उदयपुर। सार्वजनिक प्रन्यास मंदिर श्री महाकालेश्वर उदयपुर में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर महाकालेश्वर मुख्य मंदिर द्वार पर प्रातः १० बजे राष्ट्रगान के साथ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया। प्रन्यास अध्यक्ष तेजसिंह सरूपरिया ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये व स्वतंत्रता दिवस के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी। इस अवसर पर मंदिर परिसर में महाकालेश्वर के मुख्य प्रांगण पर आशुतोष भगवान श्री महाकालेश्वर रजत पालकी में विराजित किया गया एवं नन्दियों, गाय-बछडो के साथ महादेव नन्दी पर विराजे। सवेरे १०.०० बजे प्रन्यास अध्यक्ष के साथ श्रावण महोत्सव समिति के संयोजक रमाकान्त अजारिया, गोपाल लोहार, महिपाल शर्मा, पंडित महेश एन. दवे, पुरूषोत्तम जीनगर, चन्द्रवीर ंसह राठौड, सुरेन्द्र मेहता, आभा आमेटा सहित कई शिवभक्तों ने राष्ट्रीय ध्वज को सलामी दी। तेज बारिश में शिवभक्तों ने एक स्वर में राष्ट्रीय गान गाया। १०.१५ पर महाकाल की आरती की गई इस तरह स्वाधीनता दिवस को धर्म के साथ मनाने की अनूठा प्रयास किया गया।
चितांमणि पार्थेश्वर पूजा सम्पन्न
सार्वजनिक प्रन्यास मंदिर श्री महाकालेश्वर में मास पर्यन्त शुरू हुए पार्थेश्वर पूजन १५ अगस्त को संपन्न हुआ। पंडित महेश एन दवे ने बताया कि श्री महाकालेष्वर मंदिर में श्रावण महोत्सव के तहत् आयताकार आकृति पर महाकालेष्वर महादेव विराजित हुए। अलग अलग युगों में षिवलिंग के पूजन की अगल अगल महिमा बताई गई है। षिव महापुराण के अनुसार सतयुग में मणिलिंग, त्रेतायुग में स्वर्णलिंग, द्वार युग में पारदलिंग और कलयुग में पार्थिव ंलग को श्रेश्ठ कहा गया है। इस आकृति की पूजन को षिव ंलग पूजन की महत्वपूर्ण उपयोगिता बताई है। इस आकृति का योगदान मानवजीवन में ज्ञान, विवेक और सकारात्मकता को बढाता है। इसकी पूजा करने से व्यक्ति के आसुरी भाव क्रोध, ईर्ष्या, द्वेश विशय रोग का समन होता है। सूर्य प्रजन जीव मात्र को हर परिस्थिति मे ं समान अर्थात् समभाव से रहने की प्रेरणा देता है। इस पूजा से व्यक्ति मांसीक, तनुजा, वित्तजा का सेवा के रूप में उपयोग करते है। तो इन तीनों की वृद्धि होता है।