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“स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस पर उनके जीवन की घटनाओं का आकर्षक प्रस्तुतिकरण”

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26 Dec 18
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“स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस पर उनके जीवन की घटनाओं का आकर्षक प्रस्तुतिकरण” स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस दिनांक 23 दिसम्बर 2018 को आर्यसमाज धामावाला देहरादून के प्रधान डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने आर्यसमाज की संस्था ‘श्री श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम’ में स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन को पावर प्वाइण्ट प्रजन्टेशन के द्वारा प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया। इस आयोजन में आर्यजगत के शीर्ष विद्वान डॉ. वागीश शास्त्री सहित अनेक लोग उपस्थित थे। पावर प्वाइण्ट प्रजन्टेशन में एक लैपटाप में प्रजन्टेशन तैयार किया जाता है और उसे दीवार पर एक बड़े पर्दें पर टीवी की भांति देखा जाता है। डॉ. शर्मा ने कार्यक्रम का आरम्भ वेदमंत्र ‘ओ३म् विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव’ से किया। यह मन्त्र ऋग्वेद और यजुर्वेद दोनों में मिलता है। वक्ता एवं श्रोताओं ने मिलकर इसका भाषा में अर्थ बोला। यह मन्त्र व अर्थ स्क्रीन पर भी दिखाया गया। स्क्रीन के द्वारा बताया गया कि स्वामी श्रद्धानन्द जी का जन्म 2 फरवरी सन् 1856 तथा बलिदान दिनांक 23-12-1926 को हुआ था। शर्मा जी ने इस कार्यक्रम को जो नाम दिया वह था ‘अमर शहीद स्वामी श्रद्धानन्द जी’। स्वामी जी का चित्र भी पर्दे पर दिखाया गया। स्वामी श्रद्धानन्द जी का जन्म जालन्धर के एक ग्राम तलवन में हुआ था। जन्म के समय श्रद्धानन्द जी का नाम बृहस्पति था। इसके बाद उनके नाम मुंशीराम, मुंशीराम जिज्ञासु, महात्मा मुंशीराम आदि हुए। दिनांक 12-4-1817 को उन्होंने संन्यास धारण किया और तब उनका नाम स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती हुआ। स्वामी श्रद्धानन्द में निर्भीकता व त्याग का गुण था। वह अनूठे दूरदर्शी, समाज सुधारक तथा शिक्षा शास्त्री भी थे। पर्दे पर स्वामी श्रद्धानन्द जी के अनेक चित्र भी दिखाये गये। शर्मा जी ने बताया कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ऋषि दयानन्द जी के सच्चे शिष्य बने। ऋषि दयानन्द ने आर्यसमाज की स्थापना दिनांक 10-4-1875 को मुम्बई के गिरिगांव मुहल्ले में की थी। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने आर्यसमाज का पोषण, रक्षा, विस्तार तथा उसे ऊंचे शिखर पर पहुंचाया। आर्यसमाज की उन्नति में स्वामी श्रद्धानन्द जी का योगदान अतुल्य है।

स्वामी श्रद्धानन्द जी के पिता का नाम लाला नानक चन्द था। उनके परदादा का नाम श्री सुखानन्द था। दादा जी लाला गुलाब राय थे। पिता जी की सन्तानें क्रमशः सीताराम जी, प्रेमदेवी जी, मूलाराम जी, द्रौपदी जी, आत्माराम जी तथा मुंशीराम जी थी। श्रद्धानन्द जी के पिता अंग्रेजों की सेवा में एक पुलिस अधिकारी थे। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा एक मौलवी से हुई जिसने उन्हें उर्दू व फारसी का ज्ञान कराया। सन् 1873 में वह बनारस के क्वीन्स कालेज में भर्ती हुए। म्योर सेन्ट्रल कालेज, इलाहाबाद में भी उन्होंने अध्ययन किया। यहां से स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कक्षा 12 अथवा एफ.ए. पास किया। स्वामी जी ने सन् 1881 में लाहौर में कानून की पढ़ाई की। सन् 1883 में आपने मुख्तार की परीक्षा पास की। आपकी माता जी का नाम स्वामी श्रद्धानन्द जी पर उपलब्ध सहित्य में कहीं नहीं मिलता। उनकी माता जी की मृत्यु सिर में एक फोड़ा होने व उसमें पीप भर जाने से हुई थी। माता जी का बलिया में सन् 1875 में देहान्त हुआ। उस समय मुंशीराम जी 19 वर्ष के थे।

मुंशीराम जी का विवाह 21 वर्ष की आयु में सन् 1877 में जालन्धर में हुआ। राय सालिग राम जी आपके श्वसुर तथा उनकी पुत्री शिवदेवी जी आपकी धर्मपत्नी बनी। विवाह के समय शिवदेवी जी की आयु मात्र 12 वर्ष की थी। मुंशीराम जी ने सन् 1884, स्वामी दयानन्द की मृत्यु के लगभग एक वर्ष बाद, आर्यसमाज बच्छोवाली, लाहौर में प्रवेश किया अर्थात् सदस्य बने। आपकी दो पुत्रियां वेद कुमारी और हेम कुमारी थीं। आपके 2 पुत्र हरिश्चन्द्र एवं इन्द्र थे। मुंशीराम जी को आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द के दर्शन व भेंट बरेली में सन् 1879 में हुई थी। आपको इससे पहले 10 वर्ष की आयु में काशी में ही स्वामी दयानन्द जी के दर्शन हो सकते थे। इन दिनों काशी में स्वामी दयानन्द जी के विषय में वहां के पंडितों ने मिथ्या प्रचार कर उन्हें नास्तिक व जादूगर बताया था। मुंशीराम जी की माता जी इस कारण उन्हें घर से बाहर जाने नहीं देती थी। मुंशीराम जी के पिता नानकचन्द जी ने इस घटना का उल्लेख कर कहा है कि जिस अवधूत से मुंशीराम जी को माता जी ने मिलने से रोका था वह स्वामी दयानन्द जी थे। डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने अपने प्रजन्टेशन में बताया कि महर्षि दयानन्द बृहस्पतिवार दिनांक 14-8-1879 को बरेली पधारे थे। मुंशीराम जी के पिता नानकचन्द जी बरेली के शहर कोतवाल थे। उन्हें स्वामी दयानन्द के व्याख्यानों में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने का दायित्व उच्चाधिकारियों द्वारा दिया गया था। उन दिनों मुंशीराम जी नास्तिक हो चुके थे। उन्हें हिन्दू, मुसलमान तथा ईसाई मत के लोगों व विद्वानों से घृणा हो गई थी। तब कोई नहीं जानता था कि एक दिन यही व्यक्ति परम आस्तिक बनकर स्वामी श्रद्धानन्द के नाम से प्रसिद्धि पायेगा।

डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने मुंशीराम जी के पिता के उन शब्दों को प्रस्तुत किया जो उन्होंने मुंशीराम को स्वामी दयानन्द के सत्संग में जाने के लिये कहे थे। मुंशीराम जी ने अगले दिन महर्षि दयानन्द जी का व्याख्यान सुना। उनका व्याख्यान ईश्वर के नाम ‘ओ३म्’ पर था। दयानन्द जी के भाषण से मुंशीराम जी को आत्मिक आनन्द की अनुभूति हुई थी। हम जो यह वर्णन कर रहे हैं वह डॉ. महेश कुमार शर्मा जी द्वारा पावर प्वाइण्ट प्रजन्टेशन में प्रस्तुत किया गया। उनका प्रजन्टेशन जारी रहा। डॉ. शर्मा ने बताया कि स्वामी दयानन्द 21 दिनों तक बरेली में रहे थे। मुंशीराम जी ने बरेली में स्वामी दयानन्द का एक ईसाई पादरी टी.जे. स्काट के साथ शास्त्रार्थ भी सुना था। बरेली निवास के समय मुंशीराम जी की आयु 23 वर्ष की थी। डॉ. शर्मा ने मुंशीराम जी की बरेली में स्वामी दयानन्द जी से भेंट एवं उनसे प्रश्नोत्तरों का भी विस्तार से वर्णन किया। मुंशीराम जी के यह कहने पर कि आपके उत्तरों से मेरी बुद्धि तो निरुत्तर हो गई परमात्मा मेरी आत्मा में ईश्वर के प्रति विश्वास उत्पन्न नहीं हुआ है। इसका उत्तर स्वामी दयानन्द जी ने यह दिया था कि मुंशीराम! ईश्वर पर तुम्हारा विश्वास तब होगा जब ईश्वर तुम्हें अपने स्वरूप का विश्वास करायेंगे। डॉ. शर्मा जी ने मुंशीराम जी की उन दिनों की वैचारिक स्थिति व अवस्था का भी वर्णन किया। स्वामी श्रद्धानन्द जी के अनुसार स्वामी दयानन्द जी सच्चे ऋषि थे। स्वामी दयानन्द से भेंट, प्रश्नोत्तर व स्वामी दयानन्द जी के जीवन को देखने तथा सत्यार्थप्रकाश पढ़ने से से मुंशीराम जी की कायापलट हो गई।

डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने प्रजन्टेशन देते हुए मुंशीराम जी के जीवन में मांस व मदिरा आदि के सेवन जैसी बातों का भी उल्लेख किया। शर्मा जी ने बताया कि मुंशीराम जी के पिता का देहान्त पक्षाघात रोग से दिनांक 26-6-1886 को हुआ था। श्रद्धानन्द जी की धर्मपत्नी के विषय में उन्होंने बताया कि उनकी मृत्यु का कारण भी उनकी पांचवी सन्तान का प्रसव व निर्बलता थी जिसमें उन्होंने एक कन्या को जन्म दिया था। उनका देहावसान दिनाक 30-8-1891 को 26 वर्ष की आयु में हुआ था। उस समय मुंशीराम जी की अवस्था 35 वर्ष की थी। डॉ. शर्मा जी ने शिवदेवी जी के उस पत्र के विषय में भी बताया जिसमें उन्होंने मुंशीराम जी को कुछ मार्मिक बातें लिखी थी। इसके बाद महात्मा मुंशीराम जी आजीवन अविवाहित रहे। उन्होंने अपने बच्चों को माता व पिता दोनों का प्यार दिया और उनका पालन पोषण किया। डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने कांगड़ी ग्राम में गुरुकुल की स्थापना का विस्तृत विवरण भी दिया। स्वामी जी को गुरुकुल की स्थापना का विचार कैसे आया इसका उल्लेख भी उन्होंने अपने प्रदर्शन में किया। उन्होंने बताया कि दिनांक 19-10-1888 को उनकी पुत्री वेदकुमारी अपने स्कूल से घर आई। उसने मुंशीराम जी को एक गीत सुनाया। गीत के बोल थे ‘एक बार तू ईसा ईसा बोल, तेरा क्या लगेगा मोल, ईसा मेरा राम रमैया ईसा मेरा कृष्ण कन्हैया’। वैदिक धर्म व संस्कृति के विनाशक गीत को सुनकर स्वामी जी ने चुनौती स्वीकार कर गुरुकुल की स्थापना का विचार किया था।

डॉ. महेश कुमार शर्मा जी ने बताया कि स्वामी श्रद्धानन्द जी ने गुजरांवाला में एक गुरुकुल तथा जालन्धर में एक कन्या विद्यालय खोला था। कांगड़ी का गुरुकुल 1200 बीघा भूमि पर खोला गया था। इस गुरुकुल में 34 विद्यार्थी गुजरांवाला की पाठशाला से आये थे। डॉ. शर्मा ने स्वामी श्रद्धानन्द जी के जीवन के सभी पक्षों को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी के शुद्धि कार्य से मुसलमान नाराज हो गये। शर्मा जी ने कराची की असगरी बेगम का जिक्र किया जिसकी स्वामी जी ने शुद्धि की थी, इसका नया नाम शान्ती देवी रखा और गुरुकुल के एक विद्यार्थी से उसका विवाह कराया था। शर्मा जी ने यह भी बताया कि इनकी एक पुत्री उत्पन्न हुई जिसका नाम किरण था। इसने सिनेमा जगत में काम कर प्रसिद्धि प्राप्त की। सिने जगत में इस लड़की का नाम किरण से तव्वसुम रखा गया। दिनांक 23-12-1926 को स्वामी श्रद्धानन्द जी नया बाजार स्थिति निवास स्थान पर रोग शय्या पर पड़े थे। एक मुस्लिम युवक अपना धर्म परिवर्तन का झूठा प्रस्ताव लेकर उनसे मिलने आया और मौका देखकर पिस्तौल से उनके सीने में तीन गोलियां मार दी। स्वामी जी के सेवक श्री धर्मपाल ने उस हत्यारे को पकड़ लिया। उसको फांसी की सजा मिली। शर्मा जी ने स्वामी श्रद्धानन्द जी के विषय में कुछ और जानकारियां भी दीं। इसके बाद आर्य विद्वान डॉ. वागीश शास्त्री जी को एक कम्बल भेंट कर उनका सम्मान किया गया। श्री मंगल मोहन जी, श्री ओम्प्रकाश नागिया जी, श्रीमती सुरेन्द्र भाटिया, श्री वर्मा जी, महिला आश्रम की मंत्राणी श्रीमती सन्तोष गोयल, श्री जगन्नाथ मेहता जी, श्रीमती कृष्णा माटा जी, श्री राहुल मित्तल जी, रामप्यारी आर्य इण्टर कालेज की प्रधानाचार्या, श्रीमती उर्वशी जी, श्री निर्भय सिंह वर्मा जी-वैज्ञानिक, श्रीमती अरुणा गुप्ता तथा श्रीमती सन्तोष आनन्द जी का माल्यार्पण द्वारा सम्मान किया गया। शान्तिपाठ के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। इसके बाद सामूहिक भोज हुआ। स्वामी श्रद्धानन्द जी का यह कार्यक्रम अत्यन्त सफल रहा। ओ३म् शम्
-मनमोहन कुमार आर्य
पताः 196 चुक्खूवाला-2
देहरादून-248001
फोनः09412985121


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