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अनमोल बूंदों को सहेजे, देश को हराभरा बनाए

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05 Jun 25
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अनमोल बूंदों को सहेजे, देश को हराभरा बनाए

बादल गहराने और आसमान में बिजली के कडकने से बरसात आने के संकेत मिलते ही उपवनों एवं जंगलों में मयूर नृत्य करने लगते हैं और पक्षियों का कलरव गुंजायमान हो उठता है। बरसात की फुवांरों को देखकर बच्चों का ही नहीं बड़ों का भी मन नहाने के लिए मचल उठता हैं। प्राकृतिक वाटर फॉल का तो मजा ही कुछ और है। छोटे - छोटे बच्चें कागज की नाव पानी में तैरकर खूब आनंदित होते हैं। लोग पिकनिक का आनंद लेने के लिए निकल पड़ते हैं । घरों में गरमा गर्म पकौड़ियों की सुगंध का तो कहना ही क्या। चटकारे लेकर लोग इनका मजा लेते हैं। गर्मी से व्याकुल जीव की जब प्यास बुझती है तो मानों संजीवनी मिल गयी हो। पानी से ही हम हरियाली, हरितमा, आर्कषक उद्यानों को देखकर आनंदित होते हैं। जल जो हमें इतनी खुशियां प्रदान करता है तो क्या वह हमारे लिए प्रकृति प्रदत्त अनमोल निधी नहीं है।  पर्यटक स्थलों पर बरसात के बीच छतरी लगा कर घूमने का तो मजा ही कुछ और हैं। साहित्य में ,जल की महिमा बताते हुए साहित्यकारों ने झील और प्रकृति की सुंदरता पर खूबसूरत रचनाएं लिखी हैं।


           यह बरसात ही है जिस से वसुंधरा हरियाली चादर ओढ़ा लेती है। । पहाड़ियां हरीभरी हो जाती हैं। वनों में पेड़ खिलने और हंसने लगते हैं। कलछल करता नदी का जल एवं हिलोरे मारता समुद्र नजर आता है हम घण्टों पानी में पैर रखकर आनंद लेते हैं। सुन्दर झीलों को अपलक निहारते हैं और पहाडियों के बीच ऊंचाई से गिरते झरने  और इसमें स्नान के आनंद का तो कहना ही क्या। खेतों में लहलाती फसलें किसी का भी मन मोह लेती हैं।
    जब भी हम प्राचीन पानी के कोई जल श्रोत बावड़ी आदि  में पानी भरा देखते हैं तो पुराने पनघट के दिन स्मरण हो आते हैं। साथ ही बावड़ी के स्थापत्य को देखते हैं तो इसे बनाने वाले अनाम शिल्पियों की सराहना किये बिना नहीं रहते, और आश्चर्य करते हैं कि हमारे पूर्वजों ने किस प्रकार हजारों साल पहले जल को बचाने की इतने सुन्दर उपाय किए थे। 

 जीवन में जल के इन्द्रधनुषी रंग पुराने समय से ही धर्म और संस्कृति के साथ गहराई से जुडे हैं। सूर्य को जल का अध्य देना, शिवलिंग पर जल चढ़ाकर भोलेनाथ को प्रसन्न करना, मानव और पशु पक्षियों के लिए पीने के पानी का प्रबन्ध कर जल दान करना, मानव के लिए पानी की प्याऊ, पशुओं के लिए खेल तथा पक्षियों के लिए परिण्डों का प्रबन्ध करना जल दान का ही हिस्सा हैं। सदियों की यह परम्परा आधुनिक समय में भी अविरल है।

   प्रकृति की अमूल्य धरोहर जल जीवन के हर पहलु को प्रभावित करता है। जल हमारे जीवन की सबसे बड़ी धुरी है और किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण योगदान हैं। कृषि उत्पादन के लिए सिंचाई की व्यवस्था, बिजली उत्पादन के लिए जल की उपलब्धता, बिजली की कई पन बिजलीघर परियोजनाएं तो जल पर ही आधारित हैं, उद्योगों के संचालन में जल की आवश्यकता, आधारभूत ढांचे और देश के विकास में जल का महत्व किस से छुपा है। पेयजल के रूप में तो जीवनदायिनी है ही।

 जल की उपयोगिता और महत्व तो सब मानते हैं परन्तु इस जीवनदायनी निधी के संरक्षण के प्रति उदासीन हैं। जल के प्रति उदासीनता से आज न केवल अपने प्रदेश में वरन पूरे देश में अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गयी है। आज अनेक  जीवनदायनी नदियां  लुप्त हो गयी हैं और कई नदियां संकरी हो रही हैं। यही नहीं अधिकांश नदियां इतनी प्रदूषित हैं कि उनका जल पीने योग्य ही नहीं रह गया है। जल की निरन्तर कमी से विश्व के मरूस्थल दबाव में है। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मरूस्थल बदल रहे है। दूषित जल से जुडी अनेक समस्याएं सामने हैं। प्रकृति के साथ छेड छाड़ और दोहन का परिणाम बरसात का कम होना है। यहीं नहीं अन्धाधुंध जल दोहन से हिमखण्ड पिघल रहे हैं, पृथ्वी गर्म हो रही हैं और धरती में पानी गहरे तक समा रहा है।

देश में जल संकट की स्थिती को देखे तो जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार की एक पुरानी  रिपोर्ट के मुताबित अभी प्रति व्यक्ति 1700 घन मीटर से कम प्रतिवर्ष जल उपलब्ध है जिसकी मात्रा शनै: शनै: और कम होती  जा रही है। देश के लगभग 38 प्रतिशत शहरों एवं 80 प्रतिशत से ऊपर गांवों में शुद्ध पीने के पानी की उपलब्धता नहीं है। प्रतिवर्ष दूषित पेयजल के कारण करीब 5 करोड़ बच्चें एवं व्यस्क जल जनित बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। भारत को जल उपलब्धता एवं गुणवत्ता की दृष्टि से विश्व में 120वां स्थान प्राप्त हैं। विश्व में जल का कुल उपयोग संसार की नदियों के जल बहाव का 10वां भाग है और इसमें भी दो-तिहाई हिस्सा कृषि के कार्य में उपयोग होता है। आज कई देशों में जल संकट व्याप्त है।
      राजस्थान, जल स्त्रोतों की दृष्टि से उन सौभाग्यशाली राज्यों में है जहां प्राचीन समय के विशाल जल स्त्रोत तालाबों एवं बावड़ियों के रूप में उपलब्ध है। हाड़ोती क्षेत्र के बून्दी शहर को तो बावड़ियों की नगरी ( सिटी ऑफ स्टेप वेल )  कहा जाता है। यहां रानी जी की बावड़ी, नागर-सागर कुण्डों का स्थापत्य बेमिसाल है। बून्दी में रियासतों के समय बड़े पैमाने पर जल संरक्षण के लिए सुन्दर बावड़ियों का निर्माण कराया गया। कोटा शहरी क्षेत्र में रियासत के समय 13 तालाब बनावाये गये, जिनमें से अधिकांश का अस्तित्व ही नहीं रहा। शहर के मध्य स्थित किशोर सागर तालाब का संरक्षण कर इसे आज एक आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप में उभारा गया है। शेखावाटी क्षेत्रों में भी प्राचीन कलात्मक जल बावड़ियों की भरमार है। राजस्थान के सभी किलों में शासकों ने पेयजल की पुख्ता व्यवस्था की थी, जो आज भी देखने को मिलती हैं। रेगिस्तानी क्षेत्रों में जहां महिलाओं को दूर - दूर से पानी लाना पड़ता है अब जल संरक्षण के लिए बड़े पैमाने पर भूमिगत टांकों का निर्माण किया जाने लगा है।

जल बचाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार अपने स्तर से तेजी से प्रयासों में जुटे हैं। विगत कई वर्षों में सरकारी योजनाओं से प्राचीन जल स्त्रोतों को फिर से उभारने के साथ-साथ नये तालाब, टांके, तल्लियां आदि जल सरंचनाएं तेजी से बनायी गई हैं और यह उपक्रम निरंतर बना हुआ  है।  इन जल सरंचनाओं के बनने से स्थानीय क्षेत्र में जल संरक्षण होने के साथ-साथ जमीन में भी जल का स्तर ऊपर आया है। यही नहीं इन जल स्त्रोतों का सिंचाई एवं पशु पेयजल आदि विविध प्रकार से उपयोग भी किया जा रहा हैं। जल स्त्रोतों की निर्मित संरचाओं से कई गांवो में पेयजल संकट का भी निदान भी हुआ हैं।
     आवश्यकता है कि केवल सरकार की तरफ ही टकटकी लगाकर नहीं देखा जाए वरन प्रत्येक व्यक्ति जल की मोती स्वरूप बून्दों को सहेजने के लिए आगे आए। जल बचत में अपना तन, मन और धन से योगदान करें और देवता की पदवी प्राप्त जल का संरक्षण करें। इस दिशा में कई दानी मानी और भामाशाह आगे आए हैं और उन्होंने जल संरक्षण के लिए सरकार को मदद की हैं। जो लोग धन से सहायता नहीं कर सकते उन्हें अपने श्रम का दान कर जल बचत में सहायक बनना होगा। जल बचत की संरचाएं निर्माण में लगकर वे अपनी भागीदारी जोड़ सकते हैं। हर व्यक्ति अपने स्तर से जल का सही सदुपयोग कर जल संरक्षण में आगे आ सकता हैं। जल संरक्षण के साथ - साथ जंगलों से कटते वृक्षों को रोकना होगा और अधिक से अधिक पौधे लगा कर उन्हें पेड़ बनाने का संकल्प लेना होगा। केवल पौधे लगा कर फोटो छपाने से कुछ हासिल नहीं होगा , पौधे लगा कर उनकी सार संभाल कर उन्हें बड़ा कर पेड़ बनाना होगा, तब ही पौधा लगाने की सार्थकता है। विश्व पर्यावरण दिवस पर हर व्यक्ति संकल्प ले की बरसात की बूंदों को सहेंगे और देश की हराभरा बनाएंगे।
 यदि हमने जल संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली हमारी पीड़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी। 


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