GMCH STORIES

नाटक स्नेहाधीन ने बिखेरे पारिवारिक रिश्तों के रंग 

( Read 10922 Times)

12 Mar 20
Share |
Print This Page
नाटक स्नेहाधीन ने बिखेरे पारिवारिक रिश्तों के रंग 

उदयपुर| भारतीय लोक कला मण्डल उदयपुर, में होली के स्नेह मिलन के अवसर पर आपसी सामंजस्य और भाई चारे को दर्शाने वाले गुजराती नाटक स्नेहाधीन का सफल मंचन हुआ।
भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि संस्था के गोविन्द कठपुतली प्रेक्षालय में सायं 7ः 30 बजे अशोक पाटोले द्धारा लिखित एवं प्रवीण सोलंकी द्धारा रूपांतरित नाटक ‘‘स्नेहाधीन’’ का मंचन श्री अक्तर सैयद के निर्देशन में गाँधीनगर के दल द्धारा  किया गया।
उन्होने बताया कि नाटक स्नेहाधीन Gujarati culture को दर्शाता एक सामाजिक नाटक है। जिसकी कथा एक सामान्य परिवार पर आधारित है। जिसमें एक पिता परिवार के पालन पोषण के लिए विदेश जाते है तथा काफी समय बाद अपने वतन वापस आते है, परिवार से दूर रहने के कारण उनके पुत्र का उनसे प्र्रेम कम हो जाता है, जिस कारण रिशतो में दरार आ जाती है, पुत्र पिता को गैर- जिम्मेदार (irresponsible) समझने लगता है और वह अपने पिता से खूब नफरत़ करने लगता है, उसके पिता को उसकी यह नफरत उनके घर वापसी पर दिखाई देती है।
इस तनाव और नफरत को देखकर उसके पिताजी ना चाहते हुए भी वापस विदेश जाने का फैसला कर लेते है। इसी दौरान उसके पिता का एक बहुत ही पुराना मित्र उनके घर आता है और अपने मित्र की यह स्थिति देख कर उसके पुत्र से बातचीत करता है और बताता है कि तुम्हारी अच्छी परवरिश और पढ़ाई- लिखाई हो सके इसी कारण तुम्हारे पिता तुम्हारे परिवार से दूर  विदेश (foreign) में इतने लम्बे समय तक रहे, जब यह  सारी हकीकत पुत्र को पता चली तो उसे काफी पछतावा हुआ। और उसने अपने पिता से अपने बुरे बतार्व के लिए क्षमा माँगी और पुनः विदेश नहीं जाने का आग्रह किया। अंत में परिवारर एक दूसरे से भाव विभोर होकर मिलता है। 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like