इतिहास एवं संस्कृति विभाग, माणिक्यलाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ द्वारा बुधवार को एक विस्तार भाषण का आयोजन हुआ। इस विस्तार भाषण के मुख्य वक्ता, डाॅ. अविनाश पारिक, सह आचार्य, प्रेम् विश्वविद्यालय, सरदारशहर थे, आपने ‘‘राजस्थान के इतिहास में शोध के विविध आयाम’’ (Diverse dimensions of research in the history of Rajasthan) पर अपना उद्बोधन दिया।
डाॅ. पारिक ने राजस्थान के इतिहास के शोध को पुनः शोध की आवश्यकता को महसूस कराया, आपने कहा हमनें इतिहास को तीन भागों में बांट कर इसके टुकड़े-टुकड़े कर दिया। क्यों नहीं हम सम्पूर्ण भारत का इतिहास एक साथ लिखे, और इस इतिहास को क्षैत्रिय इतिहास से तुलना कर इतिहास को भारतीय बनाया जाये।
डाॅ. पारिक ने इतिहास लिखने के लिए अनेक विषयों की ओर संकेत किया, जिसे अक्सर शोधकर्ता छोड़ देता है। आपने इतिहास लिखने की शुरूआत, अपने परिवार, समाज, कार्यक्षेत्र, खान-पान, रीति-रिवाज से करनी चाहिए, आपने गांवों के इतिहास पर विशेष जोर दिया।
डाॅ. पारिक ने हमें इतिहास में शोध कार्य के लिए विद्यार्थी को स्नातक स्तर से तैयार करना चाहिए तथा इतिहास विषय को प्रायोगिक बनाया जाना चाहिए। प्रायोगिक स्तर पर विषयों में तुलनात्मक अध्ययन करना विद्यार्थी को आ जाता है, तो विषय की सम्पूर्ण गम्भीरता को समझ जाता है, वही क्षैत्रिय इतिहास पर विशेष जोर दिया।
इस विस्तार भाषण में विभागाध्यक्ष डाॅ. हेमेन्द्र चैधरी ने स्वागत उद्बोधन के साथ राजस्थान के राजनीतिक इतिहास (Political history of Rajasthan)के साथ तत्कालीन समय के सामान्य जन-जीवन के इतिहास के लेखन पर भी जोर दिया।
कार्यक्रम में प्रो. सुमन पामेचा, प्राचार्य, माश्रम, प्रो. नीलम कौशिक, प्रो. मुक्ता शर्मा, डाॅ. पंकज रावल, डाॅ. नारायण सिंह राव, और अनेक विद्यार्थी थे तथा धन्यवाद डाॅ. ममता पूर्बिया ने दिया।