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जहां भक्त हैं भगवान वहां है: सुमित्रसागरजी

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21 Aug 18
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जहां भक्त हैं भगवान वहां है: सुमित्रसागरजी

उदयपुर, तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन में अयोजित धर्मसभा में परम पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश प्राकृताचार्य ज्ञान केसरी आचार्य श्री 108 सुनीलसागर जी महाराज के सुशिष्य क्षुल्लक सुमित्र सागरजी महाराज ने प्रात:कालीन धर्मसभा में कहा कि जहां भक्त हैं वहां पर भगवान को तो होना ही है। भक्त जब- जब भी भगवान को याद करते हैं भगवान किसी भ्भी रूप में उनकी सहायता करने पहुंच जाते हैंं ।

कई बार मनुष्य यह सोचता है कि मेरा यह काम नहीं हो रहा है। मैं रोजाना मन्दिर जाता हूं, भगवान की पूजा- अर्चना करता हूं, व्रत उपवास भी बराबर करता हूं, फिर भी मेरे साथ ऐसा अन्याय क्यों हो रह है। मेरा काम ही नहीं हो रहा है। लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है। आप मन्दिर भी जा रहे हैं, पूजा भी कर रहे हैं लेकिन वहां भी आपका ध्यान अगर सांसारिक बातों में लग रहा है तो उस पूजा का कोई औचित्य नहीं है। व्रत उपवास तो कर रहे हैं लेकिन दिन भर कुछ न कुछ आप खा पी रहे हैं तो उसका कोई औचित्य नहीं है। भगवान की उपासन करनी है तो निर्मल भावना से करनी होगी। साधना तब ही पकती है जब वो एकाग्रचित्त होकर की जाए। कई बार घर- परिवार में कुछ भी अनहोनी हो जाती है तो तब भी लोग भगवान को ही कोसते हैं, कहते हैं भगवान ऐसा निर्दयी कैसे बन सकता है। भगवान कभी भी निर्दयी नहीं होते हैं। वो तो परम कृपालु और दयालु होते हैं। ये तो जो होना लिखा होता है वह होकर ही रहता है।

धर्म और कर्म कभी भी उधार का नहीं चलता है। यह कोई पैसा- कौड़ी तो है नहीं कि अभी उधार लेकर काम चला लिया और अपने पास आ गये और हमने उसे वापस कर दिया। धर्म और कर्म दोनों खुद के किये ही काम आते हैं और अन्त में खुद के साथ ही जाते हैं। इसलिए हमेशा धर्म ध्यान से, सुविचार से, आत्म चिन्तन से, समता भाव से धर्म ध्यान करते हुए अपनाा आत्मकल्याण करने का प्रयास करो।
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