उदयपुर ,एक व्यक्ति प्रतिदिन ग्यारह ग्राम प्लास्टिक कचरे का विसर्जन कर रहा है , वंही प्रति सप्ताह लगभग पांच ग्राम प्लास्टिक खा भी रहा है , मिटटी , पानी , फसलें , दूध सभी प्लास्टिक से प्रदूषित है , व्यक्तिगत प्रयासों व पर्यावरण अनूकुल जीवन शैली (लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट) से ही प्रकृति में प्लास्टिक पोलीथिन का कचरा कम होगा
यह विचार विद्या भवन पोलिटेक्निक के प्राचार्य पर्यावरण विद डॉ अनिल मेहता ने रेलवे ट्रेनिंग सभागार में देश भर से आये एक हजार रेलवे प्रशिक्षु कार्मिकों को सबोधित करते हुए व्यक्त किये । संस्थान निदेशिका भारतीय रेल सेवा की अधिकारी मैत्रेयी चारण ने व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में जल संरक्षण , उर्जा संरक्षण व जैव विविधता संरक्षण के उपायों को अपनाने का आग्रह किया
मेहता ने कहा कि पॉलीथिन व प्लास्टिक के मूल घटक पेट्रोलियम उत्पाद है। इन्हें लचीला ( फ्लेक्सिबल), खींच सकने वाला ( स्ट्रेचेबल), अधिक समय तक काम मे आ सकने वाला ( ड्यूरेबल) , मजबूत, पारदर्शी या रंगीन बनाने एवं इसके सम्पूर्ण प्रदर्शन ( परफॉर्मेंस) को अच्छा बनाने , मुलायम, चिकना हो और अधिक वजन से टूटे नही , इसी प्रकार की कई विशेषताओं ( फंक्शनल प्रॉपर्टीज) को विकसित करने के लिए पॉलीथिन की निर्माण प्रक्रिया के दौरान इसमे कई कार्बनिक व अकार्बनिक रसायन मिलाए जाते है। इनमें थेलेट्स, कैडमियम, कोबाल्ट, क्रोमियम, लेड, बीपीए सहित विविध प्रकार के दर्जनों विषैले (टॉक्सिक) रसायन सम्मिलित है।
मेहता ने बताया कि यद्यपि प्लास्टिक व पोलिथीन जैविक रूप से विघटित नही होते लेकिन यह फोटोडिग्रेडेबल अर्थात सूर्य किरणों , ताप व अन्य वातावरणीय कारकों से इसका हानिकारक रूप में विघटन होता है।इसमें उपस्थित विषैले रसायन पिघल कर ( लीच होकर) मिट्टी व पानी मे चले जाते है।
खुले मे विसर्जित पोलेथिन के विषैले रसायन व माइक्रोप्लास्टिक -नेनो प्लास्टिक कण मृदा, मिट्टी( सॉइल) की उपजाऊपन सरंचना, पोषक तत्वों का प्रवाह, लाभदायक मृदा जीवाणुओं की संख्या व गतिविधि सहित मिटटी की मूल प्रकृति को तहस नहस करते है। ये विषैले तत्व व कण पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते है। यही कारण है कि अनाज से लेकर फलों, सब्जियों में अब पॉलीथिन रसायनों का संदूषण है एवं इनमें माइक्रोप्लास्टिक है। खुले में विसर्जित होने पर इन्हें पशु खा लेते है। जो पशुओं को बीमार तो करते ही है, उनसे मिलने वाले खाद्य पदार्थ गंभीर रूप से संदूषित ( कोंटामिनेटेड) होते है। इस दृष्टि से निरामिष व सामिष , शाक व मांस दोनों प्रकार के खाद्य पदार्थ जहरीले हो गए है। गाय के दूध से लेकर प्रसूताओं के दूध सभी मे पॉलीथिन का संदूषण है।जल स्त्रोत -कुंवो, बावड़ियों, नलकूप , पोखर , तालाब , नदी में जाकर पॉलीथिन के विषैले रसायन व माइक्रोप्लास्टिक कण पानी को प्रदूषित करते है। इससे मछलियों व अन्य जलचरों व जलीय वनस्पति में पॉलीथिन रसायन की मात्रा खतरनाक स्तर तक होती जा रही है।
मेहता ने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक कण हमारे शरीर मे जमा हो रहे है। ये लिवर, किडनी , पेट के लिए तो कैंसरकारी व मस्तिष्क रोगों के कारक तो है ही , मुख्यतया इनका दुष्प्रभाव पुरुषों व महिलाओं की प्रजनन प्रणाली ( रिप्रोडक्टिव सिस्टम) , अन्तःस्त्रावी ग्रंथि प्रणाली( एंडोक्राइन ग्लैंड सिस्टम) व स्नायु तंत्र ( नर्वस सिस्टम)पर पड़ता हैं । ये विषैले रसायन एस्ट्रोजन एक्टिव व एंडोक्राइन डिसरप्टर है। ये हमारे शरीर की प्राकृतिक हॉरमोन व्यवस्था पर दुष्प्रभाव डालते है। फलतः नपुसंकता, बांझपन, जननांगों में विकृति, स्तन ,गर्भाशय व प्रोस्टेट के कैंसर, बालिकाओं में जल्दी मासिक धर्म आना, किशोरों - युवाओं में अति सक्रियता व मादाओं जैसे लक्षण, थायरोइड संबंधी व डायबिटीज बीमारियां आम हो गई है। माइक्रोप्लास्टिक व नेनो प्लास्टिक हमारे श्वसन द्वारा भी शरीर मे प्रवेश कर श्वसन संबंधी रोग पैदा कर रहे है।
यही नही, खुले में विसर्जित हुए पॉलीथिन प्लास्टिक से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोक्साइड, मीथेन, इथाइलीन
प्रोपेन सहित कई विषैली गैसे निकलती है। ये जलवायु परिवर्तन संकट को और बढ़ाती है व मानव स्वास्थ्य के लिए जहरीली है।जब कचरा स्थलों पर पॉलीथिन अन्य कचरे के साथ जलता है तो फ़्यूरेन, डाईओक्सिन सहित कई विषैली गैस बनती है जो ऊपर वर्णित समस्त रोगों की तीव्रता को बढ़ाती है।
ये विषैली गैसे वनस्पति - पेड़ पौधों को भी गंभीर हानि पहुँचाती है।पॉलीथिन खुली नालियों , सीवर में जमा होकर प्रवाह को बाधित करती है
मेहता ने कहा कि मानव समाज, वनस्पति जगत , जीव जगत सहित सम्पूर्ण प्रकृति के लिए संकटकारी इन समस्त समस्याओं का सरल समाधान है कि हम पॉलीथिन कचरे को कम करें । पॉलीथीन कचरे को एक बोतल में बंद कर " इकोब्रिक" बनाये। और फिर इस इकोब्रिक का कोई रचनात्मक, उत्पादक ( प्रोडक्टिव) उपयोग करे। दीवार, फुटपाथ, गमले, कचरा पात्र, फर्नीचर से लेकर सड़क निर्माण व सीमेंट निर्माण संयंत्रों की भट्टियों में इकोब्रिक का उपयोग किया जा सकता है। प्लास्टिक से बनी सड़क ज्यादा मजबूत व ड्यूरेबल होती है।
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