उदयपुर । भागवत कथा भी गंगा रूपी जीवनदायिनी है। श्रीमद् भागवत का प्रतिपाद्य विषय ही यह है कि सृष्टि की रचना भगवान ने की है और उन्ही में ही मिल जाएगी। श्रीमद् भागवत कथा मलिन हृदय को शुद्घ व निर्मल करती है।ये विचार नारायण सेवा संस्थान द्वारा बालोदा बाजार (छ.ग) में दिव्यांगों की सहायतार्थ सप्तदिवसीय श्रीमद् भागवत कथा में बुधवार को कथा वाचिका जया किशोरी ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि हर वस्तु की प्राप्ति के साथ उससे वियोग भी है। भगवान की भक्ति जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए। सांसारिक कार्य में पश्चाताप हो सकता है परंतु ईश्वरीय भक्ति, साधना, ध्यान, परोपकार के पश्चात पश्चाताप नहीं वरन आनंद और आत्म संतोष की अनुभूति होती है, क्योंकि अमृत से मीठा अगर कुछ है तो वह भगवान का नाम है। संचालन कुंज बिहारी मिश्रा ने किया।