नेहरू अपनी पूरी ज़िंदगी गुलाब कोट में लगाए राजनीति करते रहे. अटल बिहारी कमल को अपना सबकुछ मानते रहे. आडवाणी तो इतनी दुर्गति के बावजूद अभी तक कमल की ओट में नतमस्तक पड़े हैं. यहां तक कि शाहनवाज़ हुसैन भी अपनी लगातार हो रही उपेक्षा के बावजूद भाजपा में हैं. लेकिन राजनीति में एक फूल नहीं, अलग-अलग फूलों के पूरे गुलदस्ते से प्यार करने वाले शख्स को इन लोगों की स्टाइल वाली राजनीति से कोई सरोकार नहीं. वो अपनी पसंद का फूल चुनते हैं और उसे लेकर इतराते फिरते हैं. जब एक फूल से मन भर जाता है, दूसरा उठा लेते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश से आने वाले राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल की.
नरेश अग्रवाल ने देखा कि राज्यसभा में बने रहने का रास्ता फिलहाल समाजवादी पार्टी की ओर से बंद हो रहा है तो नाराज़ होकर पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए. लेकिन नरेश अग्रवाल ऐसा पहली बार नहीं कर रहे हैं. वो उत्तर प्रदेश के रामबिलास पासवान हैं. ऐसा कई बार कर चुके हैं. दशक बीतने से पहले नरेश अग्रवाल पार्टी बदल लेते हैं. कांग्रेस, लोकतांत्रिक कांग्रेस, बसपा और सपा होते हुए अब भाजपा में पहुंच गए हैं.
तो क्या नरेश अग्रवाल का भाजपा में जाना समाजवादी पार्टी को एक झटका है. शुरुआती तौर पर ऐसा लग सकता है क्योंकि नरेश अग्रवाल के जाने से सपा की बसपा के प्रत्याशी को राज्यसभा भेजने की तैयारी फेल होती नज़र आ रही है. लेकिन लंबी दूरी में नरेश अग्रवाल सपा नहीं, भाजपा के लिए आफत साबित होने वाले हैं, यह भी साफ दिखाई दे रहा है.
भाजपा में शामिल होते हुए नरेश अग्रवाल ने जया बच्चन को राज्यसभा भेजने के प्रति अपनी असहमति जाहिर करते हुए कहा कि नाचने गाने वाली को उनसे ज़्यादा तरजीह दी गई. इस बयान को लेकर उनका विरोध भाजपा में ही शुरू हो गया है. भाजपा की महिला नेताओं की ओर से उनके बयान की कड़ी निंदा की गई है. सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी इस फेहरिश्त में शामिल हैं.
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