतु जा चुके है। कन्हैयालाल बताते है कि खेती में बाडी के नवाचार के बाद उनकी आय में तीन गुना तक वृद्धि हुई है।
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