उदयपुर (डॉ. घनश्यामसिंह भीण्डर) । जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड-टू-बी विश्वविद्यालय) के संघटक जनशिक्षण एवं विस्तार निदेशालय और स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के संयुक्त तत्वाधान में गुरूवार को साकरोदा स्थित जनभारती केन्द्र पर एक दिवसीय ग्राम स्तरीय जैविक खेती प्रशिक्षण में केन्द्र से जुड़ी स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को सम्बोधित करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ की 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है रासायनिक खेती के स्थान पर जैविक खेती को अपनाना चाहिये। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से भूमि की उर्वरा शक्ति घटर रही है। मानव जीवन के लिए खतरा पैदा हो रहा है। यदि किसान इस खतरे के प्रति जागरूक नही हुए तो आने वाले समय में खेती करना बंद हो जायेगा। क्यों के भूमि की उर्वरा शक्ति नही नही रहेगी तो अनाज पैदा नही हो सकेगा। मुख्य अतिथि कुलाधिपति बी.एल. गुर्जर, ने कहा ऐसे समय में शुद्ध और जैविक खेती का महत्व बढ़ जाता है। उन्होंने रसायनिक खेती की बजाए जैविक खेती को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया। रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान और अधिक खर्च का आंकलन करके बताया वहीं जैविक खेती से कम लागत में बेहतर पैदावार की जा सकती है। आजकल जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही बिमारियों को जैविक खेती कर उस उत्पाद को काम में लेने से उन बिमारियों पर अंकुश लगा सकते है। प्रशिक्षक बी.एस. राणा, सुरेश मीणा, डॉ. सुरभी त्यागी, निदेशक प्रो. मंजू माण्डोत, सहायक निदेशक राकेश दाधीच,, सहायक निदेशक डॉ. धर्मेन्द्र राजोरा ने भी जैविक खेती को अनिवार्य करने की आवश्यकता ग्रामीण महिलाओं को मटर, पालक एवं धनिया के निशुल्क बीज वितरित किये।