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दादाबाड़ी स्थित वासुपूज्य मंदिर में साध्वी नीलांजना श्रीजी का प्रवचन

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09 Aug 22
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दादाबाड़ी स्थित वासुपूज्य मंदिर में साध्वी नीलांजना श्रीजी का प्रवचन

उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मंदिर ट्रस्ट की ओर से वासुपूज्य मंदिर दादाबाड़ी में साध्वी डॉ. नीलांजना श्रीजी ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि परमात्मा ने अपने आत्म ज्ञान, कैवल्य ज्ञान में संसार का स्वरूप जाना है, वैसा ही स्वरूप हमारे समक्ष रखा है। संसार में सब वस्तुएं मिलना, साधन-सामग्री मिलना, धन वैभव, पद प्रतिष्ठा मिलना बहुत सुलभ है। इसके लिए विशेष पुरुषार्थ नही करना पड़ता। मेरे जीव ने हर भव में पदार्थों को पाया। पदार्थ पाने की खुशी में रोया। जब ये चले गए तो वियोग में रोया। अनादिकाल की यात्रा में दो ही काम किये। किसी को ठगा तो खुशी और किसी ने ठग लिया तो रोया। सब कुछ मिलना सरल है। चक्रवर्ती के सुख, साम्राज्य मिलना सरल लेकिन चार चीजें मिलना अति दुर्लभ है। चाहे पुरुषार्थ से या पढ़ने से मिले।
उन्होंने कहा कि सांसारिक व्यक्ति के लिए लाड़ी, गाड़ी और बाड़ी जरूरी है। इन सबसे ज्यादा चार चीजें जरूरी है। इनमें मनुष्यत्व यानी मनुष्य जीवन, प्रवचन श्रवण करना, इसमें जिन शासन मिलना, आर्य देश मिलना जरूरी है।एक माला नवकार नही तो फिर जिन शासन कैसा? निर्वाण तक जाने के लिए मनुष्य गति चाहिए। स्वस्थ शरीर, आर्य देश में जन्म हो। जैना (विवेक) से तीर्थंकरत्व का जन्म। संसार में रहते हुए विवेक से काम करें। मन से मंदिर जाओ तो परमात्मा हो जाओ लेकिन मन तो बाहर घूमता है।
साध्वी दीप्तिप्रज्ञा श्रीजी ने प्रार्थना प्रस्तुत की वहीं साध्वी योगरुचि श्रीजी ने भी विचार व्यक्त किये।


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