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असंपृक्त भाव और जीवन के प्रति अनन्य बोध का संगम थे स्वयं प्रकाश

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13 Dec 19
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असंपृक्त भाव और जीवन के प्रति अनन्य बोध का संगम थे स्वयं प्रकाश

उदयपुर (डॉ. ललित श्रीमाली)। हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार को श्रद्धा सुमन अर्पित करने तथा उनके हिन्दी भाषा के उनके अतुलनीय योगदान के स्मरण के लिए सभा का आयोजन शुक्रवार अपराह्न 4 बजे राजस्थान साहित्य अकादमी सेक्टर-4 में होगा। युवा समालोचक डॉ. ललित श्रीमाली ने बताया कि स्वयं प्रकाशजी के लेखन की शुरुआत मुंबई से हुई और मुंबई से ही उन्होंने अंतिम विदाई ली। वे राजस्थान के अजमेर के रहने वाले थे। अजमेर के डिग्गी बाजार मोहल्ले में उनका घर था। ननिहाल इंदौर में 1947 में उनका जन्म हुआ और बचपन भी नाना के घर में बीता। पढ़ाई पूरी कर भारतीय नौ सेना में नौकरी की ट्रेनिंग के लिए मुंबई चले गए। वहां कुछ अरसा रहने के बाद यह दुनिया पसंद नहीं आई और अजमेर लौट आए। अजमेर से फिर दूरसंचार विभाग की नौकरी में ट्रेनिंग के लिए मद्रास चले गए। वहां से उनका यायावर जीवन शुरू हुआ जो राजस्थान के भीनमाल, सुमेरपुर और जैसलमेर जैसे कस्बों -शहरों होता ओडि़सा तक जाता है। यहाँ हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में राजभाषा अधिकारी रहते हुए वे फिर अपने घर लौटे और दरीबा- देबारी और चित्तौडग़ढ़ में रहे। चित्तौडग़ढ़ में जिंक का निजीकरण हो जाने पर उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी। इसके बाद उन्होंने भोपाल में रहना पसंद किया जहां उनके लेखकीय जीवन में बाल साहित्य का महत्त्वपूर्ण आयाम जुड़ा।
हिंदी जगत में स्वयं प्रकाश अपनी कहानियों के लिए प्रसिद्ध और लोकप्रिय थे। आशा का अनन्त उजास उनकी कहानियों को न भूलने वाली रचनाएं बनाता है। उनके एक कहानी संग्रह का नाम था- आएंगे अच्छे दिन भी, जबकि इस शीर्षक से उन्होंने कोई कहानी नहीं लिखी। अभी इस साल आई उनकी आत्मकथात्मक कृति धूप में नंगे पांव इस मायने में अनोखी किताब है कि पूरी किताब जहां व्यक्ति स्वयं प्रकाश के जीवन संघर्ष का दस्तावेज है वहीं इसमें लेखक स्वयं प्रकाश के सम्बन्ध में एक पंक्ति भी नहीं। अपने लेखन के प्रति ऐसा असंपृक्त भाव और जीवन के प्रति अनन्य बोध का संगम दुर्लभ है। हिंदी के महान प्रगतिशील आंदोलन की सच्ची विरासत के रूप में स्वयं प्रकाश हमेशा याद किए जाते रहेंगे।
 


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