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नेत्रदान हो,इसलिए शव लेकर इंतज़ार करते रहे

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23 Jul 19
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नेत्रदान हो,इसलिए शव लेकर इंतज़ार करते रहे

आये दिन नेत्रदान की खबरों को पढ़-पढ़ कर अब आम लोगों में जागरूकता का प्रतिशत पहले से बढ़ने लगा है। बीते माह में बूँदी जिले में 4 जोड़ी नेत्रदान प्राप्त हुए है । इसी क्रम में कल 72 वर्षीय जैथल निवासी महावीर जैन जी का, तलवंडी कोटा के निजी अस्पताल में निधन हो गया । यह खबर इनके भतीजे दिलीप कुमार जी को भी मिली,थोड़े समय पहले दिलीप जी के भी साले साहिब राकेश जैन का मृत्यु उपरांत परिवार के सदस्यों ने नेत्रदान करवाया था ।

 

यह बात दिलीप जी ने महावीर जी के बेटे पारस जैन जी से भी कही,थोड़ा समझाने के बाद, पारस जी व परिवार के सभी लोगों ने नेत्रदान करवाने के लिये अपनी रज़ामंदी दे दी । इस समय तक महावीर जी के पार्थिव शव को परिजनों ने जैथल ले जाने के उद्देश्य से अपने निजी वाहन में रख लिया था । दिलीप जी ने स्व० राकेश जैन जी के घर से शाइन इंडिया फाउंडेशन के मोबाइल नम्बर मांग कर तुरंत उनको संपर्क किया। उस समय संस्था के सदस्य बाराँ रोड पर एक अन्य केस के संदर्भ में परिवार की समझाइश कर रहे थे,दिलीप जी के कॉल आने पर संस्था सदस्यों ने कहा कि सारी तैयारी करके आने में आधे से पौन घंटे का समय लगेगा । परिजनों ने कहा कि यदि महावीर जी के नेत्र परीक्षण करने के बाद,किसी को रौशनी देने के काम आ सकती है तो, हम इंतज़ार कर लेंगे । यह सुनने के बाद टीम के सदस्य तुरंत अस्पताल पहुँचे,और 15 मिनट में महावीर जी के नेत्रदान प्राप्त कर लिये । नेत्रदान के दौरान,नेत्रदानी के शरीर से थोड़ा सा रक्त का सेम्पल भी लिया जाता है,जिससे मृत्यु का सही कारण,व यह पता लगाया जाता है कि,नेत्रदानी को अंतिम समय मे किसी तरह की कोई ऐसी संक्रमित बिमारी तो नहीं थी,जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई है। क्योंकि एड्स,हैपेटाइटिस, पीलिया, सेप्टीसीमिया, डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया व ब्लड कैंसर से संक्रमित लोगों का नेत्रदान संभव नहीं है ।

संस्था सदस्यों को महावीर जी के पार्थिव शव से कॉर्निया प्राप्त करने में बहुत कम समय लगा,परन्तु रक्त के सेम्पल लेने में पौन से एक घंटे का समय लग गया । 

संस्था सदस्यों ने नेत्रदानी परिवार को धन्यवाद देते हुए कहा कि,बहुत कम लोग ऐसे होते है जो इस शोक के समय मे भी,इस तरह का निर्णय लेकर धैर्य रखकर नेत्रदान का कार्य सम्पन्न करने में आगे रहते है । महावीर जी ने अपने जीवन काल मे अपने नाम को सार्थक किया । उन्होंने अपने जीवन काल मे कई साधु-संतों की सेवा में अपना समय बिताया।  दान-धर्म में भी वह सदैव आगे रहा करते थे । 


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