आर्यसमाज में ऐसी बहुत सी विभूतियां हुई हैं जिन्होंने अपने पवित्र जीवन व सद्कर्मों से आर्यसमाज के नाम और इसके यश को न केवल बढ़ाया ही है अपितु जिन्होंने अपनी पवित्र कमाई से आर्यसमाज के गुरुकुल व अन्य संस्थाओं का पोषण भी किया है। ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनके वंशवद् भी अपने पिता व पूवर्जो के यश को दान व सुकर्मों आदि से बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही कुछ सत्पुरुषों में हमें एक नाम महात्मा दीपचन्द आर्य, कीरतपुर का भी दृष्टिगोचर होता है। महात्मा दीपचन्द आर्य जी ऋषि दयानन्द, आर्यसमाज और वैदिक सिद्धान्तों के अनन्य भक्त व निष्ठावान अनुयायी होने के साथ उन पर चलने वाले थे। आपने वैदिक सिद्धान्तों के अनुसार पवित्र जीवन तो जीया ही, इसके साथ ही आपने व्यापर में सफलता प्राप्त कर अपने पुरुषार्थ से अर्जित आय से आर्यसमाज की संस्थाओं गुरुकुल नजीबाबाद, वैदिक भक्ति साधन आश्रम, रोहतक, वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून सहित अनेक आर्यसमाजों व शिक्षण संस्थाओं को दान आदि देकर उनका पोषण भी किया है।
ऋषिभक्त दीपचन्द आर्य जी के नाम से प्रसिद्ध इस यज्ञ व धर्म प्रेमी पवित्र आत्मा का जन्म 17 मई, 1927 को हरयाणा के जिन्द जिले के एक गांव मिर्चपुर में हुआ था। आप आर्यसमाज और ऋषिभक्त विद्वान महात्मा प्रभु आश्रित जी के सम्पर्क में आये जिन्होंने यज्ञ व अग्निहोत्र सहित गायत्री जप आदि कार्यों में आपकी रुचि व प्रवृत्ति उत्पन्न की। आपने वैदिक सिद्धान्तों सहित वैदिक मर्यादाओं का पालन करते हुए गृहस्थ जीवन बिताया और आध्यात्मिक एवं भौतिक सभी प्रकार की सफलतायें प्राप्त करने के साथ प्रभूत यश व कीर्ति भी अर्जित की। दिनांक 19 दिसम्बर, 2018 को उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत बिजनौर के एक कस्बे कीरतपुर में, जो आपकी सन् 1964 से कर्मभूमि रही है, वहां लगभग 91 वर्ष की आयु में आपका दुःखद देहावसान हुआ। आपने जीवन में वैदिक धर्म के पालन सहित यज्ञ एवं जप आदि की जो कठिन व असम्भव सी साधनायें की हैं, उससे निश्चय ही आप मोक्ष प्राप्ति के अधिकारी बने हैं। हम अपने जीवन व पाठकों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने के लिये आपके जीवन की कुछ घटनाओं, उनके कार्यों व साधनाओं पर दृष्टिपात कर रहे हैं जिससे हम सबमें भी वह गुण उत्पन्न हो सकें जो महात्मा दीपचन्द आर्य जी में थे। इससे हम अनुमान करते हैं कि हमारा इस संसार में आना लाभप्रद हो सकेगा।
महात्मा दीपचन्द आर्य जी ने अपने गांव में कक्षा आठ तक शिक्षा प्राप्त की थी। युवा होने पर आपने अपना व्यवसाय आरम्भ किया। सन् 1964 में आप जिन्द से कीरतपुर आये थे और तब से यह स्थान आपकी कर्मभूमि बन गया। श्री आर्य में यज्ञों के प्रति गहरी श्रद्धा व निष्ठा थी। आप यज्ञ के लिये अपना सर्वस्व समर्पित करने की भावना रखते थे। यज्ञ की तुलना में अन्य कार्यों को आप अधिक महत्व नहीं देते थे। यज्ञों के प्रति आपकी गहरी भावना का ही परिणाम हैं कि आपने 100 बार सामवेद पारायण यज्ञ, 100 बार यजुर्वेद पारायण यज्ञ और 14 बार चतुर्वेद पारायण यज्ञ किये। यह कार्य कोई छोटा कार्य नहीं है। हमें तो यह असम्भव सा ही प्रतीत होता है। इससे आपकी वैदिक धर्म ओर उसमें विधेय यज्ञों के प्रति गहरी आस्था, निष्ठा व भावना का परिचय मिलता है। आपने अपने यज्ञ के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय एक बार एक लाख पच्चीस हजार गायत्री मन्त्र से आहुतियों का यज्ञ रचाकर भी दिया और एक बार 1.25 करोड़ गायत्री मन्त्र की आहुतियों से किये यज्ञ में आप सहभागी बनें। स्वामी विज्ञानानन्द जी वैदिक भक्ति साधन आश्रम, रोहतक के यशस्वी प्रधान रहे हैं। उनकी प्रेरणा से आप एक बार 4.32 करोड़ गायत्री मन्त्र के जप के अनुष्ठान में भी सहभागी बने। हमें तो लगता है कि आध्यात्मिक अनुष्ठानों के प्रति आपकी भावना की कोई सीमा नहीं थी और जो कुछ आपने अपने जीवन में किया वह आध्यात्मिक अनुष्ठानों की पराकाष्ठा कही जा सकती है। आपका जीवन अध्यात्म के क्षेत्र में असम्भव को सम्भव करने का एक महनीय उदाहरण है। धन्य हैं ऋषि दयानन्द और महात्मा प्रभु आश्रित जी जिनकी प्रेरणा से आपने इतने महान कार्यों का अपने जीवन में सम्पादन किया। आप भले ही वानप्रस्थी व संन्यासी न बने हों परन्तु भाव व स्वभाव से तो आप संयस्त स्वभाव व भावना के धनी ही सिद्ध होते हैं।
आपने कुछ आर्य संस्थाओं के अनेक उत्तरदायित्वों का भी वहन किया है। आप वर्तमान में वैदिक भक्ति साधन आश्रम, रोहतम के अधिष्ठाता थे। यह आश्रम अध्यात्म के अनेक अनुष्ठान और वेद पारायण महायज्ञ आदि आयोजित करता रहता है। आप आर्ष कन्या गुरुकुल विद्यापीठ, श्रवणपुर-नजीबाबाद के भी वर्षों तक प्रधान रहे। इस प्रसिद्ध गुरुकुल की विदुषी आचार्या बहिन डॉ. प्रियम्वदा वेदभारती जी की प्रसिद्धि पूरे आर्यजगत और भारत में है। बहिन जी वेद पारायण यज्ञ एवं अन्य वैदिक अनुष्ठान भी कराती हैं। अभी एक-दो वर्ष पूर्व आप देहरादून के वैदिक साधन आश्रम तपोवन में आयोजित उत्सव में वेद पारायण यज्ञ की ब्रह्मा थी। आपके गुरुकुल की छात्राओं द्वारा यहां यहां वेद पारायण यज्ञ में वेद मन्त्रों का सस्वर पाठ किया जाता था। आपके लगातार विद्वतापूर्ण व्याख्यान व प्रवचन सुनने तथा उन्हें लिपिबद्ध कर फेसबुक, व्हटसप तथा इमेल से अपने पाठकों तक पहुंचाने का सुअवसर भी हमें मिला था। इस अवसर पर हमें बहिन प्रियम्वदा जी के वैदुष्य को जानने व समझने का सुअवसर मिला और हम उनके प्रवचनों को सुनकर धन्य हुए थे। इन संस्थाओं के अतिरिक्त भी महात्मा दीपचन्द आर्य जी कुछ अन्य शिक्षण एवं अन्य संस्थाओं के न्यासी एवं संरक्षक रहे जिससे उन संस्थाओं को फलने फूलने का अवसर मिला। ऐसी पवित्र व महान आत्मा को हम सादर नमन एवं वन्दन करते हैं।
महात्मा दीपचन्द आर्य जी के तीन पुत्र एवं चार पुत्रियां हैं। पुत्र श्री विजय कुमार गोयल, श्री सुन्दर गोयल एवं श्री महेश कुमार गोयल हैं तथा पुत्रियां श्रीमती उमादेवी जी (स्वर्गीय), श्रीमती सन्तोष अग्रवाल, श्रीमती शशि अग्रवाल एवं श्रीमती सविता अग्रवाल हैं। आपके पौत्रों में श्री मेहुल गोयल एवं श्री वरुण गोयल सहित तीन पौत्रियां वर्णिका जी़, अक्षरा जी एवं वसुधा जी हैं। आपके कनिष्ठ पुत्र श्री महेश कुमार गोयल जी की धर्मपत्नी आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं नेता महात्मा प्रेमभिक्षु जी, मथुरा की पौत्री हैं। हमने महात्मा प्रेमभिक्षु जी के वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में लगभग 30 वर्ष पूर्व दर्शन किये थे और उनके प्रवचन को सुना था। महात्मा प्रेमभिक्षु जी की मृत्यु के बाद उन पर एक लेख लिखा था जो मासिक पत्रिका तपोभूमि, मथुरा के विशेषांक में प्रकाशित हुआ था। आज भी हम महात्मा प्रेमभिक्षु जी द्वारा संचालित पत्रिका तपोभूमि के नियमित सदस्य हैं।
महात्मा दीपचन्द आर्य जी के निधन से ऋषि दयानन्द और यज्ञों का एक दीवाना कम हो गया है। उनके तीनों पुत्र अपने पिता के अनुरूप आध्यात्मिक एवं धार्मिक प्रवृत्ति के हैं। अब उन पर दायित्व है कि वह अपने पिता के यश को कायम रखें व उसे बढ़ायें। हम श्री विजय कुमार गुप्त जी से परिचित हैं। आप देहरादून के प्रसिद्ध वैदिक साधन आश्रम, तपोवन के न्यासी व सदस्य हैं। इसके प्रत्येक उत्सव पर पधारते हैं। यज्ञ में यजमान बनते हैं। आश्रम को दान से सींचते हैं। आप सज्जन प्रकृति एवं उदार तथा दानी वृत्ति के आर्यपुरुष हैं। आपके दोनो अनुज भी प्रकृति व व्यवहार में आपके सदृश्य एवं अनुरूप हैं। ईश्वर की कृपा इस परिवार पर बनी रहें और पिता की ही तरह इनके संरक्षण में श्री दीपचन्द आर्य जी द्वारा पोषित संस्थाओं का पोषण होता रहे। हम श्री दीपचन्द आर्य जी के निधन पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके परिवारजनों के प्रति अपनी सद्भावना व्यक्त करते हैं। 23 दिसम्बर, 2018 को महात्मा दीपचन्द आर्य की स्मृति में उनके नगर कीरतपुर स्थित निवास पर श्रद्धांजलि एवं स्मृति यज्ञ व सभा का आयोजन हुआ। गुरुकुल पौंधा देहरादून के आचार्य डॉ. धनंजय उस आयोजन में उपस्थित हुए। हमें भी उनके साथ वहां जाना था परन्तु देहरादून में आचार्य डॉ. वागीश शास्त्री, गुरुकुल-एटा के व्याख्यानों एवं इससे जुड़े कार्यक्रमों में हमारी उपस्थिति की आवश्यकता के कारण हम जा नहीं सके। इसका हमें दुःख है। हमें लेख विषयक कुछ जानकारियां व चित्र आचार्य धनंजय जी से मिले हैं। हम उनके ऋणी हैं और उनका धन्यवाद करते हैं। आचार्य धनंजय जी का हमारे प्रति प्रेम व आदर का भाव है। हम इसलिये भी उनके अत्यन्त ऋणी हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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