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नये लघुकथाकारों को लीक से हटकर लिखने का साहस पैदा करना होगा - वीरेन्द्र वीर मेहता

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22 Mar 21
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नये लघुकथाकारों को लीक से हटकर लिखने का साहस पैदा करना होगा - वीरेन्द्र वीर मेहता

लघुकथा शोध केन्द्र की दिल्ली शाखा की राष्ट्रीय ऑनलाइन संगोष्ठी रविवार 21 मार्च को सम्पन्न हुई। संगोष्ठी में देश के विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने बारह लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। दिल्ली की डॉ. संगीता गॉंधी की लघुकथा ‘बदलता इतिहास’ महाभारत को स्त्रीवादी दृष्टिकोण से समझने के लिए बाध्य करती है और गांधारी के माध्यम से संदेश देती है कि पत्नी को पति का अंधानुगामी नहीं होना चाहिए। कोलकाता से गोष्ठी में शिरकत करने वाली मौसमी प्रसाद की लघुकथा ‘अटूट बंधन’ भावनाओं से ओतप्रोत एक मार्मिक कथानक है जिसमें एक बच्चे को बुढ़िया भिखारन से लगाव हो जाता है। भोपाल से जुड़ी मेघा राठी और दिल्ली की डॉ. उपमा सिंह की लघुकथा क्रमशः ‘कब तक पत्थर’ और ‘अहिल्या’ स्त्री-विमर्श के सशक्त कथानक को अपने अंदर समेटे हुए है। दोनों ही लघुकथाओं में अलग-अलग प्रसंगों के माध्यम से बताया गया है कि हर बार इन्द्र की गलती की सजा अहिल्या नहीं भुगतेगी।

करनाल, हरियाणा के सतविन्दर राणा की लघुकथा ‘जागृति’ बताती है कि शिक्षा के माध्यम से अब छोटे-छोटे किसानों और मजदूरों में जागृति आ रही है। अब वे सूदखोर सेठों की गिरफ्त से दूर हो रहे हैं। दिल्ली की सुषमा शैली की लघुकथा ‘आगे बढ़ने दो’ किन्नर विमर्श को अपने अंदर समेटे हुए है जिसमें लेखिका ने नाटकीयता का सुंदर प्रयोग किया है। रोहतास, बिहार के लघुकथाकार विनय मिश्रा की लघुकथा ‘स्त्री’ में खूँटे से बंधी गाय के प्रतीक के माध्यम से स्त्री-जीवन की विवशता का मार्मिक चित्रण छिपा है तो इसके ठीक उलट पटना, बिहार की मिन्नी मिश्रा की लघुकथा ‘विजेता’ में पितृसत्ता का विरोध और पुरूष प्रधान समाज के प्रति विद्रोह बड़ा सशक्त है। जलगाँव महाराष्ट्र के अनिल मकरिया की लघुकथा ‘टमाटर’ एसिड अटैक की विभीषिका को चित्रित करती है। साथ ही इसमें संदेश छिपा है कि ऐसे लोगों को आगे आना ही होगा जो पीड़िताओं के साथ घर-बसा सकें। जो सूरत नहीं सीरत देखें।

भिंड, मध्यप्रदेश की मनोरमा जैन पाखी की लघुकथा पारिवारिक सम्बन्धों पर एक अच्छी लघुकथा रही। जिसमें बताया गया कि परिवार में व्यंग्य प्रहारों का जवाब बड़े धैर्य और शालीनता से देना चाहिए। रोपड़, पंजाब के रमेश सेठी ने अपनी लघुकथा ‘कामवाली बाई’ के माध्यम से बताया कि संकट की स्थिति में हमें किसी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए और यथासंभव उसकी मदद करनी चाहिए। ‘चढ़ती रही चादरें मज़ार पर, और बाहर बैठा फकीर ठंड से मर गया’ पंक्तियों को चरितार्थ करती दिल्ली की शिवानी खन्ना की लघुकथा ‘कफ़न’ सामाजिक विसंगति और सोच पर प्रहार करती है।

लघुकथा विशेषज्ञ वीरेन्द्र वीर मेहता और चर्चित लघुकथा लेखिका शोभना श्याम ने संगोष्ठी में समीक्षक की भूमिका निभाई। शोभना श्याम ने कहा की लघुकथा के लघु आकार के कारण लोग इसे आसान और सुसाध्य मानते हैं जबकि यह अत्यन्त कठिन विधा है। सूक्ष्मकण का सूक्ष्मदर्शी अवलोकन साहित्य में लघुकथा है। आजकल लघुकथा की बाढ़ आई हुई है ऐसे में गंभीर और ईमानदार लघुकथाकारों का दायित्व बढ़ा है। वीरेन्द्र वीर मेहता ने अपने वक्तव्य में कहा कि लघुकथाओं में पौराणिक और ऐतिहासिक संदर्भों का प्रयोग बढ़ा है परंतु इनका प्रयोग करते हुए लघुकथाकारों को बेहद संजीदा और सतर्क रहने की आवश्यकता है। पौराणिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों के साथ बंधन जुड़े होते है अतः यह प्रयोग लम्बे समय तक चलने वाला नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि लघुकथा में भी एक सीमा तक नाटकीयता का प्रयोग हो सकता है परंतु नाटकीयता कथानक का हिस्सा होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अतिनाटकीयता कथानक को क्षति पहुॅंचा सकती है। नए और युवा लघुकथाकारों लीक से हटकर लिखने का साहस अपने अंदर पैदा करना होगा। 

संगोष्ठी में सतीश खनगवाल ने आमंत्रित अतिथियों और लघुकथाकारों का स्वागत किया और बताया कि लघुकथा शोध केन्द्र की दिल्ली शाखा अपने उद्घाटन से ही पिछले दो साल से निरन्तर प्रत्येक माह लघुकथा संगोष्ठी का आयोजन कर रही है। गोष्ठी के पश्चात् शाखा की संचालिका अंजू खरबंदा ने सबको धन्यवाद देकर अपना आभार जताया। लगभग दो घण्टे चली इस गोष्ठी का शानदार संचालन गाजियाबाद की रेणुका सिंह ने किया।


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