GMCH STORIES

आयुर्वेद विरासत का संरक्षण व विकास आवश्यक: डॉ. भटनागर

( Read 6715 Times)

19 Apr 21
Share |
Print This Page

आयुर्वेद विरासत का संरक्षण व विकास आवश्यक: डॉ. भटनागर

उदयपुर | भारतीय अष्टांग आयुर्वेद चिकित्सा व परंपरागत सुगम चिकित्सा पद्धति हमारी विरासत है, आयुर्वेद के सिद्धांतों पर चलकर आरोग्य प्राप्त कर प्राचीन काल में लोगों ने पुरुषार्थ (धर्म ,अर्थ ,काम ,मोक्ष )को प्राप्त किया था किंतु वर्तमान में उत्पन्न भयंकर रोग आरोग्य को नष्ट कर रहे हैं,ऐसे में जीवन को बचाने के लिए हमारे पहाड़ों ,जंगलों में पाई जाने वाली विलुप्त होती महत्वपूर्ण औषधियों, वनस्पतियों के साथ प्राचीन परंपरागत चिकित्सा पद्धति तथा आयुर्वेद की शल्य ,  शालाक्य, कायचिकित्सा ,भूत विद्या ,कौमारभृत्य, अगद तंत्र ,रसायन व वाजीकरण स्वरूप अष्टांग आयुर्वेद की समस्त शाखाओं में विशेष अनुसंधान के साथ संरक्षण व आधुनिक तौर पर विकास अत्यंत आवश्यक है ।उक्त विचार भारतीय चिकित्सा विकास परिषद के अध्यक्ष डॉ मनोज भटनागर ने विश्व विरासत दिवस के अवसर पर भारतीय चिकित्सा विकास परिषद उदयपुर द्वारा आयोजित "आयुर्वेद की प्राचीनता एवं आधुनिक युग में महत्व " विषयक ऑनलाइन संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए । मुख्य अतिथि राजस्थान आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी संघ उदयपुर के अध्यक्ष डॉ गुणवंत सिंह देवड़ा ने कहा कि आयुर्वेद अथाह है ,हमारी विरासत है ,मानव मात्र को इसके उद्देश्यों को आत्मसात करना होगा ।
विशिष्ट अतिथि पद से इतिहासकार प्रोफ़ेसर गिरीश नाथ माथुर ने कालक्रम अनुसार आयुर्वेद के विकास की परंपरा पर प्रकाश डाला ।
डॉक्टर संगीता भटनागर ने आयुर्वेद के औषधीय संसाधनों पहाड़ ,जंगलों,  आयुर्वेद के मूल ग्रंथों को विरासत की सूची में सम्मिलित कर उनके संरक्षण व विकास की व्यवस्था पर जोर दिया । वैद्या सावित्री देवी भटनागर ,डॉ महेश शर्मा ने भी अपने विचार रखे ।संगोष्ठी का संयोजन शिरीष नाथ माथुर ने किया ।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like