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गर्मी का तांडव

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20 May 21
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-लक्ष्मीनारायण खत्री

गर्मी का तांडव

गर्मी ने 

मचाया तांडव 

बेबस हुआ मानव   

चिलचिलाने 

लगी है धूप 

धरती गई है तप 

अंगारे बन गए हैं रेत 

सूख गए तालाब और खेत 

थपेड़े लू के सख्त

पेड़ पौधे मुरझाए 

प्राणी को प्यास सताए 

प्रकृति हुई है नाराज़ 

सरंक्षण की है आवाज़।


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