उदयपुर, पेसिफिक विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा शोधार्थी सुबोधकांत नायक को धारा 370 रू मिथक और यथार्थ (जम्मू कश्मीर के विशेष संदर्भ में) शीर्षक पर पीएचडी की उपाधि प्रदान की है। नायक ने हीरा लाल देवपुरा राजकीय महाविद्यालय आमेट के वर्तमान प्राचार्य एवं राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. मनोज कुमार बहरवाल के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूर्ण किया है।
फाइनल वायवा के दौरान महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार के कुलपति प्रो.डॉ. संजीव कुमार शर्मा, डीन हेमंत कोठारी, डॉ.टीपी आमेटा, डॉ. बालूदान बारहठ सहित शिक्षा से जुड़ी कई हस्तियां उपस्थित रही।
डूंगरपुर जिले के दिशा डिग्री कॉलेज के निदेशक एवं राजनीति विज्ञान विषय के व्याख्याता नायक ने जमा करवाई अपनी थीसिस में जम्मू कश्मीर के विभाजन को कश्मीर की समस्या के समाधान का एक कारगर उपाय बताया था। और हाल ही में सरकार ने भी इसी तरह धारा 370 को संवैधानिक तरीके से खत्म करते हुए जम्मू कश्मीर को 2 भागो में बांट दिया। निष्कर्ष में बताया गया है कि कश्मीर के सच को भारतीय जनता कभी समझ ही नही पाई, और 1948 में भारतीय संघ में हुए कश्मीर के विलय को अलगाववादीयो द्वारा बताए जाने के झूठ को 1990 के बाद के दशक में हवा मिलती गयी। और समय समय पर आई देश की राजनीतिक सत्ताओं ने भी इसे अपने वोटबैंक के रूप में भुनाने का काम किया। जिसके चलते पिछले 30 साल से जम्मू कश्मीर के साथ साथ पूरे देश की जनता अलगाववादियों की षड्यंत्रकारी चाल में फंस गई।
नायक ने पीएचडी थीसिस में धारा 370 के मिथक और यथार्थ बताते हुए भी समस्या समाधान के उपाय सुझाए हैं। उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर के विलय दिवस 26 अक्टूबर को सम्पूर्ण देश मे मनाए जाने से जनता में जम्मू कश्मीर के भारत मे विलय को लेकर भ्रम की स्थिति दूर हो सकती है। जम्मू कश्मीर राज्य को जम्मू,कश्मीर और लद्दाख प्रान्त में विभाजित किया जाए। भारत की सुरक्षा और लद्दाख के हितों की पूर्ति के लिए जम्मू कश्मीर का विभाजन महत्वपूर्ण उपाय हो सकता हैं। . जम्मू कश्मीर से धारा 370 एवं अनुच्छेद 35ए को तत्काल हटाया जाए, जिससे जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यो के समकक्ष स्तर मिल सके। पाक अधिकृत कश्मीर को भी जम्मू कश्मीर के अधीन लाया जाकर उसके लिए संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने के ठोस प्रयास किये जाए।
धारा 370 के उपबन्ध 35ए ने सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय संविधान को पहुंचाया
पीएचडी थीसिस के निष्कर्ष में बताया है कि भारतीय संविधान में आर्टिकल 370 के अंतर्गत अतिक्रमण करके 14 मई 1954 को एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया। जिसने भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत भारतीय संघ में दोहरी विधिक व्यवस्था उत्पन्न कर दी। वही जम्मू कश्मीर के विशेष अधिकारों को भी इसी अनुच्छेद के चलते बल मिल गया। जबकि भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर भी इसके सख्त खिलाफ थे।
उल्लेखनीय है कि इस अनुच्छेद को जोड़े जाने से पहले संसद में ना इस पर कोई बहस हुई,ना ही इसका जिक्र मूल संविधान के अपेंडिक्स में है। इस प्रकार अनुच्छेद 35ए की आड़ में अलगाववादी अपने निजी हितों को साधते रहे।