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प्रेमचन्द का साहित्य अपने समय के यथार्थ से हमारा साक्षात्कार कराते है - प्रो. हाडा

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30 Jul 20
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प्रेमचन्द का साहित्य अपने समय के यथार्थ से हमारा साक्षात्कार कराते है - प्रो. हाडा

उदयपुर  / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी विवि) के साहित्य संस्थान और माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के संयुक्त आयोजन में प्रेमचन्द जयन्ति की पूर्व संध्या पर संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा की प्रेमचन्द की रचनाएँ सदैव मनुष्यता के पक्ष में खड़ी होती है, उनकी कहानियां छोटी कक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालय के शोध विषयों का हिस्सा होती है। उनके उपन्यास अपने समय के यथार्थ से हमारा साक्षात्कार कराते है इसलिए प्रेमचन्द को आज भी एक कालजयी रचनाकार माना जाता है। मुख्य वक्ता प्रो. माधव हाड़ा ने कहा की प्रेमचन्द हिसां, अहिसां, समाजवाद, साम्यवाद आदि पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए भारतीय परिपेक्ष्य में उसकी व्याख्या प्रस्तुत करते हे। उन्होंने महाजनी सभ्यता नामक निबंध में साहूकार वृत्ति के विरोध में अपने विचार व्यक्त करते हुए भारतीय सर्वहारा वर्ग के पक्ष की बात पर जोर देते है। विशिष्ट अतिथि प्रो. सुनिता साखरे, महाराष्ट्र महिला वि.वि. ने कहा की प्रेमचन्द की रचनाएं मनुष्यों में जागरण की चेतना का प्रसार करती है। उनकी ‘‘कफन’’, ‘‘पूस की रात’’, ‘‘बड़े घर की बेटी’’ विशेष उल्लेख्नीय कहानीयां है जो हमारे सामाजिक परिवेश का उस समय के सत्य को हमारे सामने लाती है। प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने प्रेमचन्द की रचनाओं की पठनीयता पर कहा की उन्हें पढ़ कर हम ठीक वैसे ही नहीं रह जाते है जैसे पढ़ने के पहले होते है। उनकी रचनाएं हमारे विचार तन्तुओं को तुरन्त सक्रिय करती है। हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. मलय पानेरी ने कहा की प्रेमचन्द अपने जीवन के अन्तिम दिनों में आदर्शवाद एवं यथार्थवाद से कुछ दूर होते हुए मार्क्सवाद के करीब दिखाई देते है। यह प्रभाव उनकी रचनाओं में दिखाई देता है। मर्यादा और धर्म के स्थापन की अधूरी इच्छा से ऐसा हुआ। समाज में अपेक्षित बदलाव संभव नहीं हो पा रहा था इसलिए प्रेमचन्द अपनी रचनाओं में एक मर्यादित मोड़ देते हुए दिखाई देते है। संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास ने तथा धन्यवाद डॉ. महेश आमेटा ने दिया। तकनीकी सलाहकार डॉ. चन्द्रेश छतलानी और डॉ. तरूण श्रीमाली थे। इस अवसर पर रीना मेनारिया,, डॉ. राजेश शर्मा, डॉ. ममता पानेरी, डॉ. चुन्नीलाल भगोरा, डॉ. कुसुमलता टेलर मौजुद थे।


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