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“देश की अनेक आर्य संस्थाओं के उत्सवों में जाने से लाभ”

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18 Oct 19
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“देश की अनेक आर्य संस्थाओं के उत्सवों में जाने से लाभ”

वेद प्रचार के लिये देश में सभी आर्यसमाजों की इकाईयां, प्रतिनिधि सभाओं सहित गुरुकुल एवं अनेक आर्य संस्थायें कार्यरत व प्रयत्नशील हैं। ऋषि जन्म भूमि न्यास टंकारा का ऋषि बोधोत्सव पर्व, परोपकारिणी सभा अजमेर का ऋषि मेला, सत्यार्थप्रकाश न्यास उदयपुर का सत्यार्थप्रकाश महोत्सव, वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून का ग्रीष्मोत्सव एवं शरदुत्सव, गुरुकुल पौंधा तथा गुरुकुल गौतमनगर दिल्ली के वार्षिक उत्सवों में हम अनेक बार सम्मिलित हुए हैं। हमें यह उत्सव अनेक दृष्टि से लाभप्रद लगते हैं। उत्सव का एक लाभ तो यह होता है कि उसमें सम्मिलित होने के लिये रेल या बस यात्रा करनी होती है जिससे उत्सव के लाभों सहित यात्रा वा भ्रमण के लाभ भी मिल जाते हंै। आर्यसमाज की सभी संस्थायें अपने उत्सवों में आगन्तुकों को निःशुल्क भोजन एवं आवास की सुविधा प्रदान करती हैं। बाहर जाने पर यदि यह दो चीजें मिल जाती है तो प्रवास सुखद बन जाता है। आर्य संस्थाओं के उत्सवों से जो लाभ होते हैं उनमें प्रथम लाभ तो वहां आमंत्रित विद्वानों व भजनोपदेशकों के प्रवचन व भजनों सहित उनके उपदेश व मन व आत्मा को शान्ति देने वाले भजन होते हैं। पहला लाभ तो इन विद्वानों के दर्शन सहित उत्सव में पधारे ऋषि भक्तों के दर्शन का लाभ भी होता है जो कम महत्वपूर्ण नहीं होता। हमने टंकारा, उदयपुर, अजमेर, तपोवन-देहरादून तथा गुरुकुल पौंधा-देहरादून आदि के उत्सवों में देखा है कि इनमें देश के अनेक भागों के लोग आते हैं जो ऋषि दयानन्द के प्रति गहरी श्रद्धा रखते हैं और आर्यसमाजों से सक्रियता से जुड़े होते हैं। इनके दर्शन करने, इनसे मिलने व इनके समाजों के विषय में जानकारी लेना बहुत लाभप्रद प्रतीत होता है। इस प्रकार प्राप्त ज्ञान व अनुभव से हम अपने-अपने आर्यसमाजों में भी कुछ सुधार करने सहित नये प्रकल्पों को आरम्भ कर सकते है।

 

                आर्यसमाज के उत्सवों में प्रातः दिन में व सायं के समय में विद्वानों के प्रवचन व भजन होते हैं। प्रातः व सायं वृहद वेद पारायण यज्ञ आदि भी होते हैं। इन सबमें भाग लेने व उनसे होने वाले लाभों का जीवन में बहुत महत्व होता है। विद्वानों के सुने हुए प्रवचनों की बहुत सी बातें जीवन भर याद रहती हैं। हम विद्वानों के भाषणों को सुनते भी हैं और उन्हें यथासम्भव नोट भी करते हैं। उसके बाद उनकी एक रिर्पोट तैयार कर उसे फेसबुक, व्हटशप तथा ईमेल से अपने अनेक मित्रों व समूहों में साझा करते हैं। कार्यक्रम की सभी बातों को नोट करना, उसे टंकण करना, उनका सम्पादन करना आदि से हमें कई बार वक्ताओं व भजनोपदेशकों के विचारों को पढ़ने का अवसर मिलता है जिससे उनका प्रभाव भी उसी मात्रा में होता है। बाहर से जो विद्वान आते हैं उनसे हम बातचीत भी कर सकते हैं और उनके जीवन की कुछ बातों को भी जान सकते हैं। इन उत्सवों में भजनोपदेशक अपने भजनों से श्रोताओं का ज्ञानवर्धन एवं मनोरंजन करते हैं। यह भजन भी हमारे मन व आत्मा पर प्रभाव डालते हैं और इससे हमें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा मिलती है। वैदिक यज्ञ की महिमा तो अपरम्पार है। हमारे छोटे से दान से हमें आयोजकों द्वारा बहुत बड़ी धनराशि व्यय कर सम्पन्न किये जाने वाले यज्ञों में भाग लेकर उसका लाभ मिलता है जिसका आयोजन हम स्वयं नहीं कर सकते। हमारे घरों में ऐसे बड़े यज्ञों के लिये स्थाना आदि का अवकाश भी नहीं होता। आर्य संस्थाओं में सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में यज्ञ में उपस्थित होना तथा मन्त्रों की ध्वनि तथा यज्ञ के ब्रह्मा जी के उपदेशों का श्रवण एक प्रकार से आध्यात्मिक उपलब्धि सहित आत्मा को सन्तुष्टि वा तृप्ति प्रदान करता है। इससे आत्मा व मन का सात्विक विचारों, उपदेशों व सत्पुरुषों की संगति का लाभ भी प्राप्त हो जाता है। वस्तुतः उत्सवों के पूरे आयोजन को ही एक महायज्ञ कह सकते हैं जिसमें देवपूजा, संगतिकरण तथा दान का एक अच्छा समन्वय देखने को मिलता है जो घरों में होने वाले यज्ञों में इस स्तर का होना सम्भव नहीं होता। अतः उत्सवों में जाने के यह सब लाभ मन व आत्मा पर अच्छा प्रभाव डालते हैं जिससे हमें अपने भावी जीवन के निर्माण में सहायता मिलती है। हम यह अनुभव करते हैं कि यदि किसी ऋषिभक्त परिवार के पास अवकाश व आने जाने की सुविधा हो तो उन्हें ऐसे आयोजनों में अवश्य जाना चाहिये। वर्ष में यदि ऐसे एक या दो आयोजनों में भाग ले लिया जाये तो इससे हम आर्यसमाज की विचारधारा से अच्छी प्रकार से जुड़े रहते हैं और अपने अनुभवों से अपने इष्ट-मित्रों व सम्बन्धियों को आर्यसमाज से जोड़ने में सहायक हो सकते हैं।

 

                आर्यसमाज की कुछ प्रमुख संस्थाओं जिनके उत्सवों में देश भर से लोग आते हैं, उन स्थानों पर आर्य साहित्य के प्रकाशक व विक्रेता भी अपनी पुस्तकों के स्टाल लगाते हैं। इसमें ऋषिभक्तों को ऐसे अनेक ग्रन्थ मिल जाते हैं जिन्हें देखकर उन्हें क्रय करने की इच्छा उत्पन्न होती है। हमने भी इसी प्रकार से पुस्तकों को क्रय किया है और प्रकाशकों से सीधी डाक से भी मंगाई है। इससे विगत 40-45 वर्षों में इस प्रकार से हमारे पास अनेक विषयों की अनेक प्रमुख ग्रन्थराशि का संग्रह हो गया है। जब पुस्तकें होंगी तो उन्हें पढ़ने की इच्छा होने पर उनका अध्ययन भी हो जाता है। कुछ दिन यदि हम किसी ग्रन्थ का अध्ययन करते हैं तो उससे अध्ययन के संस्कार व आदत हो जाने पर हमें अन्य ग्रन्थों को पढ़ने की प्रेरणा भी मिलती है। हम जो सुनते हैं, पढ़ते हैं तथा मित्रों से चर्चा करते हैं, वह बातें हमारे उन विषयों के ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होती हंै। एक ही विषय को अनेक बार एकाग्र होकर पढ़ने से उनका स्थाई ज्ञान हो जाता है। अतः उत्सवों में जाने पर उसका एक लाभ वहां साहित्य विक्रेताओं का सम्पर्क और उनसे अनेक विषयों की महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्राप्त होना है।

 

                यहां हम अपने जीवन की एक घटना भी दे रहे हैं। एक बार मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के एक गुरुकुल के उत्सव में हमारे देहरादून स्थित गुरुकुल पौंधा के आचार्य डा0 धनंजय जी गये थे। वहां रामलाल कपूर ट्रस्ट, सोनीपत के मैनेजर श्री जीवनलाल जी भी पुस्तकों सहित आये थे। हम संस्कृत व्याकरण के सभी ग्रन्थों का सैट लेना चाहते थे। वहां कीर्तिशेष श्री जीवनलाल जी और डा0 धनंजय जी की आपस में चर्चा हुई और लगभग दो दर्जन छोटे बड़े ग्रन्थों का एक सैट आचार्य धनंजय जी हमारे लिये ले आये। हमने भी एक बार अपने एक मित्र के लिये इसी प्रकार उनके कहने पर बड़ी संख्या में पुस्तकें उनके घर पर पहुंचाई हैं। एक दो पुस्तकों की बात तो अलग है परन्तु यदि पुस्तकें दर्जनों में हो तो पुस्तक लाने वाले को कष्ट होता है। हम आचार्य धनंजय जी की इस अपार कृपा को स्मरण कर कई बार सुख का अनुभव करते हैं।

 

                उत्सवों में जाने पर वहां की परिस्थितियों के अनुसार समूह में निवास एवं भोजन करना पड़ता है। इसका अनुभव भी हमें कई बार कुछ कठिन होने के साथ अच्छा लगता है। इनसे भी बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है। उत्सवों में कहीं कहीं पर प्रातः शौच एवं स्नान आदि में कुछ कठिनाईयां आती हैं परन्तु सबके साथ ऐसा होता देख हमारा यह अनुभव भी बाद में सुखद स्मृति के रूप में बदल जाता है। सभी स्थानों पर भोजन की व्यवस्था अच्छी प्रकार से की जाती है। किसी को अधिक कठिनाई नहीं होती। अतः यह अनुभव भी धर्म-यात्री को लाभप्रद ही रहता है।

 

                लम्बी यात्राओं में दूसरा लाभ वहां के निकटवर्ती ऐतिहासिक वा धार्मिक स्थानों के दर्शन करना होता है। लगभग दो दशक पूर्व जब हम प्रथम बार टंकारा गये तो देहरादून के अपने पुराने अनेक मित्रों को भी ले गये थे। उन सहयात्रियों में चार-पंाच की मृत्यु भी हो चुकी है। उस यात्रा में हमने टंकारा के साथ योगेश्वर श्री कृष्ण जी की समुद्र तट पर स्थित द्वारका एवं गुजरात में ही इतिहास प्रसिद्ध सोमनाथ मन्दिर के दर्शन किये थे। इसके बाद तीन बार हमें वहां और जाने का अवसर मिला। यदि हमारा टंकारा जाने का कार्यक्रम न बनता तो हम इन स्थानों को भी न देख पाते। टंकारा जाने से ही हमें स्वामी सत्यपति जी महाराज के रोजड़ स्थिति दर्शन योग महाविद्यालय और वानप्रस्थ साधक आश्रम जाने का अवसर भी मिला। वहां स्वामी जी के दर्शन हुए थे और हमने दोनों आश्रमों को देखा था। वहीं से हम जोधपुर चले गये थे जहां ऋषि दयानन्द ने साढ़े चार मास का प्रवास किया था। वहीं पर उन्हें विष दिया गया था जिससे उनकी मृत्यु हुई थी। हमें वहां ऋषि दयानन्द से जुड़े अनेक स्थानों को देखने का अवसर भी मिला था। जोधपुर के अनेक किले, महल, बाग आदि हो हमने इस यात्रा में देखा था। यात्रा का एक लाभ यह भी होता है कि हमें वहां के लोगों और वहां की स्थानीय विशेषताओं को कुछ कुछ जानने का अवसर भी मिलता है। गुजरात की भाषा अलग है और राजस्थान की अलग। इनका कुछ ज्ञान भी इन यात्राओं से होता है। हम वहां की भाषाओं को समझ नहीं पाते और हिन्दी से ही काम चलाते हैं, परन्तु वहां की स्थानीय भाषाओं को सुन कर देश में भाषाओं की भिन्नता का प्रत्यक्ष ज्ञान हो जाता है।

 

                इसी क्रम में हम देहरादून के अपने एक मित्र का संक्षिप्त उल्लेख कर रहे हैं। यह 80 वर्षीय श्री आदित्यप्रताप सिंह हैं। अनेक वर्षों से यह टंकारा के उत्सवों में सम्मिलित हो रहे हैं। सम्भवतः यह एक दर्जन बार वहां जा चुके हैं। इस बार जाने के लिये भी रेल टिकट बुक करा रहे हैं। जब यह जाते हैं तो इस यात्रा के साथ देश के पश्चिम, दक्षिण व पूर्वी भागों के कुछ स्थानों को भी जोड़ देते हैं। उनके आने के बाद हम उनकी यात्रा का वृतान्त सुनते हैं। 80 वर्ष की आयु में भी उनका व उनकी पत्नी का टंकारा एवं स्थानों के प्रति उत्साह बना हुआ है। छोटी मोटी शारीरिक व्याधियां भी उनके मनोबल को कम नहीं कर पाती हैं। इस प्रकार से उन्होंने लगभग पूरा देश घूम लिया है। श्री आदित्यप्रताप सिंह जी की आर्थिक स्थिति भी सामान्य है। रेल प्रशासन से वरिष्ठ नागरिकों को 30-40 प्रतिशत छूट मिलने से स्लीपर क्लास में आसानी से यात्रा हो जाती है। स्लीपर क्लास का यात्रा-किराया भी कम होता है। हमने भी इसी प्रकार से देश के अनेक स्थानों सहित समुद्र पार के अण्डमान निकोबार तथा लक्ष्यद्वीप के अगाती स्थान का भ्रमण किया है। सभी अनुभव अच्छे रहे हैं। इसी के साथ लेखनी को विराम देते हैं। ओ३म् शम्।   

-मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः 09412985121


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