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मिशन बाल मन तक - 25

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19 Jul 25
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मिशन बाल मन तक - 25

मोबाइल और कंप्यूटर में दिन रात दुबे रहने वाले बच्चें अपनी साहित्य और संस्कृति की जड़ों से दूर हो गए हैं , जो गंभीर चिंता का विषय है। बच्चों की बढ़ती इस आदत से माता पिता तक दुखी है। इस वृति ने बच्चों को बाल साहित्य पढ़े और उससे होने वाले लाभ से वंचित कर दिया हैं  और बाल साहित्य संकट में आ गया है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए हाड़ोती में गत वर्ष से बाल साहित्य जागृति अभियान चलाया गया। उसकी सफलता को देखते हुए इस वर्ष भी यह अभियान चलाया जा रहा है। आवश्यकता है पूरे राज्य में साहित्यकार और शिक्षा कर्मी इस दिशा में पहल कर आगे आए।
     संस्कृति, साहित्य, मीडिया फोरम कोटा द्वारा साहित्यकारों , साहित्यिक और शैक्षिक संस्थाओं के सहयोग से कोटा संभाग में बच्चों को साहित्य और संस्कृति से जोड़ने की पहल के अंतर्गत वर्ष 2024 में बाल साहित्य मेलों का राजस्थान में प्रथम बार आयोजन किया गया। विविध गतिविधियों से पांच हजार बच्चें प्रत्यक्ष रूप से जुड़े और अपरोक्ष रूप से 50 हजार बच्चें जुड़े।
       इस अभियान पर आधारित प्रकाशित पुस्तक " बाल मन तक " का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में तारे स्कूल के 10 विद्यार्थियों द्वारा 29 जून 25 को किया गया। कार्यक्रमों के संयोजक डॉ . प्रभात कुमार सिंघल ने इसी कार्यक्रम में वर्ष 2025 को भी बाल साहित्य को समर्पित करते हुए " मिशन बाल मन तक " चलाने की घोषणा की। इसमें सभी के सहयोग के लिए एक अपील जारी की गई। 
     मिशन बाल मन तक की घोषणा के बाद ही एक माह में प्रारंभिक परिणाम आशा से अधिक उत्साहवर्धक रहे। साहित्यकार और प्रधानाचार्य डॉ. वैदेही गौतम ने पहल कर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय , केशोपुरा सेक्टर 6 में बचपन में नाना नानी, दादा दादी से सुनी कहानी प्रतियोगिता आयोजित की। इसमें सभी कक्षाओं के 80 बच्चों ने रुचि लेकर कहानियां लिखी। डॉ. वैदेही गौतम ने बच्चों को संस्कृत भाषा बोलना सीखने के लिए 10 दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर आयोजित किया जिसमें 30 बच्चों ने भाग ले कर संस्कृत भाषा बोलना सीखा। मिशन की यह महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है कि बच्चों की संस्कृत भाषा के प्रति रुचि जागृत हुई।
       साहित्यकार और शिक्षिका डॉ. अपर्णा पाण्डेय ने भी स्वेच्छा से पहल कर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मोरपा, सुल्तानपुर में बचपन की  कहानियां लिख वाई जिसने 30 से अधिक बच्चों ने भाग लिया। इन्होंने साहित्यिक विषय पर चित्रकला प्रतियोगिता की योजना भी बनाई है। 
        झालावाड़ जिले में साहित्यकार और शिक्षिका प्रीतिमा पुलक ने पहल कर बच्चों को अपनी लोक संस्कृति से जोड़ने के लिए राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मंडावर में लोक पर्व लाड़ी बोनी पर बालिकाओं को गुड़िया लाडी बनाने का प्रशिक्षण दिया। 
      आर्यन लेखिका मंच कोटा की अध्यक्ष रेखा पंचोली ने बाल साहित्य सृजन को बढ़ावा देने के लिए " बचपन और बरसात" विषय पर कोटा संभाग स्तरीय बाल कविता लेखन प्रतियोगिता आयोजित करवाई। 
     बाल मन तक पुस्तक के साथ - साथ श्यामा शर्मा की अनुवाद बाल पुस्तक " वन्य जीवों की पहचान " और राम कौशिक की बाल कहानी पुस्तक " जीवन रश्मियां " तीन बाल पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। इन पुस्तकों के साथ - साथ विजय कुमार शर्मा की बाल कहानी पुस्तक " असली जीत " की समीक्षाएं भी खूब चर्चा में आई। सलूंबर की राष्ट्रीय बाल साहित्यकार डॉ. विमला भंडारी, जयपुर की अक्षय लता शर्मा, कोटा के अख्तर खान, डॉ. अपर्णा पाण्डेय, रेणु सिंह राधे, महेश पंचोली, डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने इन पुस्तकों की समीक्षाएं लिखी जो कई समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई और ये  बाल पुस्तकें चर्चा में आई।
      वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही ने भी पहल कर कई विद्यालयों और व्यक्तियों से संपर्क कर उन्हें इस अभियान में सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। साहित्यकार विजय जोशी, विजय कुमार शर्मा, डॉ. सुशीला जोशी, डॉ. इंदु बाला शर्मा ने भी कार्यक्रम आयोजित करने की योजनाएं बनाई हैं।
     विगत वर्ष चलाए गए बच्चों को साहित्य से जोड़ने के अभियान की गतिविधियों पर आधारित बाल मन तक पुस्तक के संपादक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को सलूंबर की सलिला संस्था ने " राष्ट्रीय सलिला साहित्य रत्न " सम्मान देने की घोषणा की है। 
     उत्साहवर्धक प्रारंभिक प्रयासों से उम्मीद बंधती है कि इस वर्ष भी बच्चों को साहित्य और संस्कृति से जोड़ने के लिए " मिशन बाल मन तक " सफलता की नई इबारत लिखेगा।
 


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