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“देश में भारी वर्षा से बाढ़ की स्थिति पर मनुष्य का वश नहीं”

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19 Aug 19
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“देश में भारी वर्षा से बाढ़ की स्थिति पर मनुष्य का वश नहीं”

आजकल वर्षा ऋतु चल रही है। देश भर में वर्षा हो रही है और देश के अधिकांश भागों में वर्षा से नगरों में जल-भराव तथा ग्रामीण सहित नगरीय क्षेत्रों में भी बाढ़ आयी हुई है। देश के अनेक राज्यों में कुल मिलाकर सैकड़ों देशवासी काल के गाल में समा चुके हैं। हर वर्ष यह स्थिति आती है। विज्ञान के इस चरम उन्नति के युग में भी हमारे वैज्ञानिकों एवं राजनीतिक नेताओं का इस समस्या पर विजय न पाना इन सबकी सामथ्र्य की न्यूनता को परिलक्षित करता है। हमारे देश के ऋषियों व मनीषियों ने सृष्टि के आरम्भ में ही बता दिया था कि मनुष्य अल्पज्ञ है। जो भी मनुष्य उत्पन्न होता है वह मृत्यु-धर्मा होता है। हमारे देश में अनेक महान ऋषि उत्पन्न हुए और देश-देशान्तर में वहां के हिसाब से महापुरुष कहे जाने वाले लोग उत्पन्न हुए परन्तु वह सब अल्पज्ञ एवं मरणधर्मा थे। उन्होने जो बाते कहीं, उन पर आधुनिक ज्ञान की दृष्टि से विचार करने पर उनका ज्ञान भी अल्पज्ञ मनुष्य की श्रेणी में ही आता है। ऋषि दयानन्द स्वयं सिद्ध योगी थे और उन्होंने ईश्वरीय ज्ञान वेद के आधार पर अपने सत्य सिद्धान्तों को स्थापित किया था। उन्होंने हमें ईश्वर व जीवात्मा के सच्चे स्वरूप और इनकी सामथ्र्य के विषय में बताया जो कि निभ्र्रान्त ज्ञान है। इस पर भी उन्होंने अहंकार शून्य होने का परिचय देते हुए कहा कि मनुष्य अल्पज्ञ होता है। वह ऋषि व महापुरुष क्यों न बन जाये, वह अल्पज्ञ ही रहता है, इसलिए उससे भूल हो सकती है। सभी मनुष्यों की सभी बातों की विद्वानों को समीक्षा करते रहना चाहिये और उसे वेदानुकूल एवं समाज के लिए हितकर बनाना चाहिये और मनुष्य को अभ्युदय एवं निःश्रेयस प्रदान में सहायक मान्तयताओं को ही स्वीकार करना चाहिये। किसी भी महापुरुष व आध्यात्मिक गुरु ने यदि कोई बात कही है और वह बात वेदानुकूल व सत्य पर आश्रित होने सहित देश व विश्व के लोगों के लिये हितकर न हो, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के विरुद्ध हो तो उसे अस्वीकार कर उसमें समय की आवश्यकता के अनुरूप संशोधन कर देना चाहिये। जो लोग इस संशोधन के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं करते वह मानवता का हित करने के स्थान पर अहित करते हैं जिससे विश्व में समुदायों के मध्य तनाव व असुरक्षा उत्पन्न होती है और लोगों को कष्ट व दुःखों से गुजरना पड़ता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य अल्पज्ञ है। वह ज्ञान व विज्ञान में कितनी भी उन्नति क्यों न कर ले, वह सभी समस्याओं को आंशिक रूप से तो हल कर सकता है परन्तु उन पर पूर्ण विजय प्राप्त नहीं कर सकता। यह बात समय-समय पर होने वाली भूकम्प, बादल फटने, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, अनेक प्रकार के सामयिक रोग जैसा कि पिछले दिनों गर्मी के कारण बिहार में बच्चों का बुखार आया जिसमें सैकड़ों बच्चे मृत्यु को प्राप्त हो हुए, ऐसी घटनाओं से सिद्ध होती है। अतः धार्मिक व वैज्ञानिक तथा सामाजिक व राजनैतिक नेताओं को मनुष्य की इस अल्पज्ञता व अल्प सामथ्र्य के सिद्धान्त को स्वीकार कर लेना चाहिये और जन-जन की समस्याओं को हल करने में अपने बुद्धि व ज्ञान का पूरा-पूरा उपयोग करना चाहिये।

 

                देश की समस्याओं का प्रमुख कारण देश में जनसंख्या की वृद्धि है। देखते ही देखते जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि होती जा रही है। भारत की जनसंख्या 135 करोड़ के पास पहुंच गई है। चीन जो कि संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, भारत की जनसंख्या लगभग उसके बराबर हो गई है। चीन अनेक उपायों व कठोर नियमों से अपनी जनसंख्या को नियंत्रित कर रहा है वहीं भारत इसका अपवाद है। यहां जनसंख्या पर नियंत्रण की बात भी की जाती है तो कुछ राजनीतिक दलों व धार्मिक समुदायों को येन केन प्रकारेण उसका विरोध करने का अवसर मिल जाता है। यह स्थिति देशहित में नहीं है। यह अच्छी बात है, सम्भवतः पहली बार, देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वतन्त्रता दिवस के अपने राष्ट्र को सम्बोधन में जनसंख्या वृद्धि के कुपरिणामों की चर्चा की और इस पर नियंत्रण करने के लिये भविष्य में किये जाने वाले उपायोें का उल्लेख किया। आज की परिस्थिति में यह आवश्यक व अनिवार्य हो गया है। प्राचीन काल से भारत में जनसंख्या नियंत्रण की स्थिति रही है। हमारे आदर्श राम व कृष्ण हैं। राम की दो सन्तानों लव व कुश का उल्लेख किया जाता है। यह बात अलग है कि हमारे अनेक विद्वान रामायण के उत्तर काण्ड को प्रक्षिप्त भी मानते हैं। योगेश्वर कृष्ण भी गृहस्थी थे और उनकी एक ही सन्तान थी जिसका नाम प्रद्युम्न था। आचार्य चाणक्य बाल ब्रह्मचारी रहे। इसी प्रकार महर्षि दयानन्द भी आजीवन ब्रह्मचारी रहे और दोनों आचार्यों ने देश के सर्वोपरि हित के लिये अपने जीवन का एक-एक पल व्यतीत किया। जनसंख्या नियंत्रण पर या तो मनुष्य अपनी इच्छाओं व भावनाओं पर नियंत्रण द्वारा परिवार को दो सन्तानों तक सीमित रखे अथवा कृत्रिम उपायों से, यह आजकल की परिस्थितियों में आवश्यक व अनिवार्य हो गया है। यदि ऐसा न किया गया तो भविष्य में देश के लोगों को अत्यधिक दुःखों से गुजरना पड़ सकता है। देश के शत्रुओं से शायद हम अपनी रक्षा कर सकते हैं परन्तु यदि जनसंख्या अनियंत्रित रहेगी तो फिर ऐसी स्थिति आ सकती है कि समाज में कानून व विधान का शासन न रहे और लोग अभावों की स्थिति में हिंसा पर उतर जाये। इससे पहले की ऐसी स्थिति बने, हमें इसके लिये उपाय कर लेने चाहियें।

 

                वर्तमान में स्थिति यह है कि अच्छे शिक्षित लोग भी नगरों में महंगी भूमि व भवन निर्माण की महंगी सामग्री के कारण अपने निवास नहीं बना सकते वा खरीद सकते हैं। देश के बहुत से भागों में हजारों व लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर अथवा झुग्गी झोपड़ियों में ही अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर होते हैं। आज मोदी जी देश के सभी गरीब लोगों को निवास के लिये पक्के घर जिसमें बिजली, जल, रसोई गैस, शौचालय आदि सुविधायें विद्यामान हैं, प्रदान कर रहे हैं। असंगठित लोगों को साठ वर्ष की आयु में पेंशन भी दी जाने वाली है। कृषकों को भी अनेक प्रकार की सुविधायें व बीमा योजनायें दी गई हैं। दुघर्टना होने पर भी बैंक खाता धारियों को जीवन बीमें का लाभ दिया जा रहा है। इनसे पूर्व जो प्रधानमंत्री रहे वह ऐसी योजनायें व कामों को सोच भी नहीं सके। ऐसे प्रधानमंत्री पर हमारे देश के निर्धन व श्रमिक गर्व कर सकते हैं। ऐसा होने पर भी जनसंख्या के लिये कठोर नियम तो सरकार को बनाने ही होंगे अन्यथा देश के सामने बहुत ही दुःखद स्थिति आ सकती है। देश व समाज हित के ऐसे निर्णय लेते हुए हमें धर्म व सम्प्रदायों के विरोधों को भी दर किनार करना होगा और सबके लिये समान कानून बनाना होगा। मोदी जी ऐसा करने में सक्षम हैं। वह कहते भी हैं कि वह देशहित के कामों में वोट बैंक को ध्यान में रखकर निर्णय नहीं करते। अनुच्छेद 370 को हटाने का देशहित का निर्णय वह ले चुके हैं। अतः वह जनसंख्या पर भी शीघ्र कानून बना सकेंगे इसकी उनसे आशा है। जनसंख्या का जो विरोध करते हैं उसके पीछे की मंशा को भी सरकार को समझना होगा जिसके लिये लोगों व नेताओं द्वारा अनेक तर्क व कुतर्क दिये जायेंगे। आज की युवा पीढ़ी शिक्षित एवं देश हित की बातें सोचती हैं और स्वार्थी राजनेताओं की स्वार्थ की बातों को भी समझती है। जिस तरह से देश में शिक्षा व मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है, लगता है कि अब देश में स्वार्थ की राजनीति नहीं चल पायेगी अपितु देश की राजनीति ही चलेगी। देश के लोग देश हित के विरुद्ध हानिकारक बातों को स्वीकार नहीं करेंगे। आने वाले समय में देश की जनता योग्यतम व्यक्ति व जिसकी नीतियां व कार्य देशहित के होंगे, उसी को अपना समर्थन व सहयोग करेंगे, ऐसा प्रतीत होता है। अतः वर्तमान समय नेताओं का अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने व उन्हें बदलने का भी है।

 

                वर्तमान में देश भर में भारी बाढ़ की स्थिति है। अनेक राज्यों में लोग अपने निवासों से दूर सुरक्षित स्थानों पर ले जाये गये हैं। बहुत हमारे भाई व बहिनें काल के गाल में समा चुके हैं। इसका एक कारण हमारी जनसंख्या एवं देशवासियों की रक्षा के साधनों का अभाव है। सरकार को चाहिये कि वह बाढ़ के कारणों को जानकर उसके निवारण में देश के वैज्ञानिक व अभियन्ताओं की सेवायें लें। पर्वतीय स्थानों पर वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाये और स्थान-स्थान पर वर्षा के जल का भण्डारण करने के लिये जलाशय बनाये जायें। भविष्य में जो भवन बनाये जायें वह भी भूतल से तीन या चार फीट की ऊंचाई पर बनें। ऐसे अनेक उपाय करने से बाढ़ की विभीषिका से कुछ रक्षा हो सकती है। यदि देश में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण होगा और जलाशय बनाये जायेंगे तो सम्भव है कि भविष्य में इससे बाढ़ की विभीषिका कुछ कम होगी। सरकार के पास साधन होते हैं। वह अपव्यय को रोक कर ऐसी योजनाओं को पूरा भी कर सकती है। इस ओर ध्यान दिया जायेगा तो निश्चय ही कुछ सुधार अवश्य होगा। बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं ने मनुष्य को भी एक ज्ञान दिया है कि वह अल्पज्ञ एवं अल्प सामथ्र्य वाला है। वह प्रकृति पर विजय नहीं पा सकता। उसे अपनी सीमाओं को समझना चाहिये और अहकार से मुक्त होकर दूसरों के कल्याण के लिये काम करना चाहिये जिससे जब वह संसार से जाये तो लोग उसके व्यवहार व कामों की सराहना करें। हम यह भी उचित समझते हैं कि लोगों को ऋषि मुनियों के ग्रन्थ पढ़कर सन्ध्या व यज्ञ में अपना जीवन व्यतीत करना चाहिये। अग्निहोत्र यज्ञ से भी वर्षा, सूखे, साध्य व असाध्य रोगों तथा आपदाओं आदि को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिये हमें गोपालन पर भी ध्यान देना होगा। गोपालन से भी आपदाओं में कमी लाई जा सकती है, ऐसा हमारा अनुमान है। सन्ध्या व अग्निहोत्र में हम सर्वशक्तिमान संसार के स्वामी ईश्वर से जुड़ जाते हैं। उससे प्रार्थनायें करते हैं। वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनता व उन्हें पूरा करता है। यदि हम अग्निहोत्र यज्ञ पर अनुसंधान करेंगे और इनका अनुष्ठान प्रत्येक परिवार करेगा तो इससे भी बाढ़ जैसी आपदाओें में कमी लाई जा सकती है। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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