उदयपुर । तेलीवाड़ा स्थित हुमड़ भवन में बिराजित परम पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश प्राकृताचार्य ज्ञान केसरी आचार्य श्री 108 सुनीलसागर जी महाराज के सुशिष्य क्षुल्लक सुमित्र सागरजी महाराज ने धर्मसभा में जैन रामायण का वाचन करते हुए मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जी के जीवन की महिमा बताते हुए कहा कि प्रभुश्री राम ने भगवान मुनि सुव्रतनाथ के काल में अयोध्या में नगरी में राजा दशरथ के यहां जन्म लिया था। यह श्री रामचन्द्रजी के पुण्य का उदय ही था कि उन्होंने एक राजा के यहां जन्म लिया। यहां पर राज धन, राज पाट, धन सम्पत्ति, मान- सम्मान, पद प्रतिष्ठा सब कुछ था। उनके पुण्य के उदय के कारण ही उन्हें सहज में ही चीज प्राप्त हो गई।
महाराज ने कहा कि इतना सब कुछ होने के बावजूद उन्हें किंचित मात्र भी घमंड अभिमान नहीं था। उन्होंने दुनिया को मर्यादा का पाठ पढ़ाया। आज के समय में मनुष्य के पास थोड़ा बहुत भी वैभव आ जाता है तो वह इंसान को इंसान नहीं मानता। उस धन- वैभव का वह उपयोग कम और दुरूपयोग ज्यादा करता है। प्रभु श्री राम ने इतना वैभव प्राप्त किया Èिर भी अपने नियम संयम को उन्होंने कभी नहीं तोड़ा, कभी भी अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हुए। हमेशा धर्म कुल, पिता कुल, राज कुल की मर्यादाओं का पालन किया। आज हर इंसान को प्रभुश्री राम के जीवन से सीख लेने की जरूरत है कि कैसे उनके पास सर्व सुख होने के बाद भी उनमें अहंकार नहीं आया और हमेशा परोपकार की भावना से काम करते हुए मर्यादा पुरूषोत्तम बने।
सकल दिगम्बर जैन समाज अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत ने बताया कि धर्मसभा में पूर्व आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के सभी पूर्वाचार्यों के चित्र का अनावरण किया गया। उसके बाद दीप प्रज्वलन, सुनीलसागाजर महाराज ससंघ की अद्वविली सेठ शांतिलाल नागदा, सुरेशचन्द्र राज कुमार पदमावत, सेठ शांतिलाल नागदा, देवेद्र छाप्या, पारस चित्तौड़ा, विजयलाल वेलावत, राजपाल लोलावत, शांतिलाल चित्तौड़ा, कनक माला छाप्या आदि श्रावकों ने मांगलिक क्रियाएं की। धर्मसभा का संचालन बाल ब्रह्मचारी विशाल भैया ने किया जबकि मंगलाचरण बाल ब्रह्मचारी पूजा हण्डावत ने किया।
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