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शृंगार एक स्वाभाविक वृत्ति" शृंगार की अवधारणा को विवेचित करती कृति

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23 May 25
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शृंगार एक स्वाभाविक वृत्ति" शृंगार की अवधारणा को विवेचित करती कृति

" शृंगार एक स्वाभाविक वृत्ति"  पुस्तक को देश भर के ब्यूटीशियंस द्वारा सराहा जा रहा है। ब्यूटीशियंस के लिये पुस्तक एक मार्गदर्शक और शोध ग्रन्थ बन गई है। यूँ तो सुंदरता और खूबसूरती  प्राचीन काल से ही भारत की पहचान है । कहते हैं हर शख्स  खूबसूरत और खूबसीरत होना चाहिए  और खूबसूरती शक्ल सूरत से नहीं , सीरत यानी व्यवहार, पहनावे, साज - सज्जा की सांझा व्यवस्था है।  इसीलिये विश्व सुंदरी प्रतियोगिता में यह सभी सांझी व्यवस्थाएं कसौटी पर अव्वल साबित करने के लिये शामिल की जाती हैं।  हमारे देश और विश्व में इन दिनों , बदलती सामजिक व्यवस्था , फैशन , फिल्म , टीवी चेनल्स , न्यूज़ चेनल्स ऐंकर , शादी , ,ब्याह , सामाजिक कार्यक्रमों के इस दौर में मेकअप , ब्यूटीफिकेशन  और शृंगार की अपनी अलग अहमियत हो गई है 
     सामाजिक कार्यक्रम ,शादी , सगाई , जन्म दिन सहित सभी कार्यक्रमों में  ब्यूटी पार्लर पर लाखों रूपये एक कार्यक्रम के खर्च हो रहे हैं ।  दूल्हा - दुल्हन की तो  बात ही अलग है, लेकिन रिश्तेदार, नातेदार, आगन्तुक भी पार्लर के मज़े ले रहे हैं।
 ।  इन सब के बीच यह सही है कि एक भारतीय नारी का शृंगार शर्म ओ हया , आदाब , अख़लाक़ की अदाओं के साथ  सोलह  शृंगार से ही जुड़ा है । पुरानी सभ्यता हो , परियों की कहानी हो, देवी देवताओं की लोक कथाएं हों, स्वर्ग की अप्सराएं हो ,महाराजा, महारानियाँ हों सोलह बदलाव आये , फिल्म,  टी वी सीरियल सहित कई जगह मेक अप के फार्मूले में चाहै वैज्ञानिक बदलाव आया हो , लेकिन सोलह शृंगार  का फार्मूला आज भी जस का तस है , आज भी क़ायम है  का फार्मूला  सदियों से आज भी जस का तस है ।   इसी ,फार्मूले  के बदलाव , आधुनिकीकरण और वैज्ञानिक बदलाव को लेकर लेखिका शिखा अग्रवाल ने  शृंगार  एक स्वाभाविक वृत्ति  शीर्षक  से दुनिया की  उत्पत्ति से  लेकर आज तक के अलग - अलग काल , अलग - अलग देशों की सभ्यता में  शृंगार बदलाव को संकलित कर एक पुस्तक में रिसर्च दस्तावेज तैयार किया है। करीब 40 से अधिक विशेषज्ञों के रिसर्च आलेख और कविताएं इस पुस्तक में शामिल किए गए हैं। जिसमे सौंदर्य , प्रसाधन व्यवस्था तब और अब , बदलते बदलाव , व्यवस्थाओं , पोशाकों , बिंदी , टीकी , गजरा , ज़ेवर ,पायल , चूड़ी , सिंदूर , साफे सहित हर शृंगार व्यवस्था को गागर में सागर जैसा भर दिया है। 
    इस पुस्तक लेखन में राजस्थान के विख्यात समीक्षक  विजय जोशी भी शृंगार की परम्परा और फैशन की धारा के विचारों के साथ सहयोगी और मार्गदर्शक रहे हैं । समरस संस्थान  साहित्य सृजन भारत , गांधीनगर गुजरात  की जिला  कोटा इकाई  द्वारा इस संकलन को प्रकाशित किया गया है।काव्यांजलि प्रकाशन कोटा द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के मुख पृष्ठ पर सोलह शृंगार से सजी  धजी  एक तस्वीर है जो किशनगढ़ चित्र शैली की बनी ठनी के में से विख्यात है और इस चित्र की रमनी को भारत की मोनालिसा कहा जाता है। 
 शृंगार के हर पक्ष को लेकर संपादित कृति में
इतिहासकार ललित शर्मा ने नारी शृंगार के रसराज से जुड़े कला और संगीत पर व्याख्यात्मक लेख लिखा है  तो अक्षय लता शर्मा ने मत कर पिव जी परदेशां व्योपार , रूप  जी रूप का आलेख साहित्य में नारी शृंगार की अभिव्यंजना ,  वैदेही गौतम की रचना प्रणय निवेदन और साहित्यिक लावण्या दो रचनाएँ शामिल हैं । अर्चना शर्मा ने पगड़ी पुरुषों का शृंगार और सिंगार विषय पर लिखा है । डॉक्टर कृष्णा कुमारी ने  प्रियतम तुम्हारी याद आई और रामचरित मानस में शृंगार विषय पर अपनी अभिव्यक्ति प्रकट की है  तो डॉक्टर नेहा प्रधान ने प्रेम शृंगार और मनोभावों की अभिव्यक्ति में अपने भाव प्रकट किये हैं  जबकि डॉक्टर अपर्णा पांडेय ने  अभिव्यक्ति ,,,,प्रेम  को रस रूप में परिणित करता है  शृंगार रचनाएँ लिखी हैं । 
       अक्षय लता  शर्मा ने शृंगार एक चिंतन अध्ययन मंथन विषय पर खुलकर शृंगार का वर्णन किया है । इसी तरह तितिक्षा गुप्ता का आलेख मूर्तिकला में नारी शृंगार  विषयानुसार है , जबकि अल्पना गर्ग ने सोलह शृंगार और उनके वैज्ञानिक तर्क पर अपनी क़लम चलाई है । इधर रीता गुप्ता रश्मि शंगार सौंदर्य बिंदिया चमकेगी विषय को निखारा है , प्रसिद्ध  साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही ने  राजस्थानी का शृंगार काव्य संयोग वियोग का अद्भुत मेल विषय पर प्रकाश डाला है । दीनदयाल शर्मा का स्टेच्यू , टीकम चंद्र ढोढरिया का आलेख रूप निहारे , चंद्र प्रकाश की अभिव्यक्ति साहित्य मूर्तिकला और चित्रकला में नारी शृंगार पर अपने विचार प्रकट किये हैं। डॉक्टर इंदू बाला शर्मा ने लजाती , सकुचाती गोरी को वर्णित किया है ,  रेणू सिंह राधे ने शृंगार सजे नारी के अंग अंग,  विषय को उल्लेखित किया है । 
      डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल के रिसर्च आलेख  गुदना परम्परा फैशन बन गया टेटू ,परिधानों में शृंगार बोध और बिहारी के साहित्य में शृंगार बोध विषयों पर खुलकर क़लम चलाई है इधर रेखा सक्सेना ने नारी शृंगार बीसा पर लिखा है । नमिता सिंह आराधना ने  साहित्य में नारी शृंगार की उपयोगिता विषय पर प्रकाश डाला है  तो डॉक्टर मंजू यादव ने नारी सौंदर्य और प्रसाधन पर खुलकर लिखा है । रश्मि वर्मा गर्ग ने नारी शृंगार , सौंदर्य से भरपूर साहित्य को फोकस किया है  वहीं महेश पंचोली  की अभिव्यक्ति खिलता गुलाब , मीनाक्षी पंवार मीशात , ने युग युगांतर , से शृंगार की असीम महिमा पर अपनी क़लम चलाई है । खुद सम्पादक शिखा अग्रवाल ने शृंगार का बोध कराता फैशन एवं प्राचीन भारत में फैशन विषयों पर शोधात्मक लेख लिखे  हैं। 
     रीता गुप्ता रश्मि की रचना शृंगार मेरा बस तुम , प्रार्थना भारती की कृति भारतीय चित्रकला में नारी शृंगार  मेरा प्यार मेरा शृंगार , विषय पर हैं।  कविता गांधी ने भी चित्रकला में नारी शृंगार विषय पर अपने विचार प्रकट किये है ।  राम मोहन कौशिक की रचना , साहित्य में नारी सौंदर्य एवं शृंगार विषय पर है , तो पल्ल्वी दरक न्याति ने स्त्री शृंगार पर खुलकर क़लम चलाई है । डॉक्टर शशि जैन की क़लम , तुमने जब से दस्तक दी है विषय पर चलाई है ,मध्यकालीन कवियों का शृंगार वर्णन विषय पर अनुराधा गर्ग ने अपनी क़लम चलाई है तो साजन से ही शृंगार विषय पर साधना शर्मा ने प्रकाश डाला है  जबकि साहित्य में नारी शृंगार विषय को सुश्री हेमलता गाँधी ने अपने शब्दों में उल्लेखित किया है । अनिष कुमार की रचना नारी शृंगार , तरुण राय कागा की रचना पनघट , अभिज्ञा  गुप्ता की रचना एक बेटी की अभिव्यक्ति प्रमुख रचनाएँ इस पुस्तक में संकलित कर शामिल की गई हैं।
     अर्चना शर्मा ने  पुरुषों के लिए पगड़ी के शृंगार का अलग - अलग विवरण आलेखित किया है जबकि पगड़ी , साफा वगेरा में अंतर् भी दिखाने की कोशिश की है , पुरुषों के लिए पगड़ी , पाग शृंगार के लिए प्रमुखता से दर्शित किया गया है । अल्पना गर्ग ने  सोलह शृंगार और उनके वैज्ञानिक तर्क विषय को व्याख्यात्मक तरीके से एक शोध लेख के रूप में लिखा है जिसमे सोलह शृंगार , चूड़ियां , सिंदूर , बिंदी ,, काजल , मेहँदी , अंगूठी , नथ , गजरा , मांग टीका , झुमके , मंगलसूत्र ,, बाजूबंद , कमर बंद ,पायल , बिछिया ,स्नान ,, का ज़िक्र किया गया है ।  लेखक जितेंद्र निर्मोही  ने राजस्थान का शृंगार काव्य संयोग वियोग का अद्भुत मेल है आलेख में  अलग - अलग काल की शृंगार की रचनाओं , दोहों , कविताओं के माध्यम से इसे समझाने का प्रयास किया है । डॉक्टर अपर्णा पांडेय ने संस्कृत साहित्य में शृंगार को पृथक से परिभाषित करने का प्रयास किया है । रेणू सिंह राधे ने " मन सुंदर तन सुंदर तू सुंदरता की खान है ,औरत का मन दर्पण वहीँ बस्ते चारों धाम है ,नख से सिख तक ,अनमोल हर पायदान है , तेरे ये सोलह शृंगार करते खुद पर अभिमान है " जैसी पंक्तियों में नारी और शृंगार की शोभा बढ़ा दी है ।  साहित्यकार महेश पंचोली ने  " चेहरे से तो आप खिलता गुलाब लगती हो , कुछ पढ़ी कुछ अनपढ़ी सी किताब लगती हो , बढ़ी शिद्द्त से संवारा खुदा ने आपको यार , हर तरफ से आप बढ़ी लाजवाब लगती हो , बेठ कर निहारा करूं में आपको जीवन भर , मेरे किसी सवाल का आप जवाब लगती हो , होगा नहीं शायद यह हक़ीक़त में बदल जाए , इसलिए मुझे एक सुहाना सा ख्वाब लगती हो , कोई मोल , तोल नहीं आपसे हुई मुलाक़ात का , सच मानिये आप मुझे बढ़ी बेहिसाब लगती हो "  शृंगार पर संकलित पुस्तक की बेहतरीन रचनाओं में से एक है ।  , रीता गुप्ता ने तो शृंगार मेरा बस तुम  रचना में श्रगार के लिए काम में आने वाली बिंदिया ,लालिमा ,.सिन्दूर सभी सोलह श्रगार से , याचना करते हुए , कैसे खुद को सजाना संवारना है ,उस पर कम शब्दों में बेहतरीन  तरीके से अपनी भावनाओं को आलेखित किया हैं । डॉक्टर शशि जेन ने " तुमने जब से दस्तक दी है " रचना में , शृंगार के साथ  भावनाओं को जीवंत कर दिया है । साधना शर्मा ने साजन से ही शृंगार  रचना में , साजन की  अहमियत बयान करते हुए  साजन को शृंगार का मुख्य सर्वोच्च स्थान दिया है । अर्चना शर्मा ने सिंगार,  रचना में शृंगार को विवरणात्मक अंदाज़ में लिखा है । 
         लेखिका ने अपने सम्पादकीय में  सारगर्भित तरीके से  सौंदर्य , शृंगार विषय पर, आदिकाल से आज तक के अलग-अलग चरणबद्ध बदलाव के बारे में  जानकारी देते हुए लिखा है कि अपने पिता की प्रेरणा से ही इसका संपादन संभव हुआ है। साहित्य जगत में इस कृति का महिला लेखन की दृष्टि से स्वागत किया जा रहा है।

 


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