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8 साल के विचारण के बाद न्यायालय ने माना महिला को चेक अनादरण के मामले में निर्दोष, बरी किया

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20 Feb 21
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8 साल के विचारण के बाद न्यायालय ने माना महिला को चेक अनादरण के मामले में निर्दोष, बरी किया

उदयपुर। विश्वास व धोखे में रखकर चेक पर हस्ताक्षर करा कर उसका दुरुपयोग करने के कई मामले न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन देश में बने सूचना के अधिकार कानून के सशक्त होने के कारण एक निर्धन महिला को 8 साल न्यायालय की  कार्यवाही भुगतने के बाद आखिर में न्याय मिला और उसे विशिष्ट न्यायाधीश चेक अनादर इन मामलों की न्यायाधीश ने दोषमुक्त किया है।

मामले के अनुसार उदयपुर के सेक्टर 11 निवासी उमेद सिंह तलेसरा पुत्र सुजान सिंह तलेसरा ने गोवर्धन विलास निवासी श्रीमती मोहनी बाई पत्नी रमेश लाल के विरुद्ध वर्ष 2013 में चेक अनादर का एक परिवार न्यायालय में प्रस्तुत किया जो 8 साल की विचारण प्रक्रिया से गुजरते हुए विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट एन आई एक्ट केस संख्या 5 को वास्ते सुनवाई स्थानांतरित किया गया।

मामले में परिवादी उमेश सिंह तलेसरा ने अपने अधिवक्ता जीवन सिंह सिरोया के माध्यम से अभियुक्तों मोहनी बाई पर ₹50000 घरेलू आवश्यकता बताकर ऋण लेने तथा इसके भुगतान बाबत एक चेक 053356 बैंक इलाहाबाद शाखा विलास का का देना बताते हुए का परिवाद प्रस्तुत किया परिवाद में बताया कि परिवादी उमेश सिंह तलेसरा ने निर्धारित समय पर ऋण अदा नहीं करने पर जब चेक ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स शाखा आलोक स्कूल में प्रस्तुत किया तो वह राशि पर्याप्त नहीं होने की पृष्ठांकन के साथ पुनः लौटाया जिस पर परिवादी उम्मीद तलेसरा ने मोहनी बाई पर चेक अनादर की धारा 138 के तहत राशि नहीं होने के बावजूद चेक देने का आरोप लगाते हुए एक परिवाद न्यायालय में प्रस्तुत किया।

इस मामले में अभियुक्त मोहनी बाई सुवालका की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता हरीश पालीवाल ने सूचना के अधिकार के तहत चेक संख्या 053356 किस व्यक्ति का है की जानकारी इलाहाबाद बैंक से मांगी तथा इस मामले में गोवर्धन विलास थाना पुलिस में भी एक मोहनी बाई की ओर से परिवाद प्रस्तुत कर निष्पक्ष जांच करवाई।

अधिवक्ता हरीश पालीवाल कॉम पुलिस जांच एवं सूचना के अधिकार में मिली जानकारी पर वह हतप्रभ रह गए और उन्होंने उसी जानकारी को विचारण के दौरान न्यायालय के समक्ष लाकर अभियुक्तों मोहनी बाई को न्याय दिलाने का प्रयास किया।

अंतिम बहस के दौरान अभियुक्त मोहनी बाई की ओर से अधिवक्ता हरीश पालीवाल ने बताया कि वादग्रस्त चेक मोहनी बाई का नहीं हो कर किसी कमला कुंवर के नाम का है तथा खाता भी मोहनी बाई का ना होकर कमला कुंवर नाम की महिला का है। इस समर्थन में अधिवक्ता हरीश पालीवाल ने सूचना के अधिकार व पुलिस जांच की रिपोर्ट भी न्यायालय में प्रस्तुत की।

न्यायालय में बयान के दौरान अभियुक्त मोहनी बाई ने भी स्वयं अपने बयानों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया कि वह उमेश सिंह तलेसरा को नहीं जानती और ना ही कभी उसने किस्तों में पैसे उधार लिए नहीं बैंक में उनका कोई खाता है और नहीं उन्होंने परिवादी उमेद तलेसरा को ही चेक जारी किया है। अभियुक्त अधिवक्ता हरीश पालीवाल ने न्यायालय को यह भी अवगत कराया कि अभियुक्त को चेक अनादर का कोई सूचना पत्र भी नहीं मिला जबकि परिवादी ने सूचना पत्र मिलने की तामील भी गलत तरीके से करवाई है और जिस महिला के माध्यम से तमिल कराई है उस नाम की कोई महिला अभियुक्त के परिजन या घर में है ही नहीं।

न्यायालय में दिए अभियुक्त की ओर से बयान में गवाह ओमप्रकाश ने भी बताया कि उम्मेद तलेसरा व उनकी पत्नी ब्याज पर पैसे देने का व्यवसाय करते हैं तथा उन्होंने कई लोगों को पैसे उधार दे रखे हैं अभियुक्त परिवादी को नहीं जानता और वह निर्दोष है ।

विशिष्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट क्रम संख्या 5 श्रीमती सीमा कुमारी ने इस मामले में परिवादी का परिवाद झूठे आधारों पर मानकर खारिज कर दिया तथा अभियुक्त को निर्दोष मानकर दोषमुक्त कर दिया। न्यायालय ने अपने फैसले में इस बात की भी टिप्पणी की कि चेक अनादर अधिनियम का उद्देश्य विधि पूर्ण सम व्यवहारों को संरक्षण प्रदान करना है संरक्षण प्रदान करना नहीं है ब्याज पर अनेक लोगों को उधार देने से उत्पन्न सम व्यवहारों को गंभीर मानते हुए न्यायालय ने माना कि हस्त गत प्रकरण में परिवादी न्यायालय के समक्ष स्वच्छ हाथों से उपस्थित नहीं हुआ है।

मेरा चेक नहीं होते हुए भी मुझे परिवादी उम्मेद तलेसरा ने ठीक है ना धरण के झूठे मामले में मुकदमा कर फसाया और इसकी वजह से मुझे 8 साल तक न्यायालय में चक्कर लगाने पड़े मैं झाड़ू पोछा कर अपने और अपने परिवार का भरण पोषण करती हूं इसके बावजूद मुझ पर हजारों रुपए उधार देने का झूठा आरोप लगाकर यह मामला दर्ज कराया आखिर में जीत सत्य की हुई मैं न्यायालय का आभार व्यक्त करती हूं

श्रीमती मोहनी बाई सुवालका

चेक अनादर इनके प्रतिदिन न्यायालयों में सौ से डेढ़ सौ मामले प्रस्तुत हो रहे हैं जिनमें अधिकतर चेकों के सिक्योरिटी पेठे व गारंटी पेटे देय चेकों का दुरुपयोग हो रहा है। इस मामले में भी अभियुक्त का चेक नहीं होते हुए भी उसे 8 साल तक न्यायालय की टाइल भुगतनी पड़ी और आखिर में सच की जीत हुई चेक अनादरण के झूठे मामलों पर कोई सख्त कानून बनना चाहिए।


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