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आप सरकार की कसौटी है जनता के द्वार योजना

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12 Sep 18
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आप सरकार की कसौटी है जनता के द्वार योजना दिल्ली की ‘आप’ सरकार अब अपनी छवि को उजालने के प्रयास करती हुई दिखाई दे रही है। अपनी क्षमता एवं दक्षता का उपयोग वह जनता के हित में करने का यदि सोच रही है तो इसे हम राजनीति का एक उजला पृष्ठ कहेंगे। क्योंकि राजनीति वास्तविक अर्थों में जनसेवा ही है। आवश्यकता इसी बात की है कि इस जनसेवा के क्षेत्र में जब हम जन मुखातिब हों तो प्रामाणिकता का बिल्ला हमारे सीने पर हो। उसे घर पर रखकर न आएं। सेवा के क्षेत्र में हमारा कुर्ता कबीर की चादर होना चाहिए। इसी सोच के साथ आप सरकार लम्बे संघर्ष के बाद अपनी महत्वाकांक्षी 40 सेवाओं की डोर स्टेप डिलीवरी यानी सेवा सीधे जनता के द्वार परियोजना शुरू की है, तो इस का स्वागत होना चाहिए।
जैसाकि कहा जा रहा है कि जाति प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, शादी का रजिस्ट्रेशन, ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदन, नया पानी या सीवर कनेक्शन या कटवाने के लिए आवेदन जैसी कुल 40 सेवाएं सेवाओं के लिए जनता को सरकारी विभाग या दफ्तरों के चक्कर काटने नहीं पड़ेंगे। सरकार खुद आवेदक के घर आकर उसको सेवा देगी। आप सरकार का दावा है कि दुनिया में ऐसी परियोजना पहली बार लागू की जा रही है। इस दृष्टि से देखा जाए तो आप सरकार ने देश की राजधानी में नई इबारत लिख दी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम डिजिटल इंडिया की शुरूआत के बाद काफी बदलाव आया है।
भारत में नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल जनता के लिये शुकूनभरा है। आज भारत आई.टी. इंडस्ट्री में बहुत आगे बढ़ चुका है। आज शहर हो या गांव, हर जगह लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, ऑनलाइन खरीदारी से लेकर रेल आरक्षण, विमान टिकट तक इंटरनेट के जरिये घर बैठे काफी सुविधाएं हासिल कर रहे हैं। नई प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल जनता के कल्याण के लिए हो तो इससे रोजमर्रा की जिन्दगी काफी सुखद हो जाती है। डोर स्टेप डिलीवरी यानी सेवा सीधे जनता के द्वार परियोजना से जनता को राहत मिलेगी। लेकिन प्रश्न यह है कि योजना जितनी लुभावनी है, उसकी क्रियान्विति भी उतनी ही लुभावनी एवं यथार्थ होनी चाहिए। अक्सर सरकारी योजनाएं जमीन पर आकार लेते-लेते धुंधली हो जाती है, अपना अर्थ धूमिल कर देती है। अब तक के आप सरकार की योजनाओं का यही हश्र हुआ है। यही कारण है कि आप सरकार की अन्य योजनाओं की परिणति की भांति इस योजना की सफलता के प्रति भी आमजनता सशंकित है। एक तरफ दिल्ली सरकार ने पहले ही दिन इन सुविधाओं का लाभ लेने के लिए 2700 से अधिक फोन कॉल आने का दावा किया तो दूसरी तरफ लोगों ने फोन न मिलने की शिकायत की। इसी क्रम में भाजपा का यह सवाल भी औचित्यपूर्ण है कि दिल्ली के तीनों नगर निगम जब 90 फीसद सुविधाएं ऑनलाइन और निशुल्क उपलब्ध करा रहे हैं तो दिल्ली सरकार द्वारा प्रति सुविधा 50 रुपये शुल्क लिया जाना कहां उचित है? दिल्ली सरकार की बहुप्रचारित मोहल्ला क्लीनिक योजना की बदहाली भी हमारे सामने है। यह किसी से छिपा नहीं है कि मोहल्ला क्लीनिक योजना, जिसका प्रचार दिल्ली सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी किया, वह बदहाली के दौर से गुजर रही है।
डोर स्टेप डिलीवरी योजना के पहले दिन ही दिल्ली सरकार की टेलीफोन लाइनें और टेलीफोन ऑपरेटरों की संख्या बढ़ाने की बात करना इस योजना की सफलता पर संदेह के धुंधलकों को ही साबित कर रही है। पहले दिन ही लोगों को फोन मिलाने में परेशानी हुई। यानी, यह योजना पहले दिन ही विफल साबित हुई है। दिल्ली सरकार को कोई भी योजना शुरू करने से पहले उसके सभी पहलुओं पर गौर करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों को किसी तरह की परेशानी न हो। साथ ही निगमों में मुफ्त ऑनलाइन सुविधाएं मिलने के बाद भी इस योजना में 50 रुपये प्रति सुविधा वसूले जाने पर भी दिल्ली सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। क्या इस तरह की जनलुभावनी योजनाओं के माध्यम से आम जनता को ठगने एवं लुभाने का प्रयत्न तो नहीं हो रहा है? चुनाव की सरगर्मियों के बीच सभी सरकारें ऐसे उपक्रम करती है, इसलिये यह योजना भी सफलता की कसौटी पर कसी जानी बाकी है।
राजनीति क्षेत्र हो या सामाजिक या फिर धार्मिक क्षेत्र हो, सार्वजनिक जीवन में जब मनुष्य उतरता है तो उसके स्वीकृत दायित्व, स्वीकृत सिद्धांत व कार्यक्रम होते हैं। वरना वह सार्वजनिक क्षेत्र में उतरे ही क्यों? जिन्हें कि उसे क्रियान्वित करना होता है या यूं कहिए कि अपने कर्तृत्व के माध्यम से प्रामाणिकता से जीकर बताना होता है परन्तु सत्ता के इर्द-गिर्द इसका नितांत अभाव है। प्रामाणिकता के रेगिस्तान में कहीं-कहीं नखलिस्तान की तरह कुछ ही प्रामाणिक व्यक्ति दिखाई देते हैं जिनकी संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है। क्या उन अंगुलियों पर गिने जाने वाले लोगों में अरविन्द केजरीवाल और उनकी सरकार ने अपनी पात्रता सिद्ध करने की ठानी है? आप सरकार को जनता के बीच स्वस्थ सांझेदारी विकसित करनी होगी। हमने राशन कार्ड बनवाना हो या टेलीफोन लगवाना हो, रेल का आरक्षण हो या गैस का कनेक्शन लेना हो, लम्बी-लम्बी कतारें एवं जटिल प्रक्रियाओं का दौर देखा हैं। ड्राइविंग में चालान हो या बिक्रीकर, सेलटैक्स जमा कराना हो- सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलाएं बहुत भोगी है, इंस्पेक्टर राज एवं रिश्वत का बोलबाला बहुत सांसें फुलाता रहा है, जीवन को जटिल बनाता रहा है। अब वर्तमान में हर किसी की जिन्दगी कितनी सहज और सरल हो चुकी है। आज घंटों का काम मिनटों में हो रहा है जोे सरकारों की साफ नियत एवं नीति का ही परिणाम है। असल में लम्बी कतारों का मतलब ही भ्रष्टाचार था। कम समय में काम कराने के लिए दलाल आसपास मंडराते रहते थे। लोग तब भी फार्म जमा कराने, बिजली के बिल जमा कराने के लिए उन्हें पैसे देते थे। लाइन कितनी ही लम्बी हो, दलाल ऑफिस में पीछे से घुसते और पांच मिनट में ही प्राप्ति की रसीद ले आते। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का संकल्प व्यक्त किया। सभी सरकारों को ऐसे ही संकल्प लेने होंगे, तभी देश को भ्रष्टाचार की चंगुल से बाहर निकाला जा सकता है।
सरकार जनता को लुभाने के लिये योजनाएं तो बनाती है लेकिन योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर नाकाम भी साबित होती है। देखना यह है कि आप सरकार इस योजना को किस तरह से लागू कर इसे सफल बनाती है। किसी भी तरह की ढील, कर्मचारियों की लापरवाही या निठल्लापन योजना को विफल बना देगा। योजना सफल हुई तो आप की कथनी करनी की प्रामाणिकता सार्वजनिक क्षेत्र में सिर का तिलक होगी और भारतीय राजनीति में धूमकेतु की तरह उभरे अरविन्द केजरीवाल की चमक इससे और बढ़ेगी। दिल्ली सरकार की यह योजना सफल हुई तो यह बाकी राज्यों के लिए नजीर पेश करेगी। राजनीति में सत्ता के लिए होड़ लगी रहती है, व प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर सत्ता को येन-केन-प्रकारेण, लाॅबी बनाकर प्राप्त करना या जीवंत रखना चाहते हैं। अरे सत्ता तो क्राॅस है- जहां ईसा मसीह को टंगना पड़ता है। सत्ता तो जहर का प्याला है, जिसे सुकरात को पीना पड़ता है। सत्ता तो गोली है जिसे गांधी को सीने पर खानी होती है। सत्ता तो फांसी का फन्दा है जिसे भगतसिंह को चूमना पड़ता है। जहां से हम प्रामाणिकता एवं नैतिकता का अर्थ सीखते हैं, जहां से राष्ट्र और समाज का संचालन होता है, उनके शीर्ष नेतृत्व को तो उदाहरणीय किरदार अदा करना ही चाहिए।
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