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मानव सेवा ही स्वामीजी का धर्म था

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12 Jan 20
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मानव सेवा ही स्वामीजी का धर्म था

उदयपुर, ’स्वामी विवेकानंद केवल संत नहीं, एक महान देशभक्त, प्रखर वक्ता, विचारक, लेखक और मानवता प्रेमी थे।’ यह बात रविवार को नारायण सेवा संस्थान में स्वामी विवेकानंद जयंति पर ’स्वामी विवेकानंद और मानव धर्म’ विषयक परिचर्चा में पद्मश्री कैलाश ’मानव’ ने कही। उन्होंने कहा कि स्वामीजी ने धर्म को हमेशा मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही चिंतन किया। वे दुःखी, पीड़ितों और वंचितों की सेवा को ही धर्म मानते थे। शिकागो में दिया गया उनका भाषण भी मानव सेवा व विश्व शांति पर आधारित था।
     संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कहा कि स्वामीजी ईश्वर के प्रतिनिधि थे। वे जहां भी गए और जिनसे भी मिले अपनी विनम्रता और विद्वता से सबका दिल जीता। उनका यह कहना आज भी सामयिक है कि ’उठो जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओं। अपने जन्म को सार्थक करो और तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।’ परिचर्चा में निदेशक देवेन्द्र चैबीसा, महागंगोत्री प्रमुख गौरव शर्मा, विष्णु शर्मा हितैषी, भगवानप्रसाद गौड़, कुलदीप सिंह शेखावत,दीपक मेनारिया,दल्लाराम पटेल ने भाग लिया। 


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