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पोथी कलश की यात्रा के साथ श्रीराम मय हुआ "सीता वात्सल्य धाम"

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11 Oct 18
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पोथी कलश की यात्रा के साथ श्रीराम मय हुआ "सीता वात्सल्य धाम" #श्री राम के आदर्शों को सरल रूप में जन जन तक पहुँचाने का कार्य किया है तुलसीदास जी ने उदयपुर सुखेरके निराश्रित बाल सेवा गृह, जीवन ज्योति छात्रा वास यानी "सीता वात्सल्य धाम" में पुष्करनाभट्ट परिवार द्वारा आयोजित संगीत मय श्रीरामकथा का शुभारंभ साध्वी श्री अखिलेश्वरी जी के श्री मुख से हुआ।दीदी मां ने श्री राम कथा को प्रारंभ करने से पहले कलशपोथी धारण करने का, कथा श्रवण व सत्संग का महत्व बताया ।
साध्वी जी ने कहा कि पोथी ओर कलश सिर पर लेने का केवल एक धार्मिक कार्य ना होकर एक ऐसे सत्य संकल्प को धारण करना है जिसमें अच्छे कार्य को मन ,कर्म, वचन, से पूरा करने का प्रण है जिसका केवल यही उद्देश्य नही की स्वयं का ही स्वार्थ और मनोकामनां पूरी हो वरन स्वयं के साथ सुनने वाले को भी पूण्य लाभ मिले। ओर यही संदेश भगवान राम ने भी मानव के रूप में जन्म लेकर दिया।

#श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय देते हुए साध्वी जी ने बताया कि भगवान श्रीराम तुलसीदास जी के आराध्यदेव थे और उनके जीवन के आदर्श भी ।तुलसी ने राम के सम्पूर्ण जीवन को इस प्रकार अभिव्यक्त किया जिससे प्रत्येग मानव-मात्र सदा-सदा के लिए जीवन के हर श्रेत्र में प्रैरणा ले सकता है।
सनातन धर्म के लेखक तुलसीदास जी के अनुसार सर्वप्रथम श्री राम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वती को सुनाई पर् कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को नींद आ गई और वहाँ बैठे पक्षी कौए ने पूरी कथा सुन ली।उसी पक्षी का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ। काकभुशुण्डि जी ने यह कथा गरुड़ जी को सुनाई। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा अध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात है। ज्ञानप्राप्ति के बाद वाल्मीकि ने भगवान श्री राम के इसी वृतान्त को पुनः श्लोकबद्ध किया।

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