उदयपुर । महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर अपने उद्देश्यों अनुरूप समाज एवं भविष्य की पीढयों के लिए प्रेरणा के मंदिर के रूप कार्य कर रहा है। फाउण्डेशन मूर्त एवं अमूर्त विरासतों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी को गंभीरता से निभाता रहा है। जिसमें फाउण्डेशन की ’आहड उदयपुर हेरिटेज वॉक‘ विरासत संरक्षण एवं उसके प्रचार-प्रसार का एक सार्थक कदम है।
सोनीपत हरियाणा से ’गेटवे कॉलेज ऑफ आर्किचेक्चर एंड डिजाइन‘ के ४८ विद्यार्थी आज ’आहड उदयपुर हेरिटेज वॉक‘ का हिस्सा बने और मेवाड की प्राचीन जानकारियों एवं आहाड सभ्यता के बारे में जाना।
’आहड उदयपुर हेरिटेज वॉक‘ उदयपुर नगर निगम एवं राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग के साथ महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर द्वारा आरम्भ की गई एक पहल है। फाउण्डेशन अपने आउटरीच प्रोग्राम के तहत ऐसे आयोजनों को प्रोत्साहित करता है, जिसमें भारतीय संस्कृति के प्रसार-प्रचार, ऐतिहासिक अनुसंधानों एवं धरोहर संरक्षण आदि को बढावा दिया जाता है तथा ऐसे व्यक्तियों को लिए भी मंच प्रदान करता है जो ऐसी गतिविधियों को आगे बढाने के लिए प्रयासरत होते है। इसी दिशा में ’’लिविंग हेरिटेज‘‘ नामक आयोजन फाउण्डेशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आहाड हेरिटेज वॉक वर्तमान में उन प्राचीन जानकारियों को प्राप्त करने का एक अच्छा जरिया है, जहां कई ऐतिहासिक जानकारियों एवं परम्पराओं को समझा जा सकता है। आहाड-बनास संस्कृति दक्षिणी राजस्थान की सबसे बडी कांस्य युगीन नगरी रही है। जिसे ताम्बावती नगरी के नाम से भी जाना जाता है। आहाड सभ्यता में आज भी ताम्बा प्राप्त करने की भट्टियों के अवशेष आदि देखे जा सकते हैं जहाँ उस युग में गलाई का कार्य बखूबी किया जाता था। आहाड टीलों में आज भी ऐसे कई प्रमाण विद्यमान है जहाँ कभी सिन्धु घाटी की तरह ही नगर बसा हुआ था, इस कारण इसे आहाड सभ्यता का नाम दिया गया।
आहाड सभ्यता के टीलों के पास ही ’महासत्याजी‘ नामक स्थान बहुत प्राचीन है, जो ३.०२ हैक्टेयर में फैला हुआ है, जहाँ मेवाड के महाराणाओं एवं उनके परिवार के सदस्यों के दाह स्थलों पर सुन्दर एवं कलात्मक छतरियाँ बनी हुई है। महासत्या में मेवाड के महाराणाओं के योगदान को दर्शाती हुई सुन्दर छोटी-बडी कई छतरियां शानदार वास्तुकला एवं बेजोड निर्माण के उदाहरण है।
इसी के साथ यहां का गंगोदभव कुण्ड जिसे मेवाडजन गंगा के रूप में स्वीकार करती है। मेवाड में जिसे गंगाजी का चौथा पाया भी कहा जाता है। यहीं पर नजदीक में १०वीं शताब्दी का एक प्राचीन मंदिर जिसे भक्तिमती मीराबाई मंदिर के नाम से भी जाना जाता है इस मंदिर पर उत्कीर्ण मूर्ति एवं शिल्पकला बजोड कारीगरी के नमूने हैं। इसी के आगे आहाड जैन मंदिर स्थित है जहाँ जैन धर्म के २४ तीर्थंकरों में आदिनाथ और शांतिनाथ के भव्य मंदिर है। मंदिर मार्ग पर ही मंदिरों में आरती के समय बजने वाले प्राचीन वाद्य यंत्रों में ढोल-नगाडे, मंजीरे, घंटियां आदि की कई दुकानें विद्यमान है जहां अकसर इन धुनों को सुना जा सकता है।