नारी ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है। "नारी तु नारायणी" कथन यह स्पष्ट करता है। पौराणिक ग्रंथों से लेकर आधुनिक समाज में महिला शक्ति को स्वीकार किया गया है। नारी परिवार में जहां बच्चों के लिए पहली गुरु, संस्कार निर्माण करने वाली, तो देश और समाज में आदर्श नागरिक बनाने में अहम भूमिका अदा करती है। महा कवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा है, हे नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ—पग—तल में।। पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।। परिवार निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण तक के मार्ग में नारी का महत्व सर्वोपरि है। समाज निर्माण में नारी हर मोड़ पर अलग-अलग रूपों में होती है। कहीं ममता भरी मां है तो कहीं प्रेम स्वरूपा पत्नी बन पुरुष के जीवन का श्रृंगार है।
संस्कार निर्माण नारी के हाथ
संस्कार निर्माण आज नारी के हाथ में है। मां का आचरण, मां की कही गई बातें बच्चों में संस्कार निर्माण का माध्यम है। नारी की सकारात्मक ऊर्जा, वाणी एवं व्यवहार आधुनिक युग को सतयुग की दिशा दिखाती है।
आज इंटरनेट का युग है। सकारात्मक सोच विचार ही आधुनिकता की असली पहचान होती है। नारी अपने परिवार की रोल मॉडल होती है। बच्चों को उच्च शिक्षा देने के साथ सही संस्कार देने में नारी की अद्वितीय भूमिका है।
मां बनकर जीवन मूल्यों से परिचय करवाती है, बहन के रूप में वह चिरक़ालीन मित्र शुभचिंतक है, पत्नी के रूप में जीवन रूपी डगर पर अनेक भूमिकाओं का प्रतिरूप है, बेटी के रूप में कोमल भावनाओं से परिचय कराती है।
नारी सकारात्मक सोच से संस्कार निर्माण में योगदान दे रही है। भोजन के माध्यम से संस्कार निर्माण में नारी का विशेष योगदान है। नारी का वायब्रेशन खाने में पहुंचता है, जो भोजन के साथ व्यक्ति को सकारात्मक बनाती है।
अभिमन्यु ने गर्भ में ही अपनी मां से ज्ञान प्राप्त किया था। यह एक नारी के ही हाथ में है कि, वह बहुत ही खूबसूरती से अपने बच्चे को आधुनिकता और संस्कारों के कलेवर से सजाकर संस्कार निर्माण में भूमिका निभाती है।
परिवार में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण है। नारी घर परिवार को मंदिर बनाती है। समाज में अपना परचम लहरा रही है। मानव और मानवता को बनाए रखने के लिए नारी के गौरव को समझना आवश्यक है । नारी सर्वश्रेष्ठ है|
आधुनिक नारी उच्च शिक्षा प्राप्त कर हर क्षेत्र में सिक्का जमा चुकी है। वह आधुनिक होने के साथ संस्कारशील भी है। जहां वह होम मेकर है वहीं आसमान की ऊंचाइयों को छू रही है। यही संस्कार वह अपने बच्चों में डाल रही है।
इमारत बनाने में समय लगता है, संस्कार के लिए समय व अनुभव चाहिए। संयुक्त परिवार टूटने से बच्चों में संस्कार निर्मित नहीं हो पाते। बच्चे हार-जीत का व्यवहार और दुनिया की बोली सीख जाते हैं, लेकिन संस्कार नहीं।
बालक की प्रथम पाठशाला घर, अध्यापिका और मां होती है। नारी सकारात्मक ऊर्जा व निष्ठा से काम करती है तब स्वत: बच्चों में संस्कार निर्माण होने लगता है। इसके बलबूते एक आदर्श नागरिक के साथ वैभवपूर्ण जीवन शैली बन सकता है
बच्चे की परवरिश में मां की भूमिका महत्वपूर्ण है। जीवन की सफलता के लिए मां एक शक्ति है। मां अगर मान ले की वह अपने बच्चे को सकारात्मकता ही देगी तो बड़ी आसानी से सतयुग की पुनर्स्थापना हो सकती है।
नारी परिवार की नींव है। नारी शिक्षित, स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर है। अपनी निजी और बाहरी दुनिया से प्रतिस्पर्धा के लिए सक्षम है। एक मां गृहिणी, शिक्षिका, उच्च अधिकारी, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ, फौजी, रक्षा व विदेश मंत्री तक है।
संस्कार निर्माण में आज की नारी का बड़ा योगदान है। आज की नारी अपने घर-परिवार के साथ समाज को भी उन्नति और प्रगति के मार्ग पर ले जा रही है। नारी समाज की नींव है। नींव हमेशा मजबूत रहनी चाहिए।
नारी प्रेम, स्नेह और मातृत्व का आधार है। शक्ति का रूप संस्कारों की जननी है। नारी ने आधुनिकता को स्वदेशी पद्धति के साथ अपनाया है। अपने संस्कारों के चलते जीवन के हर क्षेत्र में अलग पहचान बनाने में सफल हुई है।
आज की नारी सकारात्मकता, सहनशीलता, ऊर्जा से भरी है। अच्छे संस्कारों से अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करती है। सहनशील होकर परिवार में एकता बनाती है। अच्छी गृहिणी के साथ विविध क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रही है।
नारी का योगदान परिवार की जरूरतों के ख्याल रखने के साथ भारतीय संस्कृति, संस्कारों का आचरण आने वाली पीढ़ी को मिले और वह चरित्रवान, प्रामाणिक व धैर्यशील बनाने में है। तरक्की के साथ नारी ने परिवार को महत्व दिया है।
आज के आधुनिक परिवेश में बाहर जहां सभी तरह की ऊर्जाएं मौजूद है, उस स्थिति में नारी का संस्कार निर्माण की भूमिका और भी अहम् हो जाती है। नारी ही है जो मां, दादी, बुआ आदि रूपों में बच्चों को सही गलत का अहसास कराती है।