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मरूस्थली लोक कलाकारों के उत्थान के लिए "मरू मणि" अभिनव योजना प्रारंभ

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01 Jun 20
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मरूस्थली लोक कलाकारों के उत्थान के लिए "मरू मणि" अभिनव योजना प्रारंभ

लोक संवाद संस्थान की ओर से राजस्थान के लोक कलाकारों के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से 1 जून को अभिनव योजना प्रारंभ की जाएगी। इसकी मदद से राजस्थान के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों को एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि उन्हें जीविका यापन में सहायता मिल सके।

Covid-19को ध्यान में रखते हुएलोक संवाद संस्थान अगले 3 महीने तक सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता और परियोजना के अधीन कार्य करने के लिए समुदायों से फंड एकत्रित करेगा।

कोरोना की वजह से जीविका के संकट से जूझ रहे लोक कलाकारों को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करने के लिए राज्य सरकार ने भी मुख्यमंत्री लोक कलाकार प्रोत्साहन योजना प्रारंभ की है, जिसके माध्यम से प्रत्येक कलाकार को एकमुश्त2500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी।

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बाड़मेर के लोक कलाकार नेक मोहम्मद लंगा और उनके समूह की ओर से कोरोना पर गीत भी बनाया गया है, जिसके बोल हैं -

देर हुई, कोई मदद ना आई, दिन ढलने को आया अधिपति,

काम ना धंधा, विपदा आई, खाली झोले, कुछ ना कमाई,

हम ना डरेंगे, मिलकर लड़ेंगे, जीतेंगे हम ये भी लड़ाई।

इस अभियान में लोक संवाद संस्थान(जयपुर स्थित मीडिया अडवोकेसी संस्थान), रूपायन संस्थान(अनुसंधान पार्टनर), एपीजे इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन द्वारका,दिल्ली(सोशल मीडिया पार्टनर)और यूपीईएस यूनिवर्सिटी, देहरादून (एकेडमिक पार्टनर) सामूहिक रूप से सोशल मीडिया के माध्यम से राजस्थान के मरूस्थली लोक कलाकारों के उत्थान के लिए "मरू मणि" नामक कैंपेन प्रारंभ करने जा रहे हैं। इसके माध्यम से जागरूकता और लोक कलाकारों के लिए आर्थिक सहायता करने का उद्देश्य है। इसके लिए लोक संवाद संस्थान ने क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म भी प्रारंभ किया है।

संस्थान के सेक्रेटरी कल्याण सिंह कोठारी जी ने बताया कि इस अभिनव प्रयास से लोक कलाकारों को डिजिटल माध्यमों के बारे में जानकारी दी जाएगी और कैसे वह घर बैठे अपने फोन से भी अपनी कला का प्रदर्शन सोशल मीडिया पर करके करोड़ों लोगों तक अपनी पहचान बना सकते हैं।

यह कैंपेन1 जून को सोशल मीडिया पर लॉन्च किया जाएगा। उम्मीद है कि इसके माध्यम से लोक कलाकारों को आर्थिक रूप से संबल मिलेगा, ताकि उन्हें इस मुश्किल समय में अपनी पहचान मिल सके। अपने पारंपरिक लोकगीतों को सुरक्षित रखने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है।

 

 


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