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’नए मोटर वाहन नियमों में सरकार द्वारा किये संषोधनों की स्थिति‘

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15 Sep 19
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’नए मोटर वाहन नियमों में सरकार द्वारा किये संषोधनों की स्थिति‘

इस माह सितम्बर, २०१९ में भारत सरकार ने मोटर वाहन नियमों में संषोधन कर नये प्रावधानों को लागू किया है। इन प्रावधानों में अपने वाहन की आर.सी., बीमे, प्रदुशण एवं लाइसेंस के मूल दस्तावेज न रखने पर भारी आर्थिक दण्ड वा जुर्माने का प्रावधान किया गया है। दण्ड की धनराषि इतनी अधिक कर दी गई है कि आम आदमी उस राषि का भुगतान नहीं कर सकता। देष की आजादी के बाद इतनी अधिक बढोतरी कभी नहीं की गई। देष के सभी सामान्य लोग इन प्रावधानों से डरे व सहमें हुए हैं। अधिकांष की तो आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह चालान की धनराषि का भुगतान कर सके। दूरदर्षन के सभी चैनलों ने उन लोगों को दिखाया है जिनके चालान किये गये हैं। यह चालान सैकडों में नहीं अपितु हजारों रूपयों के हैं जिनका भुगतान आसानी से कोई नहीं हो सकता। एक व्यक्ति के चालान की धनराषि तो एक लाख से ऊपर है जिसे कल ही टीवी पर दिखाया गया है। सरकार की दलील है कि देष में जो सडक दुर्घटनायें होती हैं उसे ध्यान में रखकर लोगों के जीवन को बचाने के लिये ऐसा किया गया है। सरकार की जो भावना है वह अच्छी है जिसका कोई विरोध नहीं कर सकता परन्तु उसके लिये चालान व दण्ड की धनराषि को जिस कदर बढाया गया है उसे कोई उचित नहीं कह सकता। इस बात की भी कोई गारण्टी नहीं है कि इससे दुर्घटनायें होना बन्द हो जायेंगी? जिन लोगों का चालान हुआ है वह लोग इस सरकारी कृत्य से आहत हैं। गाडी चलाते समय चालक के पास कुछ कागजात न होने के अनेक कारण होते हैं। कोई पेपर जल्दी में घर भूल आया होता है तो कोई अन्य गाडी का चालक किसी कारण से चालान करने वाले अधिकारियों को कोई एक या दो दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाता। यह अपराध इतना बडा नहीं है कि उसे लाइसेंस, प्रदुशण प्रमाणपत्र तथा बीमे के लिये हजारों रूपये के दण्ड से दण्डित किया जाये। ऐसा करना अपराध के अनुरूप दण्ड से कहीं ज्यादा दण्ड हो जाता है जबकि हमारी न्याय प्रमाणी अपराध, उसकी प्रकृति व अपराध करने वाली मंषा के अनुरूप ही अपराधी को दण्ड देने की बात कहती है।

जनता को मोटर वाहनों के नये प्रावधानों से होने वाली असुविधा और इसका केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के प्रति आक्रोष को जानकर गुजरात सरकार ने इन प्रावधानों में अनेक संषोधन करने के बाद ही इसे लागू किया है। अनेक राज्य भी इसमें संषोधन करने की बात कह रहे हैं और कुछ तो इसको लागू करने से ही मना कर रहे हैं। सरकार को भी इस कानून के संषोधित प्रावधानों पर पुनर्विचार करना चाहिये अन्यथा देष के नागरिक इन नियमों व प्रावधानों से डरे रहेंगे जिसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।

इस समस्या का एक पहलू यह भी है कि देष के कुछ मुट्ठी-भर ही लोग ऐसे होंगे जो षायद जानबूझ कर इस मोटर वाहन कानून का उल्लंघन जानबूझ कर करेंगे। अतः कुछ थोडे से लोगों की गलती की सजा यदि हमारी केन्द्रीय सरकार पूरे देष के नागरिकों को देना चाहती है तो यह न तो जनता के हित में है और न ही सरकार के हित में होगा। इस कानून का जनता पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव बुरा ही पडने की सम्भावना है जिसे समय रहते दुरुस्त कर दिया जाना चाहिये।

यह भी महत्वपूर्ण है कि हमारे देष में सरकारी कार्यालयों से छोटा-मोटा काम कराने में भी जनता मनोवैज्ञानिक रूप से डरती व परेषानी का अनुभव करती है। लोग एजेन्टों से काम कराते हैं जो किसी साधारण काम का हजार दो हजार रूपया अतिरिक्त ले लेते हैं। सरकार को चाहिये कि यह सब काम आनलाईन होने चाहिये जिससे कि किसी को सरकारी विभाग में जाना ही न पडे। जैसे रेल व जहाज के टिकट मोबाइल व नैट के माध्यम से घर में बैठे बन सकते हैं वैसे ही परिवहन विभाग की पूरी कार्य प्रणाली घर में ही बैठे बैठे सम्पन्न होनी चाहिये। जो भी दस्तावेज व षुल्क आदि जमा करना होता है उसे भी आनलाईन जमा किया जा सकता है। यदि ऐसा हो जाये तो फिर अधिकांष लोग सभी प्रकार के दस्तावेज अपने पास तैयार रखेंगे। सरकार ने इस दिषा में अनेक सुधार किये हैं परन्तु ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये कि किसी व्यक्ति विषेश को सरकारी कार्यालयों में न जाना पडे।

सरकार जनता से कर लेती है जिसका उद्देष्य जनता को अच्छी सुविधायें देना होता है। गाडी चलाने वाले भी सरकार से अपेक्षा करते हैं कि सडके मानक के अनुरूप होनी चाहिये। उनकी चौडाई, डिवाईडर आदि की व्यवस्था सरकार को यथोचित करनी चाहिये। सडको पर गड्ढे नहीं होने चाहिये। कई जगह सडके इतनी तंग हैं कि गाडी निकालना कठिन होता है। लोग कहीं भी अपना वाहन पार्क कर देते हैं। इन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये। एक्सीडेंट का कारण सडक का कम चौडा होना, डिवाईडर न होना, सडको में गड्ढे होना और अधिक गति हुआ करती है। अधिक गति को नियंत्रित करने के लिये अलग से प्रावधान होने चाहियें। इसी प्रकार से रैड लाईट पर जम्प करने या रैड लाईट की अनदेखी करने पर अपराध के अनुरूप धनराषि वसूली जा सकती है। पहली बार तो यदि चेतावनी देकर क्षमा कर दिया जो उचित होगा। कम आयु के बच्चे वाहन बिना लाइसेंस गाडी चलाय तो उनके अभिभावकों को भी इसके लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है परन्तु यह केस टू केस आधार पर करना उचित होगा। सबको एक ही लाठी से हांकना उचित नहीं है। अतः सरकार से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह अपने उत्तरदायित्व का भी समुचित पालन करे जिससे जनता को अच्छी सडके व सुविधायें मिले और देष में दुर्घटनायें न हों। यह भी निवेदन करना है कि प्रधानमंत्री जी देष में बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। देष की जनता उनके कार्यों से सन्तुश्ट एवं प्रसन्न है। इस कानून ने जनता के मन में सरकार के प्रति विष्वास को किंचित प्रभावित किया है, ऐसा कुछ कुछ प्रतीत होता है। अतः समस्या का समाधान जनता को कम से कम कश्ट दिये किया जाये तो यही उचित होगा।

देष का हर नागरिक चाहता है कि देष में कहीं कोई दुर्घटना न हो। सभी नियमों का पालन भी करना चाहते हैं। कुछ लोग ही नियम तोडते हैं परन्तु जब कानून बनता है तो इससे आक्समिक अनजाने में हुई गलती पर देष व समाज का हित चाहने वाली बहुतायत जनता को आर्थिक दण्ड से यदि दुःखी व परेषान किया जाता है तो यह उचित प्रतीत नहीं होता। अतः केन्द्र सरकार को अपने इस कानून पर पुनर्विचार कर इसे इस प्रकार से संषोधित करना चाहिये कि देष की कानून का पालन करने वाली जनता को किसी भी प्रकार का मानसिक एवं आर्थिक कश्ट न हो और समस्या का समाधान हो जाये। यहां यह कहना भी उचित होगा कि देष की जनता को सरकार की मंषा पर सन्देह नहीं है परन्तु आर्थिक दण्ड में जो वृद्धि की गई है वह षायद किसी को भी स्वीकार्य नहीं है।


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