नागरिकता संशोधन कानून बने अरसा गुजर गया पर उसका विरोध अब तक जारी है केवल तरीका बदल गया है |विरोध के पुराने तरीके युनिवर्सिटियों में हो रहे विरोध के बाद विरोधी दल ने अपना तरीका बदल इसे ‘ शाहीन बाग का धरना ‘ के रूप में परिवर्तित कर लिया है | ऐसे धरने विरोधी दलों की हताशा की और इशारा करते है | प्रदर्शनकारी सड़क पर इस प्रकार से धरने पर बैठे हैं कि लोगों के लिए वहाँ से पैदल निकलना भी दूभर है। लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे, स्थानीय लोगों का व्यापार ठप्प हो गया है, रास्ता बंद हो जाने के कारण आधे घंटे की दूरी तीन चार घंटों में तय हो रही है जिससे नौकरी पेशा लोगों का अपने कार्यस्थल तक पहुंचने में असाधारण समय बर्बाद हो रहा है। जाहिर है इससे गाड़ियों में ईंधन की खपत भी बढ़ गई है जो निश्चित ही पहले से प्रदूषित दिल्ली की हवा में और जहर घोलेगी।पर हालात का दूसरा पहलू भी होता है | हाल ही में एक वीडियो साझा वायरल हो रहा है जिसमें एक युवक यह कह रहा है कि यहाँ पर महिलाओं को धरने में बैठने के पांच सौ से लेकर सात सौ रुपये तक दिए जा रहे हैं। यह महिलाएं शिफ्ट में काम कर रही हैं और एक निश्चित संख्या में अपनी मौजूदगी सुनिश्चित रखती हैं। इतना ही नहीं उस युवक का यह भी कहना है कि वहाँ की दुकानों के किराए भी मकान मालिकों द्वारा माफ कर दिए गए हैं। इस वीडियो की सत्यता की जांच गंभीरता से की जानी चाहिए क्योंकि अगर इस युवक द्वारा कही गई बातों में जरा भी सच्चाई है तो निश्चित ही विपक्ष की भूमिका संदेह के घेरे में है।
दरअसल विपक्ष आज बेबस है क्योंकि उसके हाथों से चीज़ें फिसलती जा रही हैं। जिस तेजी और सरलता से मौजूदा सरकार इस देश के सालों पुराने उलझे हुए मुद्दे, जिन पर बात करना भी विवादों को आमंत्रित करता था, सुलझाती जा रही है, विपक्ष खुद को मुद्दाविहीन पा रहा है। और तो और वर्तमान सरकार की कूटनीति के चलते संसद में विपक्ष की राजनीति भी नहीं चल पा रही जिससे वो खुद को अस्तित्व विहीन भी पा रहा है शायद इसलिए अब वो अपनी राजनीति सड़कों पर ले आया है। खेद का विषय है कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए अभी तक विपक्ष आम आदमी और छात्रों का सहारा लेता था लेकिन अब वो महिलाओं को मोहरा बना रहा है। जी हाँ इस देश की मुस्लिम महिलाएँ और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं क्योंकि शाहीन बाग का मोर्चा महिलाओं के ही हाथ में है।अगर शाहीन बाग का धरना वाकई में प्रायोजित है तो इस धरने का समर्थन करने वाला हर शख्स और हर दल सवालों के घेरे में है। संविधान बचाने के नाम पर उस कानून का हिंसक विरोध जिसे संविधान संशोधन द्वारा खुद संसद ने ही बहुमत से पारित किया हो क्या संविधान सम्मत है ? जो लड़ाई आप संसद में हार गए उसे महिलाओं और बच्चों को मोहरा बनाकर सड़क पर लाकर जीतने की कोशिश करना किस संविधान में लिखा है ? लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी हुई सरकार के काम में बाधा उत्पन्न करना लोकतंत्र की किस परिभाषा में लिखा है ?