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“प्रेरणादायक व्यक्तित्व के धनी कीर्तिशेष ऋषिभक्त श्री हंसमुख परमार”

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07 Sep 19
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“प्रेरणादायक व्यक्तित्व के धनी कीर्तिशेष ऋषिभक्त श्री हंसमुख परमार”

टंकारा ऋषि दयानन्द की जन्म भूमि है जो संसार के सभी आर्यों के लिए पुण्य भूमि है। आर्यसमाज यद्यपि किसी स्थान विशेष को तीर्थ स्थान नहीं मानता परन्तु टंकारा में ऋषि दयानन्द का जन्म होने से यह विश्व का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसके प्रत्येक आर्य को दर्शन करने चाहियें। यहां आकर ऋषिभक्तों को एक विशेष सुख की अनुभूति होती है। यही कारण है कि विश्व से बड़ी संख्या में ऋषिभक्त प्रत्येक वर्ष ऋषि बोधोत्सव पर यहां खिंचे चले आते है। प्रत्येक ऋषि भक्त का यह स्वप्न होता है कि वह जीवन में एक बार टंकारा जाकर ऋषि को अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करे। उस स्थान व घर को देखे जहां स्वामी दयानन्द जी वा बालक मूलशंकर का जन्म हुआ था। वह गली मुहल्ले जहां ऋषि खेले कूदे थे और उस शिव मन्दिर के दर्शन करे जहां अपनी आयु के चैदहवें वर्ष में ऋषि दयानन्द ने शिवरात्रि के व्रत का अनुष्ठान किया था। ऋषि दयानन्द के जीवन से जुड़े सभी स्थानों को देखने की प्रेरणा ऋषि दयानन्द के भक्तों को होती है। टंकारा के शिव मन्दिर का महत्व सबसे अधिक इस लिये है कि यहीं पर उन्हें सच्चे शिव वा ईश्वर को जानने व प्राप्त करने का बोध प्राप्त हुआ था। हमें भी हमने जीवन में पांच  बार टंकारा जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। अनेक बार और कार्यक्रम बने परन्तु अनेक कारणों से हम जा नहीं सके। हमारे एक मित्र श्री आदित्य प्रताप सिंह, देहरादून लगभग 14-15 बार टंकारा जा चुके हैं और आगामी फरवरी 2020 के बोधोत्सव पर पुनः सपत्नीक जाने के लिये प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमारे साथ एकबार एक मित्र श्री जयचन्द शर्मा जी अपनी धर्मपत्नी के साथ टंकारा गये थे। उनकी धर्मपत्नी को टंकारा की यात्रा इतनी अच्छी लगी थी कि उन्होंने टंकारा हर वर्ष आने का विचार हमारे सम्मुख अपने परिवार जनों को टंकारा से फोन पर बताया था। आज हमारे वह मित्र व उनकी धर्मपत्नी दोनों इस संसार में नहीं हैं। परन्तु टंकारा का महत्व निर्विवाद है जो ऋषिभक्तों को आकर्षित करता रहता है।

टंकारा में ऋषि दयानन्द के नाम पर एक स्मारक ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास संचालित है। ऋषि दयानन्द के जन्म गृह, जिसका पुनरुद्धार कर नया रूप दिया गया है, इसकी व्यवस्था भी ऋषि दयानन्द जन्मभूमि स्मारक न्यास के द्वारा की जाती है। टंकारा की दूसरी महत्वपूर्ण आर्य संस्था ‘‘आर्यसमाज टंकारा” है। यह आर्यसमाज आर्यजगत की एक आदर्श समाज वा संस्था है। यहां आर्यसमाज को सुदृण करने सहित आर्यसमाज को जन-जन में पहुंचाने की अनेक योजनायें बनाई गईं हैं। आर्यसमाज के अधिकांश पदाधिकारी युवक हैं। समाज की ओर से निर्धनों को खाद्य सामग्री का प्रत्येक माह वितरण किया जाता है और उनके अन्त्येष्टि कर्म भी आर्यसमाज के द्वारा कराये जाते हैं। युवक व युवतियों को संस्कारित करने व उनके जीवन निर्माण के लिये अनेक कार्यक्रम दैनिक, साप्ताहिक व मासिक रूप से किये जाते हैं। यहां के युवक सदस्यता शुल्क के रूप में भी बड़ी बड़ी धनराशियां देते हैं जिससे आर्यसमाज की गतिविधियां सामान्य रूप से चलती हैं। आर्यसमाज के सभी सदस्यगण अपने निवास गृहों पर दैनिक अग्निहोत्र यज्ञ भी करते हैं। आर्यसमाज का अपना दो मंजिला भव्य भवन है। आर्यसमाज की इन सभी प्रेरणादायक गतिविधियों की प्रेरणा के स्रोत इस समाज के मंत्री यशस्वी श्री हंसमुख परमार जी थे। आपने ही यहां सभी सदस्यों को दिशा दी जिसका परिणाम आर्यसमाज का एक प्रभावशाली संगठन यहां बना व कार्यरत है।

श्री हंसमुख परमार जी का जन्म 12 नवम्बर, 1947 को हुआ था। लगभग 72 वर्ष की आयु में दिनांक 24 अगस्त, 2019 को आपका टंकारा में देहावसान हुआ। आपके जाने से आर्यसमाज टंकारा सहित समूचे आर्यजगत की अपूरणीय क्षति हुई है। आप आदर्श ऋषि भक्त थे। ऐसा हमने अनेक बार अपनी टंकारा यात्राओं में आपसे सम्पर्क करके अनुभव किया था। आप का सौम्य चेहरा आपकी मृत्यु के दिन से हमारे सम्मुख बार-बार आ जाता है। आप हमेशा प्रसन्नचित्त दिखाई देते थे। व्यवहार में अत्यन्त मृदुल व विनम्र थे। आपसे जब बातें करते थे तो आप ध्यान से सुनते थे और बहुत ही संक्षिप्त व सटीक उत्तर दिया करते थे। आप एम0पी0 दोषी विद्यालय, टंकारा के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत हुए थे। हमें जीवन का वह दृश्य भी स्मरण है जब दो वर्ष पूर्व टंकारा के ऋषि जन्मभूमि न्यास में सांसद स्वामी सुमेधानन्द सरस्वती जी पधारे थे और उनको उनका कमरा दिखाने श्री हंसमुख परमार जी उन्हें वहां ले गये थे। हम देहरादून के आचार्य धनंजय और आचार्य चन्द्रभूषण शास्त्री जी सहित भी साथ में थे। कमरे में पहुंच कर स्वामीजी और हंसमुख परमार जी के बीच कुछ देर अनेक विषयों पर वार्तालाप हुआ था। हमने इन दोनों ऋषिभक्तों के वार्तालाप को बहुत रुचिपूर्वक व ध्यान देकर सुना था। परमार जी के विनम्रता एवं सम्मान से युक्त शब्दों को सुनकर हमारा उनके प्रति आदर भाव अत्यन्त बढ़ा था। आर्यसमाज में ऐसा व्यवहार विद्वानों एवं नेताओं में बहुत कम देखने को मिलता है। किस व्यक्ति से कैसे व्यवहार किया जाता है, इसे उनके सम्पर्क में रहकर सीखा जा सकता है। इस प्रवास में हमने परमार जी के कुछ चित्र भी लिये थे जिसे हम इसके साथ साझा कर रहे हैं। परमार जी को हमने टंकारा में अनेक कार्याक्रमों का संचालन करते हुए भी देखा था। आपका मन्त्र संयोजन बहुत योग्यतापूर्वक एवं प्रभावशाली रूप में होता था। हमने अपनी सभी यात्राओं में टंकारा आर्यसमाज के वार्षिकोत्सव जो ऋषि बोधोत्सव वा शिवरात्रि के दिन सांयकाल के समय होते हैं, उसमें भाग लिया है। जो ऋषिभक्त बोधोत्सव पर टंकारा की यात्रा पर जाते हैं वह प्रायः सभी टंकारा आर्यसमाज के वार्षिकोत्सव में भी सम्मिलित होते हैं। इस कार्यक्रम का संचालन मंत्री होने की दृष्टि से परमार जी ही करते थे। यदि किसी अन्य बन्धु द्वारा संचालन किया जाता था तो आप मंच के निकट उपस्थित रहते और महत्वपूर्ण जानकारियां देते रहते थे। आपकी घोषणायें सुनकर हम आनन्दित हुआ करते थे। अब यह सब अनुभव एक इतिहास बन चुका है। अब हमें न तो आपको देखने का अवसर मिलेगा और न आपसे वार्ता करने व आपको टंकारा न्यास व आर्यसमाज टंकारा में सुनने का।

श्री हंसमुख परमार जी ऋषि दयानन्द जन्मभूमि न्यास, टंकारा के न्यासी भी थे। टंकारा के स्थाई निवासी होने से आप न्यास के अनेक कार्यों को देखते थे तथा बोधोत्सव पर आयोजित एकाधिक कार्यक्रम का संचालन भी करते थे। न्यास परिसर में भ्रमण करते हुए आप अनेक बार यत्र तत्र दिखाई देते रहते थे जिसका कारण आप का वहां आगन्तुकों पर ध्यान रखना व उनकी समस्याओं को दूर करना होता था। श्री परमार जी गुजरात राज्य की आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री भी थे। इस दायित्व के कार्य का निर्वहन भी आपने बहुत योग्यतापूर्वक किया था। आपका एक गुण यह भी था कि आपके चेहरे पर सदैव प्रसन्नता के भाव रहते थे जिससे आपके सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति आपसे वार्तालाप करने में प्रसन्नता व सन्तोष का अनुभव करता था। ऐसा व्यक्तित्व अपनी आभा बिखेर कर व लोगों को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित व आकर्षित करते हुए ईश्वर की प्रेरणा से किसी अन्य स्थान पर अपने व्यक्तित्व के अनुरूप भावी माता-पिता के यहां पुनः जन्म लेने के लिये चला गया है। हम आशा करते हैं कि इस जन्म के संस्कारों के परिणाम से वह पुनः आर्यसमाजी बनेंगे और आर्यसमाज की सेवा करते हुए ऋषि मिशन को पूरा करने का प्रयत्न करेंगे।

आर्यसमाज के प्रमुख विद्वान श्री भावेश मेरजा जी ने इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि श्री हंसमुख भाई परमार का योगदान वस्तुत: अति सराहनीय था, विशेष रूप से गुजरात सौराष्ट्र प्रदेश में।

ईश्वर से हम प्रार्थना करते हैं कि वह श्री हंसमुख परमार जी की आत्मा को सद्गति एवं शान्ति प्रदान करे। ईश्वर आर्यसमाज को हंसमुख परमार जी जैसे ऋषिभक्त बड़ी संख्या में प्रदान करें जो विश्व में वेद प्रचार करने का स्वप्न संजोय हुवे हों और देश देशान्तर में वेद प्रचार कर ऋषि दयानन्द के स्वप्नों को पूरा करने का प्राणपण से पुरुषार्थ करें। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

पताः 196 चुक्खूवाला-2

देहरादून-248001

फोनः 09412985121


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