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"संस्कृति और संस्कृत को बचाना आवश्यक" – स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती

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10 Jun 25
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"संस्कृति और संस्कृत को बचाना आवश्यक" – स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती


नाशिक, संस्कृत भाषा केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन के हर चरण में उपयोगी है। इसे घर-घर तक पहुँचाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। यह विचार कैलाश मठ, नासिक के महामंडलेश्वर एवं भक्ति धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती ने व्यक्त किए। वे उत्कर्ष महोत्सव 2025 के अंतर्गत आयोजित संत सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती ने कहा कि “संस्कृति और संस्कृत को बचाने की आवश्यकता है। संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार अधिक से अधिक होना चाहिए। संस्कृत कर्मकांड से लेकर जीवन पर्यंत उपयोग में आने वाली भाषा है। भगवान शिव से हमें शिक्षा लेनी चाहिए—वे परिवार के मुखिया हैं, और यदि परिवार का मुखिया शक्तिशाली हो, तो संस्कृत परिवार भी शक्तिशाली होगा।”

 





उन्होंने बताया कि गायत्री मंत्र का प्रताप अत्यंत प्रभावशाली है, और इसी के कारण आशा भोंसले जैसी महान गायिका अनेक भाषाओं में गीत गा पाई हैं। उन्होंने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से अपील की कि वह मिनिमम संस्कृत अभियान चलाकर हर घर तक संस्कृत पहुंचाए।

इस अवसर पर आयोजित उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में समीर सोमैया, कुलगुरु, सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय, मुंबई ने कहा कि “हमारी शिक्षा प्रणाली को पेशा, विचार और चरित्र—इन तीन स्तंभों पर आधारित होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यवश यह केवल पेशे तक सीमित रह गई है।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. जी.एस.आर. कृष्णमूर्ति ने की। मंच पर प्रो. श्रीनिवास वरखेडी, प्रो. मुरलीमनोहर पाठक, प्रो. मधुकेश्वर भट्ट, प्रो. निलाभ तिवारी, प्रो. मदन मोहन झा, तथा प्रो. आर. जी. मुरलीकृष्णा जैसे विशिष्ट अतिथि उपस्थित रहे।

सारस्वत अतिथि पद्मश्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि भारत की संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन और वैदिक मूल की है। “यदि भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो संस्कृत को राष्ट्रभाषा बनाना होगा।”

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. श्रीनिवास वरखेडी ने बताया कि नाशिक परिसर में आयुर्वेद गुरुकुलम की स्थापना की जा रही है, जहाँ आयुर्वेद की शिक्षा संस्कृत माध्यम से दी जाएगी।

इस अवसर पर प्राच्य विद्या, सेवाव्रती और उत्कर्ष पुरस्कारों का वितरण हुआ। प्रो. भाग्यलता पाटस्कर, डॉ. जयप्रकाश त्रिपाठी, प्रो. के. रामासुब्रमणियन, नागराज पातुरी, डॉ. विघ्नेश्वरीप्रसाद मिश्र, डॉ. आर.वी.एस.एस. अवधनुलु, डॉ. एस.टी.जी. श्रीमनारायण, उमेश नागरकट्टे, रामेश्वर भट्टाचार्य, वेदांत विद्यापीठ, पुणे, एवं संस्कृत भाषा प्रचारिणी सभा, नागपुर को सम्मानित किया गया।

साथ ही कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का लोकार्पण भी किया गया—श्रोतयज्ञ प्रभा (डॉ. दयानाथ), दर्शनाणर्व (सुकांत कुमार सेनापति), अथर्ववेदे भेषज्यविज्ञानम् (राम पद साम), श्लेषसिद्धांत, भारत भारताम्बे (गुरूपाद के हेगड़े), वैदिक गणित (प्रो. जी.एस.आर. कृष्णमूर्ति), और काश्मीरेतिहास (प्रो. शिवशंकर मिश्र)।

द्वितीय सत्र में आयोजित संत सम्मेलन की अध्यक्षता स्वामी शंकरानंद सरस्वती (अध्यक्ष, त्र्यंबकेश्वर अखाड़ा परिषद) ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में महंत भक्तचरण दास, गुरु हरिराम त्रिपाठी, प्रो. प्रह्लाद जोशी, और अन्य संत-महात्मा मंचासीन रहे।

तीसरे सत्र में युवा नेतृत्व संवाद कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें विभिन्न परिसरों के विद्यार्थियों ने विश्वविद्यालय के भावी योजनाओं पर प्रस्तुति दी।

उत्कर्ष महोत्सव ने एक बार फिर यह सिद्ध किया कि संस्कृत न केवल भाषा है, बल्कि एक जीवनशैली और सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे संरक्षित करना हम सबकी जिम्मेदारी है।

 


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