GMCH STORIES

चार राज्यों के अस्सी लोक और वाद्य यंत्रों

( Read 36241 Times)

17 Sep 19
Share |
Print This Page
चार राज्यों के अस्सी लोक और वाद्य यंत्रों

उदयपुर । पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से कला परिसर शिल्पग्राम में आयोजित एक सप्ताह की ’’लोक और आदिवासी वाद्य यंत्र कार्यशाला‘‘ सोमवार का शुरू हुई जिसमें केन्द्र के सदस्य राज्यों के कई प्रचलित, दुर्लभ और विलुप्त प्रायः ८० वाद्य यंत्र देखने को मिले हैं।

भारत में विभिन्न जातियों, जनजातियों द्वारा तीज, त्यौहार, उत्सवों, धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों के अवसर पर कलाओं के साथ व पृथक से प्रयोग में लिये जाने वाले वाद्यों को एक स्थान पर एकत्र कर उनका श्रव्य दृश्य प्रलेखन कर नवीन पीढी के लिये संजो कर रखने तथा कलाकारों में आपसी सम्मिलन से एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को प्रबल करने के लिये केन्द्र द्वारा शिल्पग्राम में एक सप्ताह की कार्यशाला का आगाज चित्रकार दिनेश कोठारी, वरिष्ठ लोक  कलाकार लाखा खां, गुजरात के कलाविज्ञ कल्पेश दलाल तथा जोधपुर के कलाविज्ञ मनोहर लालस द्वारा दीप प्रज्ज्वलन करके किया गया। इस अवसर पर दर्पण सभागार के होल्डिंग एरिया में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा गोवा के ८० विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी लगाई गई जिसमें तंतु वाद्य, सुषीर वाद्य, ताल वाद्य आदि शामिल हैं।

उद्घाटन अवसर पर वरिष्ठ लोक कलाकार व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कलाकार लाखा खां ने कहा कि संगीत की कोई भाषा नहीं होती तथा सारे विश्व में संगीत एक जैसा ही होता है। अपनी विदेश यात्राओं का जिक्रकरते हुए लाखा खां ने कहा कि इंगलैण्ड, अमरीका जैसे देशों में भारीय लोक वाद्यों को काफी सम्मान मिलता है। इस अवसर पर दिनेश कोठारी ने कहा कि केन्द्र का यह प्रयास अनुकरणीय है कि चार राज्यों के वाद्य एक साथ एक मंच पर देखने को मिले हैं। केन्द्र के प्रभारी निदेशक सुधांशु सिंह ने इस अवसर पर अतिथियों व कलाकारों का स्वागत करते हुए कहा कि केन्द्र का यही प्रयास है कि अपने अंचल के वाद्य यंत्रों विशेषकर विलोपन की ओर अग्रसरित होने वाले लोक वाद्यों का स्वरूप, बनावट, वादन का तरीका, वाद्य यंत्र के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री और वादक कलाकार के बारे में संक्षिप्त जानकारी लोगों व शोधकर्ताओं को उपलब्ध हो सके।

इस अवसर पर केन्द्र के कार्यक्रम अधिकारी तनेराज सिंह सोढा ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। कार्यशाला में ५० से ज्यादा लोक वादक कलाकार भाग ले रहे हैं। जिनके वाद्य सोमवार को प्रदर्शित किये गये इनमें खडताल, ढोलक, सिन्धी सारंगी, सतारा, नड, सुरिन्दा, नगाडा, पूंगी, चौतारा, रावण हत्था, जोगीया/ प्यालेदार सारंगी, सुरनाई एवं मुरली, थाली मादल, थाली सर कथौडी, मोरचंग, ढोल थाली, पाबु जी के माटे, , मटका, भपंग, सम्भल, डफ, तुनतुने, तुतारी, ढोलकी, दीमडी, तारपा, सुरथाल, डाक, भक्ति गांगली, तुरथाल, घुगरकांठी, धनगरी ढोल, पखावज, ढहाका, डफडे, रण हलगी, चौण्डके, सुन्दरी वाद्य, मय पेटी, चौघडा, पावरी एवं थाली, कहाल्या एवं सुर ढाक, मादल, ढाकला, नोबत, पिहो, ढोल, सुरनाई, ताडपु, गांगली, माईमिषरा, मलुंगा, राम सागर, रावण हत्था, मटका थाली, मंजीरा, घुम्मट शामिल हैं।

 

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Udaipur News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like