GMCH STORIES

“स्वामी अमरस्वामी के पिता के ऋषि दयानन्द के दर्शन की घटना और कुछ प्रासंगिक बातें”

( Read 14630 Times)

13 Jul 18
Share |
Print This Page
“स्वामी अमरस्वामी के पिता के ऋषि दयानन्द के  दर्शन की घटना और कुछ प्रासंगिक बातें” स्वामी अमरस्वामी (पूर्व नाम ठाकुर अमर सिंह जी) आर्यसमाज के दिग्गज विद्वान थे। वह शास्त्रार्थ महारथी थे। हमने स्वामी जी को आर्यसमाज धामावाला देहरादून के सत्संगों व वार्षिकोत्सवों में अनेक अवसरों पर सुना है। स्वामी जी पर लगभग 22-23 वर्ष पूर्व एक लेख भी लिखा था। हम उस लेख को आगामी कुछ दिनों बाद संशोधित कर प्रस्तुत करेंगे। यहां हम अमरस्वामी जी के पिता ठाकुमर टीकम सिंह जी के कर्णवास में ऋषि दयानन्द जी के दर्शन का वृतान्त प्रस्तुत कर रहे हैं।

ठाकुर अमर सिंह जी ने लिखा है ‘हमारे पिता ठाकुर टीकमसिंह जी ने कर्णवास में गंगा स्नान के मेले के अवसर पर महर्षि दयानन्द जी महाराज को व्याख्यान देते हुए देखा था। कुछ धूर्तों ने महर्षि के ऊपर झोली में भरकर धूल फेंकी। महर्षि के भक्त राजपूतों ने इनको पकड़कर मारना-पीटना चाहा। महर्षि ने कहा कि ये बच्चे हैं, इन्हें मारो मत। राजपूतों ने कहा कि महाराज, ये सब दाढ़ी-मूंछोंवाले जवान और बूढ़े भी हैं। ये बच्चे नहीं। हम इनको दण्ड देंगे। ऋषिवर ने कहा, चाहे बूढ़े हों, अल्प बुद्धि होने से बालक ही हैं, अतः कतई न मारो। पिताजी ने ये शब्द अपने कानों से सुने पर स्वामी जी का व्याख्यान नहीं सुना था।’ अमरस्वामी जी ने यह वर्णन अपनी उर्दू पुस्तक ‘मैं आर्यसमाजी कैसे बना?’ में किया है।

यह बता दें कि ठाकुर अमर सिंह जी का जन्म अरणियॉं ग्राम जिला बुलन्दरशहर, उत्तर प्रदेश में सन् 1894 में हुआ था। उनकी मृत्यु 4 सितम्बर, सन् 1987 को सायं 5.00 बजे हुई थी। स्वामी जी का जीवन 91 वर्षों का रहा। जीवन के अन्तिम वर्षों में स्वामीजी गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में अपनी कुटिया बनाकर रहते थे। आर्य विद्वान प्रो. रत्नसिंह जी उनके दामाद थे। हमने आर्यसमाज धामावाला देहरादून में अनेक अवसरों पर प्रो. रत्नसिंह जी के प्रवचन भी सुने हैं। वह दर्शन के आचार्य थे। एक बार प्रवचन में उन्होंने आचार्य रजनीश को अपना सहपाठी बताया था। उनकी वर्णन शैली तर्क व विश्लेषण प्रधान होती थी। आज भी हमें उनकी कही कुछ बातें स्मरण हैं। एक प्रवचन में उन्होंने कहा था कि यदि घर में पुत्र प्रति दिन पिता के चरण स्पर्श करता है तो इस परम्परा के कारण जीवन में कभी पिता-पुत्र के मध्य मन-मुटाव हो जाने पर चरण-स्पर्श की प्रथा उन दोनों को बिछड़ने नहीं देती अपितु विवादों को कुछ ही घंटों में समाप्त कर देती है। यह प्रथा परिवारजनों को जोड़ कर रखती है। यह घटना हमने एक दृष्टान्त सहित न्यूनतम दो अवसरों पर उनके श्रीमुख से सुनी थी।

एक बार उन्होंने लोगों को साधारण दुःखों में दुःखी होने की चर्चा की थी। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम का दृष्टान्त देकर कहा था कि वह राजा बनने वाले थे परन्तु परिस्थितियोंवश उन्हें वनवास करना पड़ा। वहां भी उनकी पत्नी सीता जी का रावण ने अपहरण कर लिया। आप से राम चन्द्र जी के दुःखों का अनुमान कीजिये। उन्होंने लोगों को कहा था कि जब आप को कोई दुःख सताये तो आप रामायण की इस घटना को याद कर लिया करें। आपका दुःख राम के दुःख से शायद बड़ा न हो। रामचन्द्र जी ने इस स्थिति में धैर्य का परिचय दिया था और विवेक से रावण को युद्ध में परास्त कर सीता जी को वापिस अयोध्या ले आये थे। प्रो. रत्न सिंह जी ने प्रवचन में यह भी कहा था कि यदि आपको कोई दुःख है तो आप अपने से बड़े दुःख वाले व्यक्ति का ध्यान करें। ऐसा करने पर आपका दुःख कम हो जायेगा। यह बातें हमने प्रसंगवश यहां वर्णन कर दी। यह भी बता दें कि प्रो. रत्न सिंह जी ने आर्यसमाज के नियमों की व्याख्या करते हुए एक पुस्तक लिखी थी। शायद यह हमारे पास है। अब यह पुस्तक किसी पुस्तक विक्रेता के पास दृष्टिगोचर नहीं होती।

स्वामी अमरस्वामी जी पर एक अभिनन्दन ग्रंथ भी प्रकाशित हुआ था। इस ग्रन्थ में बहुत उपयोगी सामग्री है। यह लिखते हुए हमें प्रसन्नता है कि यह ग्रन्थ हमारे पास है। इसके अतिरिक्त स्वामी जी के देहावसान के बाद ‘गोविन्दराम हासानन्द’ प्रकाशन के स्वामी ऋषि भक्त कीर्ति शेष विजयकुमार जी ने अपनी मासिक पत्रिका ‘वेदप्रकाश’ का एक विशेष अंक प्रकाशित किया था। इसका शीर्षक था ‘आर्यसमाज के एक विप्र योद्धा : स्व. श्री अमर स्वामी जी महाराज’। यह विशेषांक नवम्बर, 1987 में प्रकाशित हुआ था। विशेषांक की पृष्ठ संख्या 24 थी। इस पुस्तक की छाया प्रति भी हमारे संग्रह में उपलब्ध है। यदि "विजयकुमार गोविंदराम हासनंद" के स्वामी श्री अजय आर्य जी इसका एक संस्करण प्रकाशित कर दें तो इससे लोगों को स्वामी अमरस्वामी जी के जीवन की कुछ घटनाओं की जानकारी मिल सकेगी। अमर स्वामी जी के जीवन पर आधारित इस विशेषांक के लेखक प्रसिद्ध आर्य विद्वान प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी हैं।

Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Literature News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like