उदयपुर। आज दिनांक १७-७-२०१९ श्री महाकालेष्वर मंदिर में श्रावण महोत्सव के तहत् सम चौरस आकृति पर महाकालेश्वर महादेव विराजित हुए। अलग अलग युगों में शिवलिंग के पूजन की अलग अलग महिमा बताई गई है। शिव महापुराण के अनुसार सतयुग में मणिलिंग, त्रेतायुग में स्वर्णलिंग, द्वारयुग में पारदलिंग और कलयुग में पार्थिवलिंग को श्रेष्ठ कहा गया है। चतस्त्रस आकृति को शिवलिंग का मानव जीवन में महत्वपूर्ण उपयोगिता है। इस आकृति का योगदान मानवजीवन में ज्ञान, विवेक और सकारात्म्कता को बढाता है। वृहस्पति देव गुरू होने से मानव मात्र को ध्यान एवं चेतना के वर्थक है। इसकी पूजा करने से व्यक्ति के आसुरी भाव क्रोध, ईर्ष्या, द्वेश विषय रोग का समन होता है। सम चौरस अर्थात समान स्थित जीव मात्र को हर परिस्थिति मे ं समान अर्थात् समभाव से रहने की प्रेरणा देता है। इस पूजा से व्यक्ति मांसीक, तनुजा, वित्तजा का सेवा के रूप में उपयोग करते है। तो इन तीनों की वृद्धि होता है। यह जानकारी पार्थेष्वर पूजा के पंडित महेष एन. दवे ने दी।