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शिल्पग्राम उत्सव दिन-४

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25 Dec 19
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शिल्पग्राम उत्सव दिन-४

उदयपुर । पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित दस दिवसीय ’’शिल्पग्राम उत्सव-२०१९‘‘ में मंगलवार को मुक्ताकाशी रंगमंच बस्तर बैण्ड की प्रस्तुति भारत की जनजातीय संस्कृति की अनूठी प्रस्तुति बन सकी। दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शक कौतूक भरी निगाहों से कलाकारों की वेशभूषा, आभूषण और उनके वाद्य यंत्रों को देख कर हतप्रभ से थे। वहीं हाट बाजार में शिलप वस्तुओं के खरीददारों की खासी भीड रही।

उत्सव के चौथे दिन मेला प्रारम्भ होने के साथ बडी संख्या में लोग शिल्पग्राम पहुंचे तथा हाट बाजार में खूब खरीददारी की। हाट बाजार में पूर्वोत्तर राज्यों से आये शिल्पकारों की कलात्मक वस्तुएँ लागों के आकर्षण का केन्द्र बनी। इनमें पत्थर के चाय के कप, प्लेट, सर्विंग बाउल आदि, बांस व बेंत के बने फूलदान, डेकोरेटिव फर्नीचर, गर्म व ऊनी वस्त्र, ऊनी टोपियाँ, आर्टिफिशियल फ्लॉवर्स, बुके आदि को लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया वहीं पूर्वोत्तर के परिधान, भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहे। शाम ढलने के साथ ही शिल्पग्राम में लागों की आवक में इजाफा देखने को मिला तथा पूरे हाट बाजार में जगह-जगह लोग अपने परिजनों के साथ खरीददारी करते नजर आये।

शिल्पग्राम के वस्त्र संसार, व अलंकरण में खरीददारों की देर शाम तक खासी रौनक रही। समूचा हाट बाजार लोगों की उपस्थिति से गुलजार स हो उठा। इसके अलावा मेले में लोगों ने विभिन्न व्यंजनों का रसास्वादन किया।

 

शाम को मुक्ताकाशी रंगमंच पर लोक कलाकर्मी पद्मश्री डॉ. अनूप रंजन पाण्डेय के नेतृत्व में बस्तर से आये कलाकारों ने लगभग पचास मिनट तक अपनी संस्कृति का अनूठा प्रदर्शन किया जिसमें ६० से अधिक प्राचीन एवं दुर्लभ हो चुके वाद्यों की संगत होती हैं जिनमे पेंडुल ढोल, पेन ढोल, गूटा पराय, नर पराय, ओझा पराय,हुलकी मांदरी, मुंडा बाजा, ताता -पूती, कासन ढोल, कुंडिड, खंझेरी, गोगा ढोल, मांदरी, नंगारा, मिरगिन ढोल,गोती बाजा, डंडार ढोल ,धनकुल बाजा, सुलुड, वेरोटी, बोपोर, बांस, गूगूनाडा, नकडेवन, अकूम, तोडी, नेफरी, कच टेहन्डोर, पक टेहन्डोर, किकिड, ढूसिर, डुमिर, किंदरा, ढुङ्गरु, सारंगी, राम बाजा, सियाडी बाजा, हिरनांग, मुयांग, चिटकुलि, किरकिचा, चरहे, कोंडोरका, झिंटी, चटका, तिरडूडी, घंटा, जराड आदि  का प्रदर्शन उत्कृष्ट बन सका। इस प्रस्तुति में दंडामि माडया, मूरिया ,गोटूल मूरिया, अबूझमाडया, दोरला, भतरा, मुंडा, धुरवा, गदबा, परजा, ओझा, माहरा, गोंड, लोहरा, घडवा, आदि समुदाय के कलाकार थे जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया।

इसके पश्चात मध्य प्रदेश के खण्डवा से आये कलाकारों ने ’’गणगौर‘‘ नृत्य में अपनी परंपरा को दिखाया। कार्यक्रम में पुद्दूचेरी का वीर वीरई नटनम् की प्रस्तुति दर्शकों के लिये नतन अनुभूति रही वहीं कर्नाटक का पूजा कुनीथा नृत्य आस्था और परंपरा का वाहक बन सका। कार्यक्र में ही तेलंगाना के माधुरी नृत्य में नृत्यांगनाओं की भाव भंगिमाएँ उत्कृष्ट बन सकी। लोक कलाओं में महाराष्ट्र का लावणी नृत्य दर्शकों को खूब रास आया। कार्यक्रम में इसके अलावा गुजरात का डांग नृत्य तथा महाराष्ट्र का मलखम्भ की प्रस्तुति उल्लेखनीय है।

शिल्पग्राम में आज ’’ताल वाद्य कचेरी‘‘

शिल्पग्राम उत्सव के पांचवे दिन बुधवार को भारत के ताल वाद्यों से अलंकृत ’’ताल वाद्य कचेरी‘‘ की प्रस्तुति विशेष आकर्षण का केन्द्र होगी। श्री पेरावली जय भास्कर के नेतृत्व में बुधवार को शिल्पग्राम आने वाले दर्शकों को रंगमंच पर शाम को मृदंगम, तबला, घटम, थवली, मोरसिंग व वॉयलिन की अनूठी ब्लैंडिंग देखने व सुनने को मिलेगी।

 

 

 


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